आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 303 स्वयं को बदलकर ही दुनिया को बदलो...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
303
स्वयं को बदलकर ही दुनिया को बदलो
सूफी संत बयाज़िद ने अपने बारे में बताते हुए कहा - ‘मैं अपनी जवानी के दिनों में क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत था। मैं हर समय ईश्वर से यही मांगता कि मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं दुनिया बदल सकूँ।’
जैसे-जैसे मैं अधेड़ावस्था में पहुँचा, मैंने यह महसूस किया कि मेरा आधा जीवन यूँ ही व्यर्थ गुजर गया है और मैं एक भी व्यक्ति को नहीं बदल पाया हूँ। तब मैंने अपनी प्रार्थना बदल दी। मैं यह प्रार्थना करने लगा कि हे प्रभु, मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को बदल सकूँ। मैं अपने संपर्क में आने वाले मित्रों और संबंधियों को बदलकर ही संतुष्ट हो जाऊँगा।
अब जबकि मैं वृद्धावस्था में पहुँच गया हूँ और जीवन के कुछ दिन ही शेष हैं, प्रभु से मेरी सिर्फ एक ही विनती है कि मुझे सिर्फ इतनी शक्ति दो कि मैं अपने आप को बदल सकूँ।
यदि मैंने प्रारंभ से ही यह प्रार्थना की होती तो मेरा जीवन व्यर्थ नहीं गया होता।
--
304
मुर्गा और आभूषण
एक मुर्गा अपनी मुर्गियों व स्वयं का पेट भरने के लिए भोजन की तलाश में खेत की जमीन खोद रहा था। तभी उसे जमीन में दबा एक आभूषण मिला। वह समझ गया कि यह जरूर कोई बेशकीमती चीज़ है।
जब उसे समझ में नहीं आया कि उस आभूषण का क्या किया जाये, तो वह बोला- "ऐसे व्यक्तियों के लिये जो तुम्हारी कीमत समझते हैं, तुम निश्चय ही बेहतरीन हो। लेकिन मैं एक दाना अनाज के बदले संसार के सभी आभूषणों को कुर्बान कर सकता हूँ।'
"किसी वस्तु का मूल्य उसे देखने वाले की आँखों में होता है।'
--
56
सुखी व्यक्ति की कमीज
खलीफा एक बार बीमार पड़ गया. उसे रेशमी वस्त्रों, नर्म गद्दों में भी आराम नहीं मिलता था, नींद नहीं आती थी और बेवजह दुःखी रहता था. दुनिया के तमाम वैद्यों हकीमों को बुलाया गया. परंतु किसी को भी बीमारी समझ नहीं आ रही थी और लिहाजा इलाज भी नहीं हो पा रहा था. अंत में एक ऐसे वैद्य को बुलाया गया जो अपने विचित्र परंतु प्रभावी इलाज हेतु प्रसिद्ध था. वैद्य ने देखते ही बताया कि खलीफा का इलाज बस यही है कि किसी सुखी व्यक्ति की कमीज खलीफा के सिर पर घंटे भर के लिए रखी जाए.
चहुँओर सुखी व्यक्ति को ढूंढा जाने लगा. जिसे भी पूछो, वो किसी न किसी कारण से दुःखी था. व्यक्तियों को दुःखी बनाने के सैकड़ों हजारों अनगिनत कारण थे. इस बीच सुखी व्यक्ति ढूंढने वाले खलीफा के सिपाहियों को एक गरीब चरवाहा अपने ढोरों के साथ जाते हुए मिला. उनमें से एक ने चरवाहे से मजाक में पूछा – क्यों रे तू सुखी है या दुखी?
चरवाहे ने जवाब दिया – मैं दुःखी क्यों होऊं? मैं तो दुनिया का सबसे सुखी इंसान हूं.
तो चल निकाल अपनी कमीज उतार हमें अपने खलीफा के लिए यह चाहिए – एक सिपाही ने कहा.
पर, मेरे पास न तो कमीज है और न ही मैं कमीज पहनता हूं – चरवाहे ने कहा.
जब यह बात खलीफ़ा तक पहुँची तो उन्होंने मंथन किया और पाया कि उनकी बीमारी की जड़ रेशमी वस्त्र, नर्म गद्दे और हीरे-जवाहरात हैं. खलीफा ने वे सब सामाजिक कार्य में वितरित कर दिए. खलीफा अब स्वस्थ और सुखी हो गया था.
--
57
विद्या ददाति विनयम्
एक स्टेशन पर एक युवक छोटा सा सूटकेस हाथ में लेकर ट्रेन से उतरा. उतर कर वह कुली ढूंढने लगा. कुली-कुली उसने कई आवाजें लगाई, परंतु कोई कुली नहीं आया. उस युवक के साथ एक अन्य व्यक्ति भी ट्रेन से उतरा. उसने जब देखा कि युवक एक बहुत ही छोटे से सूटकेस को उठाने के लिए कुली ढूंढ रहा है तो उसकी मदद के लिए गया कि शायद युवक को कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होगी, जिसके कारण वह छोटे से सूटकेस को ढोने के लिए भी कुली ढूंढ रहा है.
उस व्यक्ति ने युवक से पूछा – आप इस जरा से सूटकेस को उठाने के लिए कुली को क्यों ढूंढ रहे हैं?
मैं पढ़ा लिखा व्यक्ति हूँ, और सूटकेस छोटा हो या बड़ा इसे तो कुली ही उठाते हैं – युवक ने जवाब दिया.
कुली तो हैं नहीं, यदि तुम्हें कोई समस्या न हो तो मैं इसे उठा कर आप जहाँ कहें पहुँचा देता हूं – उस व्यक्ति ने प्रस्ताव दिया.
युवक सहर्ष राज़ी हो गया. गंतव्य पर पहुँचने पर युवक उस व्यक्ति को मेहनताना देने लगा. मगर उस व्यक्ति ने मना कर दिया.
शाम को वहीं स्टेशन के पास एक सभागार में प्रसिद्ध विद्वान ईश्वरचंद्र विद्यासागर का भाषण था. सभागार में वह युवक भी पहुँचा. दरअसल वह खासतौर पर ईश्वरचंद्र विद्यासागर का भाषण सुनने ही इस शहर में आया था.
उसने देखा कि वह व्यक्ति जिसने उसका बैग उठाया था, और कोई नहीं, ईश्वरचंद्र विद्यासागर थे!
---
(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
स्वयं को बदलने की इच्छा, ज़मीन से जुड़ी विनम्रता।
जवाब देंहटाएंबड़े ही सुन्दर प्रसंग...
प्रेरक!
जवाब देंहटाएं