आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 439 टंकी में चमत्कार काफी पुरानी बा...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
439
टंकी में चमत्कार
काफी पुरानी बात है, कई वर्ष पूर्व विजयादित्य नाम का एक राजा था जो भगवान शिव का अनन्य भक्त था। उसने संगमरमर से बने बहुत सारे शिव मंदिरों का निर्माण कराया था तथा वह हमेशा भगवान शिव को प्रसन्न करने के बारे में सोचा करता था।
एक दिन उसने सोचा – ‘सावन का पवित्र माह प्रारंभ हो चुका है। ऐसी मान्यता है कि सावन के सोमवार को भगवान शिव की आराधना करने से वे प्रसन्न होते हैं। इसलिए इस दिन कोई विशेष पूजा का आायोजन किया जाना चाहिए। पर ऐसा क्या किया जाए?’
बहुत सोचने के बाद उसके मन में एक विचार आया। क्यों न सावन के प्रत्येक सोमवार को दूध से भरे 1008 बर्तनों से शिवलिंग का अभिषेक किया जाए? वह सभी लोगों से शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का आग्रह करेगा ताकि सभी को पुण्य प्राप्त हो सके। इस आयोजन के लिए विशेष रूप से एक टंकी खोदी गयी जिसमें सारा दूध एकत्र होना था।
कुछ दिनों बाद राजा ने नगर के बीचोबीच यह मुनादी करा दी – ‘सुनो, सुनो, सारे नगर वासियों सुनो! कल सावन का पहला सोमवार है और हमारे यशस्वी राजा ने दूध से भरे 1008 बर्तनों से शिवलिंग का अभिषेक करने का निर्णय लिया है। नगर के सभी निवासियों को कल प्रात:काल मंदिर में आना अनिवार्य है तथा जितना भी दूध घर में हो, अपने साथ लायें और मंदिर की टंकी में डाल दें। याद रहे! आपको अपने घर में मौजूद सारा दूध लाना है ताकि वह टंकी पूरी भर जाए। इससे भगवान शिव प्रसन्न हो जायेंगे और हम सभी को अपना आशीर्वाद देंगे।’
सभी नगरवासी राजा की घोषणा सुनने के लिए वहां एकत्रहो गए। कुछ लोग राजा की ईश्वर भक्ति देखकर बहुत खुश हुए। उनमें से कुछ लोग ऐसे भी थे जो अभिषेक के लिए सारे दूध को चढ़ाने के इच्छुक नहीं थे। लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा और सभी वहां से चले गए।
अगले दिन तड़के ही लोग दूध का पात्र ले-लेकर मंदिर पहुंचने लग गए। बहुत बड़ी संख्या में लोगों के आने से जल्द ही मंदिर के सामने लंबी सर्पाकार कतार लग गयी। सभी लोग अपने घर में मौजूद सारा दूध लकर आए और उन्होनें बछड़े के लिए भी एक बूंद दूध नहीं छोड़ा। उस दिन नवजात, बच्चे, बूढ़े और बीमार किसी को दूध नसीब नहीं हुआ क्योंकि सारा दूध ले जाकर टंकी में डाल दिया गया।
जैसे – जैसे समय व्यतीत हुआ, टंकी में दूध का स्तर बढ़ने लगा। हालाकि दोपहर तक सिर्फ आधी टंकी दूध ही भर पाया। खाली पात्रों की संख्या को ध्यान में रखते हुए सभी का यह अचंभा हुआ कि अब तक आधी टंकी ही क्यों भर पायी है।
धीरे-धीरे मंदिर के अहाते में मौजूद पुजारी एवं अन्य लोग व्याकुल होने लगे कि आखिर हो क्या रहा है? भीड़ में से असंतोष के स्वर सुनायी देने लगे। कोई फुसफुसाया – ‘लगभग सारे नगर ने दूध इस टंकी में उड़ेल दिया है फिर भी यह भर क्यों नहीं रही? क्या यह भगवान शिव के नाराज होने के लक्षण हैं? क्या हमने अनजाने में कोई पाप कर दिया है? ’ पुजारी भी बहुत दु:खी थे।
किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया कि एक बूढ़ी महिला मंदिर परिसर में फिसल गयी है। वह नगर के आखिरी सिरे पर रहती थी। वह तड़के जल्दी उठ गयी थी एवं उसने गाय का दूध निकालने के बाद कुछ दूध बछड़े के लिए छोड़ दिया था। फिर उसने अपने सारे परिवार को दूध पीने को दिया तथा घर-गृहस्थी के कामकाज निपटाये। इसके बाद सिर्फ एक छोटा कटोरा भर दूध ही शेष बचा। वह उतने ही दूध को मंदिर ले गयी और टंकी में उड़ेलते हुए ईश्वरसे प्रार्थना की – ‘हे परमपिता परमात्मा, मेरे पास आपको देने के लिए सिर्फ यही है। लेकिन मैं इसे पूरी श्रृद्धा के साथ आपको अर्पित करती हूं। कृपया मेरी भेंट स्वीकार करें।’
अब तक आधी भरी हुयी टंकी पूरी भर गयी। वह बूढ़ी महिला विनम्रतापूर्वक उसी तरह अपने घर लौट गयी, जैसे आयी थी। जब राजा और पुजारी टंकी को देखने आये तो टंकी को पूरा भरा देख खुशी से उछल पड़े। भलीभांति विशेष पूजा-अर्चना संपन्न हुयी।
यही घटना अगले सोमवार भी हुयी। सभी नगरवासियों ने टंकी में दूध उड़ेल कर अपने कर्तव्य का पालन किया। लेकिन फिर भी टंकी आधी ही भर पायी। इसके बाद जब उस बूढ़ी महिला ने दूध डाला तो टंकी पूरी भर गयी। सभी लोग इस चमत्कार को देखकर दंग रह गए।
राजा ने इस रहस्य से पर्दा उठाने का निर्णय लिया। इसलिए तीसरे सोमवार वह दरबान के भेष में तड़के सुबह ही टंकी के पास तैनात हो गए।
हमेशा की ही तरह नगरवासियों ने टंकी में दूध उड़ेला किंतु टंकी आधी ही भर पायी। फिर वह बूढ़ी महिला आयी और दूध डालने के पूर्व ईश्वर से निवेदन करने लगी – ‘हे भगवान शिव, मेरे पास आपको अर्पित करने के लिए इतना ही दूध है। आप तो करुणा के सागर हैं। कृपया मेरे अर्पण को स्वीकार कर आशीर्वाद प्रदान करें।’
फिर उसने टंकी में दूध उड़ेल दिया। जैसी ही वह वापस जाने को मुड़ी, राजा यह देखकर अचंभित हो गए कि टंकी लबालब भर गयी है।
उन्होंने आगे बढ़कर उस महिला को रोका। डर के मारे कांपती हुयी महिला ने पूछा – ‘आप मुझे क्यों रोक रहे हैं? क्या मैंने कोई गलती कर दी है?’
राजा ने कहा – ‘माताजी, आप डरें मत, मैं राजा हूं और मैं आपके बारे में कुछ जानना चाहता हूं। इस टंकी में सभी नगरवासी दूध डाल रहे हैं। लेकिन फिर भी यह आधी से अधिक नहीं भरी किंतु जैसे ही आपने दूध डाला, यह टंकी पूरी भर गयी। आप बता सकती हैं कि ऐसा क्यों हुआ?’
बूढ़ी महिला ने उत्तर दिया – ‘महाराज, मैं एक माँ हूं और कोई माँ अपने बच्चे को भूखा रहते नहीं देख सकती। इसलिए मैंने आपकी आज्ञा का उल्लंघन किया। गाय का दूध लगाते समय मैंने थोड़ा सा दूध बछड़े के लिए छो़ड़ दिया, इसके बाद मैंने अपने बच्चों और नाती-पोतों को पीने के लिए दूध दिया और शेष बचा हुआ दूध पूजा के लिए लेकर आयी। ईश्वर भी माँ के समान है। वह अपने बच्चों को भूखा नहीं देख सकता। आप मुझे साफगोई से बोलने के लिए क्षमा करें किंतु आपने यही किया है। आपने अपनी प्रजा को सारा दूध पूजापाठ के लिए लाने को आदेश दिया था जिससे बछड़ों, छोटे बच्चों, बूढ़ों और बीमारों के लिए कुछ भी नहीं बचा। लोग अप्रसन्न थे किंतु आपका विरोध नहीं कर सके। लोगों ने हिचकिचाहट के साथ दूध अर्पित किया। ईश्वर को यह पसंद नहीं है और अपनी अप्रसन्नता दर्शाते हुए उन्होंने आपकी आहूति स्वीकार नहीं की।’
यह सुनते ही राजा विचारों में खो गए और सोचने लगे कि यह महिला सही कह रही है। एक राजा को भी एक माँ की तरह ही आचरण करना चाहिए तथा सभी के स्वास्थ्य और खुशियों का ध्यान रखना चाहिए। लेकिन मैं सभी को अपनी पूजा के लिए दूध देने के लिए विवश करके बहुत बड़ा पाप कर रहा था। अब मुझे ईश्वर का आशीर्वाद कैसे प्राप्त होगा? राजा को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुयी।
दस बुजुर्ग महिला को संबोधित करते हुए वह बोला -‘माताजी, मैं आपका आभारी हूं कि आपने मुझे सच्ची भक्ति का मार्ग दर्शाकर मेरी आँखें खोल दीं।’
राजा ने तुरंत यह मुनादी करायी कि अगले सोमवार को सिर्फ उतना ही दूध पूजा अर्चना के जिए लाया जाये जो बछड़े, बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों को देने के बाद शेष बचे।
सावन के अगले और अंतिम सोमवार को भी मंदिर में दूध चढ़ाने वाले भक्तों की लंगी कतार लग गयी। हालाकि इस बार सभी लोग अपनी सुविधा के अनुसार ही दूध लाये। राजा ने भी ऐसा ही किया। इसके परिणाम आश्चर्यजनक रहे। सुबह समाप्त होने के पूर्व ही टंकी दूध से भर गयी।
प्रसन्नचित्त राजा उस बुजुर्ग महिला के आने का इंतजार करने लगा। महिला द्वारा दूध अर्पित करने के बाद राजा उसे लेकर मंदिर के भीतर गए और दोनों ने एकसाथ पूजा-अर्चना की।
राजा ने घोषणा की - ‘धन्यवाद माताजी, आपकी कृपा से अंततः ईश्वर मुझसे प्रसन्न हो ही गए।’
(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
मन से दिये थोड़े को ईश्वर पूरा कर डालता है..
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