आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 385 हमेशा प्रभु का नाम जपो एक बार न...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
385
हमेशा प्रभु का नाम जपो
एक बार नरोत्तम नाम का राजा हुआ करता था। वह बहुत ताकतवर था। उसके राज्य में दो छोटी लड़कियाँ थीं - एक का नाम था "तपी" और दूसरी का "जपी"।
एक बार उन दोनों के मन में राजा से मिलने का विचार आया। उन्हें यह भी आशा थी कि राजा उन्हें कुछ दान स्वरूप देगा। कम उम्र होने के कारण उनके मन में कोई स्पष्ट विचार नहीं था कि राजा से मिलने पर वे उनसे क्या मांगेगी।
वे सीधे दरबार पहुंच गयीं और सुरक्षा उपायों से भयभीत होकर चुपचाप खड़ी हो गयीं।
तपी बोली - "जय पुरुषोत्तम!"
यह सुनकर राजा ने सोचा कि वह ईश्वर से कुछ मांगना चाहती है।
जपी बोली - "जय नरोत्तम!"
अपना नाम सुनकर राजा बहुत खुश हुआ।
राजा ने तपी को रु. 5/- देकर विदा कर दिया। इसके बाद वह अंदर गया और उसने एक बड़े से कद्दू को बीच से काटकर उसमें सोने के सिक्के भर दिए। सोने के सिक्के भरने के बाद उसने कद्दू को फिर से बंद कर दिया और बाहर आकर वह कद्दू जपी को दे दिया।
जपी उस कद्दू को लेकर दरबार के बाहर आ गयी। चूकिं कद्दू आकार में बड़ा और सोने के सिक्कों से भरा हुआ था अतः उसे वह कद्दू उठाकर ले जाने में भारी लगने लगा।
बाहर निकलकर उसने उस कद्दू को एक सब्ज़ी विक्रेता को मात्र 25 पैसे में बेच दिया और प्रसन्नतापूर्वक घर चली गयी। वह सब्ज़ी विक्रेता बिल्कुल भी ईमानदार नहीं था।
तपी रु.5/- लेकर यह सोचती हुई इधर-उधर टहल रही थी कि इस पैसे का क्या किया जाए। तभी उसे अपने माता-पिता और भाई-बहिनों की याद आयी। वह सब्ज़ी विक्रेता के पास कद्दू खरीदने पहुंची। सब्ज़ी विक्रेता ठग था इसलिए उसने 25 पैसे में खरीदा गया वह कद्दू रु. 5/- में तपी को बेच दिया।
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तीन हजार उपदेश और एक भी याद नहीं
प्रत्येक रविवार चर्च जाने वाले एक व्यक्ति ने एक समाचारपत्र के संपादक को ख़त लिखा कि प्रत्येक रविवार को चर्च जाने में कोई लाभ नहीं है और यह समय की बर्बादी है। अपने पत्र में उसने लिखा - "मैं पिछले 30 वर्षों से नियमित रूप से चर्च जा रहा हूं। अब तक मैंने 3000 से ज्यादा उपदेश सुने हैं और आज उनमें से एक भी याद नहीं है। मेरे ख्याल से मैंने अपना समय बर्बाद किया है और पादरी लोग भी उपदेश देकर भक्तों का समय बर्बाद कर रहे हैं।"
"संपादक के नाम ख़त" कॉलम में यह ख़त छपने के बाद काफी विवाद खड़ा हो गया तथा कुछ दिनों तक अखबार की सुर्खियों में बना रहा जब तक कि एक अन्य व्यक्ति ने इसका खंडन करते हुए यह पत्र नहीं लिखा -
"मुझे शादी किए हुए 30 वर्ष हो गए हैं और मेरी पत्नी ने मेरे लिए अब तक 32,000 से अधिक बार स्वादिष्ट भोजन पकाया है किंतु मुझे अब तक खाए गए सभी पकवानों के बारे में ठीक से कुछ याद नहीं है। किंतु मैं इतना अवश्य जानता हूं कि इस भोजन ने मुझे कामकाजी बनाए रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा दी है। यदि मेरी पत्नी ने मेरे लिए ये भोजन नहीं पकाया होता तो मैं अब तक शारीरिक रूप से मर चुका होता। इसी तरह यदि मैं नियमित रूप से चर्च नहीं गया होता तो आध्यात्मिक रूप से मर चुका होता।"
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समुद्र मंथन
समुद्र मंथन की पौराणिक कहानी आप जानते होंगे. जब अमृत प्राप्ति के लिए असुर और देव मिल-जुल कर समुद्र का मंथन करने लगे तब अमृत प्राप्ति से पहले विष की प्राप्ति हुई थी. और ऐसा विष जो तमाम जगत को नष्ट करने की शक्ति रखता था. विश्व को इसके प्रभाव से बचाने के लिए उसे शिव ने अपने कंठ में धारण किया. विष की वजह से उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए.
आपको भी अपने जीवन में अमृत तुल्य चीजें प्राप्त करनी हो तो मंथन करना होगा. और यह भी ध्यान रखें कि मंथन से पहले पहल विष निकलेगा, विष तुल्य चीजों की ही प्राप्ति होगी. और उसे आपको धारण भी करना होगा. उसके प्रभाव से बचने के उपाय भी करने होंगे. और उसके बाद विश्वास रखिए, अंत में मंथन से आपको अमृत की प्राप्ति होगी.
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चवन्नी की सिद्धि
स्वामी रामतीर्थ ऋषिकेश में गंगा के किनारे टहल रहे थे. वहाँ उनको एक योगी मिला. आरंभिक बातचीत के बाद योगी ने बताया कि उन्हें सिद्धि प्राप्त है. स्वामी ने योगी से पूछा कि वे कितने वर्ष से साधना कर रहे हैं और उन्हें क्या सिद्धि प्राप्त है.
योगी ने बताया कि वे पिछले चालीस वर्षों से हिमालय में तपस्या कर रहे हैं और उन्हें यह सिद्धि प्राप्त है कि वे तेज गंगा की धारा को नंगे पाँव चलते हुए पार कर सकते हैं जैसे कि सूखी जमीन.
इस पर स्वामी ने कहा – इसके अलावा कोई और सिद्धि आपको प्राप्त है?
योगी ने कहा – क्या पानी पर जमीन की तरह चलना कोई कम सिद्धि है?
स्वामी ने फिर कहा – यह तो चवन्नी छाप सिद्धि है. गंगा के एक किनारे से दूसरे किनारे जाने के लिए नावें हैं, जो आपको चवन्नी में पहुँचा देते हैं. आपने अपने जीवन के बहुमूल्य चालीस वर्ष सिर्फ चवन्नी की सिद्धि हासिल करने में लगा दिये हैं!
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
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