आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 373 यंत्रणायें एक शिष्य (जिसका यह...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
373
यंत्रणायें
एक शिष्य (जिसका यह मानना था कि उसने अपने जीवन में कई यंत्रणायें झेली हैं।) अपने गुरू से पूछता है - "क्या यंत्रणायें मनुष्य को परिपक्व करती हैं?"
गुरूजी ने उत्तर दिया - "यंत्रणाओं से अधिक महत्त्वपूर्ण है मनुष्य का स्वभाव, कि वह इन यंत्रणाओं को किस तरह झेलता है। यंत्रणायें कुम्हार की उस अग्नि की तरह हैं जो मिट्टी के बर्तनों को पकाती भी है और जलाती भी है।"
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374
ईश्वर को उपहार
एक राजा बहुत धार्मिक स्वभाव का था। उसने सभी देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए उन्हें एक अनूठा उपहार देने का निश्चय किया।
उसने अपने सभी दरबारियों और प्रधानमंत्री से परामर्श मांगा कि ईश्वर को कौन सा उपहार दिया जाये? कुछ ने कहा कि स्वर्ण का मंदिर बनवा दो, कुछ ने कहा कि अपना सारा स्वर्ण दान कर दो......इत्यादि-इत्यादि।
फिर राजा अपने राजगुरू के पास विचार-विमर्श के लिए गया। राजा ने उसे अपनी इच्छा और अब तक मिले सभी परामर्श बताये। राजगुरू ने कुछ देर तक विचार करने के बाद कहा -"तुम्हारा यह शरीर ईश्वर द्वारा तुम्हें दिया गया सर्वश्रेष्ठ उपहार है और अपने सारे जीवन में तुम इस शरीर का जो उपयोग करते हो, वही तुम्हारी ओर से ईश्वर को सर्वश्रेष्ठ उपहार होगा।"
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122
मनोचिकित्सक
नसरूद्दीन को एक विचित्र बीमारी हो गई. उसके इलाज के लिए वह मनोचिकित्सक के पास गया और उसे अपनी समस्या सुनाई – “डॉक्टर, मैं पिछले महीने भर से सो नहीं पा रहा हूँ. जब मैं पलंग पर सोता हूँ तो मुझे लगता है कि पलंग के नीचे कोई है. और मैं डर कर नीचे झांकता हूं परंतु पलंग के नीचे कोई नहीं होता. फिर मैं भयभीत होकर पलंग के नीचे सोता हूं तो लगता है कि पलंग के ऊपर कोई है. मैं बहुत परेशान हूं. मेरा इलाज कर दो.”
मनोचिकित्सक ने नसरूद्दीन से कहा कि तुम्हारी समस्या बड़ी विचित्र है, और इसका इलाज महंगा है और लंबा चलेगा. हर हफ़्ते तुम्हें मेरे पास मनोचिकित्सा के लिए आना होगा, जिसकी फीस 300 रुपये होगी और इलाज कोई दो वर्ष लगातार लेना होगा. इलाज की पूरी गारंटी है.
नसरुद्दीन यह सुनकर घबराया और कल बताता हूँ कह कर वह डाक्टर के पास से चला गया. दूसरे दिन नसरूद्दीन ने डॉक्टर को फ़ोन लगाया और उसे धन्यवाद देते हुए कहा कि उसकी समस्या का इलाज हो गया है. डॉक्टर को विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने पूछा कि कैसे?
“मैंने अपने पलंग के पाए ही काट दिए हैं”. नसरूद्दीन ने खुलासा किया – “न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी!”
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123
रात है कि दिन
पुराने जमाने की बात है. एक दिन धर्मगुरू ने अपने शिष्यों से पूछा कि यह कैसे समझते हो कि रात बीत गई है और दिन हो गया है?
एक ने कहा – मुर्गा बांग देता है तो समझो दिन हो गया.
गुरु ने कहा – गलत.
दूसरे ने सुझाया – जब बाहर अँधेरा खत्म हो जाता है.
गुरु ने कहा – गलत.
तीसरे ने सुझाया – जब हम बाहर देखते हैं तो पेड़ पीपल का है या वटवृक्ष है यह समझ में आ जाए तो समझो दिन हो गया.
गुरु ने कहा – गलत.
इस तरह से तमाम शिष्यों ने अपने तर्क रखे. परंतु गुरु किसी से भी सहमत नहीं हुए. अंत में छात्रों ने एक स्वर से कहा कि गुरु स्वयं बताएं कि दिन हो गया कैसे पता चलेगा.
“जब तुम किसी भी स्त्री या पुरुष के चेहरे को देखते हो तो उसमें यदि तुम्हें अपना भाई दिखता है या अपनी बहन नजर आती है तब तो समझो कि दिन हो गया, नहीं तो तुम सबके लिए अभी भी रात ही है.” – गुरु ने स्पष्ट किया.
(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
बढिया कहानियां।
हटाएंश्रृंखला की कहानियों से काफी कुछ सीख मिल रही है।
आभार।
आखिरी वाली सीख तो बवालिया है जी!
हटाएंआखिरी वाली सीख तो बवालिया है जी!
हटाएंवाह, गहन दार्शनिक तत्व..
हटाएंmuje ye book purchase karni he kaise plz give answer fast
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