आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 357 गुलाब की छटा एक बार महात्मा ग...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
357
गुलाब की छटा
एक बार महात्मा गांधी, गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर के निमंत्रण पर शांति निकेतन गए। एक सुबह वे दोनों उद्यान की सैर पर निकले। सूरज की पहली किरण जब उस उद्यान के गुलाब पर पड़ी तो उसकी निराली छटा देखने के लिए दोनों के पाँव ठिठक गए। गुलाब देखकर गुरूदेव बोले -"गुलाब की यह कली मुझे एक कविता लिखने के लिए प्रेरित कर रही है। तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है? "
गांधीजी ने उत्तर दिया - "मेरे दिमाग में कोई कविता जन्म नहीं ले रही है। लेकिन मैं हर भारतीय बच्चे का चेहरा इस गुलाब की तरह ताजा, खिला हुआ और आशाओं से भरा हुआ देखना चाहता हूं। "
गुलाब की एक ही कली ने दो महापुरूषों के मन में दो महान विचारों को जन्म दिया।
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358
आखिर आप किस तरह लोगों की मदद करते हैं?
एक सामाजिक कार्यक्रम में अपने गुरूजी से मिलने पर एक मनोचिकित्सक ने अपने मन में उमड़ रहे एक प्रश्न को पूछने का निर्णय लिया।
उसने पूछा - "आखिर आप किस तरह लोगों की मदद करते हैं?"
गुरू जी ने उत्तर दिया - "मैं उनको उस सीमा तक ले जाता हूं कि उनके मन में कोई भी प्रश्न शेष न रहे। "
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114
एक पंडित चार ठग
पंडित जी यजमान के यहाँ से पूजा पाठ समाप्त कर अपने घर की ओर चले. यजमान ने उन्हें दान स्वरुप एक जर्सी नस्ल का बढ़िया बछिया दिया था, वह भी पंडित जी साथ ले चले. पंडित का घर कोई दस मील दूर था.
रास्ते में चार ठगों ने पंडित को बढ़िया जर्सी बछिया ले जाते हुए देखा तो पंडित को ठगने की योजना बनाई.
पहला ठग पंडित के पास पहुँचा और साष्टांग दंडवत करते हुए पंडित को बोला “पालागी पंडिज्जी. आज ई का हुई गवा है जो आप अपने संग कुतिया को लिये जा रहे हैं. पवित्र पंडितों के संग कुत्तों का क्या काम?”
“मूर्ख, तुम अपनी आँखों का इलाज करवाओ. यह तो जर्सी गाय की बछिया है” पंडित ने जवाब दिया, और आगे बढ़ गए.
कुछ दूर जाने के बाद पंडित के पास दूसरा ठग पहुँचा और उन्हें नमस्कार कर बोला – “पंडित जी कहीं जजमानी से आ रहे हैं? और आज का जजमान ने आपको दक्षिणा में कुतिया दिया है?”
पंडित ने बछिया की ओर एक निगाह डाली, और कहा – “ठीक से देख बदमाश कहीं का. तेरी नजर कमजोर तो नहीं. यह बछिया है, कुतिया नहीं.”
थोड़ी देर आगे बढ़ने के बाद तीसरा ठग पंडित के पास पहुँचा और वही बात दोहराई कि पंडित कुतिया को लेकर क्यों जा रहे हैं. पंडित ने तीसरी बार फिर उसे स्पष्ट किया कि यह बछिया है, कुतिया नहीं. मगर इस बार पंडित का विश्वास थोड़ा हिल गया था. तीसरे ठग के चले जाने के बाद उन्होंने बड़ी देर तक बछिया को सिर से लेकर पूंछ तक बारंबार छूकर-देखकर तसल्ली कर ली कि यह बछिया ही है. संयोग से उस वक्त उस मार्ग में अन्य कोई यात्री नहीं था जिससे यह स्पष्ट कर लिया जाता कि बछिया बछिया ही है, कुतिया नहीं.
पंडित जी के एकाध किलोमीटर आगे बढ़ने के बाद मौका देखकर चौथा ठग पंडित के पास आया और उन्हें प्रणाम कर बड़ी देर तक प्रेमपूर्वक देश-दुनिया और दुनियादारी का वार्तालाप करता रहा. उसने पंडित को लालच भी दिया कि अगले हफ़्ते वो अपने घर पर सत्यनारायण की कथा का आयोजन करवाना चाहता है जिसमें पंडित जी जजमानी स्वीकारें. चलते चलते ठग ने योजनानुसार पंडित से कहा –“महाराज, आप आज कुतिया को अपने साथ क्यों लिए जा रहे हैं? क्या घर पर पालने का इरादा है?”
अब तो पंडित को पक्का यकीन हो गया कि यह हो न हो कुतिया ही है, जो उन्हें बछिया दिखाई दे रही है. शायद जजमान ने कुछ जादू कर दिया हो...
घर पहुंचने पर उनके साथ कुतिया को देख कर कहीं पंडिताइन उनका उपहास न कर दे, ऐसा सोचकर पंडित ने बछिया को वहीं छोड़ दिया और आगे बढ़ गए.
चारों ठग इस बात का तो जैसे सदियों से इंतजार कर ही रहे थे!
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115
साहस के प्रतिमान – नेताजी
एक बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस रंगून में सैनिकों के एक कार्यक्रम में मार्चपास्ट पर सैल्यूट ले रहे थे.
मार्च पास्ट में रानी झांसी रेजीमेंट की महिला सैनिकों की बारी थी. इसी बीच आकाश में ब्रितानी हवाई जहाज दिखाई दिए जो हवाई हमले करने आ चुके थे.
आसपास के दूसरे जरनल और सैनिक जान बचाने के लिए सुरक्षित ठिकानों की ओर दौड़े. देखते देखते हवाई हमले शुरू भी हो गए. मगर नेताजी अपनी जगह से हिले भी नहीं. यह देखकर महिला सैनिकों की टुकड़ी ने भी अपना मार्चपास्ट बेधड़क सम्पन्न किया.
नेताजी सचमुच साहस के प्रतिमान थे.
(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
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