आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 279 शेर, गधा और लोमड़ी शिकार पर गए ए...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
279
शेर, गधा और लोमड़ी शिकार पर गए
एक दिन शेर, गधा और लोमड़ी एक साथ शिकार पर गए। उन्होंने आपस में यह तय किया कि वे जो भी शिकार करेंगे, उस आपस में बांट लेंगे। उन्होंने एक बारहसिंगा मार गिराया। शेर ने गधे से उसका बंटवारा करने को कहा। गधे ने उसके तीन बराबर भाग कर दिए और उसने अपने दोनों मित्रों से अपना हिस्सा लेने के लिए कहा। यह सुनकर शेर को गुस्सा आ गया और उसने गधे पर हमला करके उसे मार डाला। तब उसने लोमड़ी से बारहसिंगा का आपस में बंटवारा करने को कहा। लोमड़ी ने अपने लिए जरा सा हिस्सा बचाकर शेष हिस्सा शेर को दे दिया।
शेर बोला - "मेरे मित्र! किसने तुम्हें इतना अच्छा बंटवारा करना सिखाया है।"
"मुझे गधे का अंजाम याद है और मुझे इससे ज्यादा सबक लेने की आवश्यकता नहीं है।" - लोमड़ी ने उत्तर दिया।
"स्वयं गलती करने से बेहतर है दूसरों द्वारा की गई गलती से सबक लेना।"
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बेंजो की तलवार का वार
माटाजूरो एक प्रसिद्ध तलवारबाज का पुत्र था। उसके पिता का यह मानना था कि माटाजूरो एक अच्छा तलवारबाज नहीं है।
एक अच्छा तलवारबाज बनने के लिए माटाजूरो माउंट फुटारा नामक पर्वत पर पहुंचा जहां उसकी मुलाकात प्रसिद्ध तलवारबाज बेंजो से हुई। बेंजो ने भी माटाजूरो के पिता की बात से अपनी सहमति जतायी और बोला - "तुम मुझसे तलवारबाजी के गुर सीखना चाहते हो। पर मुझे लगता है कि तुम कुछ आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते।"
उसकी बात सुनकर माटाजूरो बोला - "यदि मैं कठोर परिश्रम करूं तो कितने दिन में श्रेष्ठ तलवारबाज बन जाऊंगा?"
बेंजो ने कहा - "पूरा जीवन।"
"मैं इतना इंतजार तो नहीं कर सकता। यदि आप मुझे प्रशिक्षण दें तो मैं कितनी भी मेहनत करने को तैयार हूं। और यदि मैं आपका स्वामी भक्त सेवक बन जाऊं तो मुझे कितना समय लगेगा?" - माटाजूरो बोला।
बेंजो ने उत्तर दिया - "शायद दस वर्ष।"
यह सुनकर माटाजूरो ने कहा - "मेरे पिता वृद्ध हो रहे हैं और मुझे उनकी सेवा करनी होगी। यदि मैं और भी अधिक मेहनत करूं तो मुझे कितना समय लगेगा? "
बेंजो ने उत्तर दिया - "तब शायद तीस वर्ष लगेंगे।"
माटाजूरो ने विस्मयपूर्वक कहा - "ऐसा कैसे? अभी आप कह रहे थे दस वर्ष लगेंगे, अब आप कह रहे हैं कि तीस वर्ष लगेंगे। मैं किसी भी कीमत पर कम से कम समय में तलवारबाजी में महारत हासिल करना चाहता हूं।"
"अच्छा। इसके लिए तो तुम्हें मेरे साथ लगभग सत्तर वर्ष रहना होगा। जितनी जल्दीबाजी तुम्हें हैं ऐसे में तो कभी - कभी ही कोई व्यक्ति तलवारबाजी सीख पाता है।" - बेंजो ने चुटकी ली।
अब जाकर माटाजूरो को समझ में आया कि बेंजो उसे धैर्य धारण करना सिखा रहे थे। वह बोला - "मैं सहमत हूं, मेरे स्वामी।"
माटाजूरो को यह हिदायत दी गई कि वह तलवारबाजी के बारे में एक भी शब्द मुँह से न निकाले और कभी भी तलवार को हाथ न लगाये। माटाजूरो ने तलवारबाजी के बारे में एक भी शब्द मुँह से निकाले बिना बेंजो के कपड़े धोये, बर्तन मांजे, बिस्तर लगाया, माली का काम किया और घर की सफाई की।
ऐसा करते - करते तीन वर्ष गुजर गए। अपने भविष्य को लेकर वह उदास रहता। जिस विद्या को सीखने के लिए उसने अपना जीवन दांव पर लगा रखा था, उसका वह एक भी गुर नहीं सीख सका था।
एक दिन बेंजो ने लकड़ी की तलवार से उसके ऊपर जोरदार प्रहार किया। अगले दिन जब माटाजूरो चावल बना रहा था, बेंजो ने पुनः उसके ऊपर अप्रत्याशित हमला किया।
उसके बाद माटाजूरो को दिन - रात बेंजो के हमले के प्रति सजग रहते हुए अपना बचाव करना पड़ता। दिनभर में ऐसा कोई लम्हा नहीं बीतता जब बेंजो की तलवार का वार माटाजूरो के ध्यान से ओझल हो।
वह इतनी तेजी से तलवारबाजी सीखा कि बेंजो खुश हो गया। अंततः माटाजूरो अपने देश का सर्वश्रेष्ठ तलवारबाज बना।
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तो, लिखते क्यों नहीं!
मुल्ला को एक बार कॉलेज में विद्यार्थियों को लेखन कला विषय पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया.
मुल्ला ने अपना आख्यान इस प्रश्न से प्रारंभ किया – “यहाँ विद्यार्थियों में जो सचमुच लेखक बनना चाहते हैं वे अपना हाथ ऊँचा करें?”
सबने अपने हाथ ऊँचे कर दिए. जाहिर सी बात थी क्योंकि व्याख्यान लेखन कला पर था और इसमें दिलचस्पी लेने वालों का ही जमावड़ा था.
“तो आप सभी को मेरी सलाह है कि” मुल्ला ने अपना व्याख्यान समाप्त किया - “यहाँ झख मारने के बजाए आप सभी अपने अपने घर जाएँ और तुरंत लिखना शुरू करें.”
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सर्वस्व न्योछावर
महात्मा गांधी चरखा संघ के लिए धन जुटाने गांव गांव की यात्रा कर रहे थे. ओड़िसा में उनके भाषण के पश्चात् लोग यथा शक्ति अपनी ओर से सहयोग राशि जमा कर रहे थे.
फटे पुराने कपड़े पहने एक वृद्धा भी वहाँ थी. वह महात्मा गांधी के पास पहुँची और उसने तांबे की इकन्नी गांधी जी के चरणों में रख दी. गांधी जी ने उस सिक्के को बड़े ही एहतियात और जतन से रखा.
चरखा संघ के फंड का हिसाब किताब जमनालाल बजाज करते थे. गांधी जी ने वह सिक्का जमनालाल को भी नहीं दिया. जमनालाल ने हँसते हुए कहा कि मैं संघ के हजारों रुपयों का हिसाब रखता हूँ और आपको इस इकन्नी के लिए मुझ पर भरोसा नहीं हो रहा है.
महात्मा गांधी ने स्पष्ट किया – यह इकन्नी हजारों रुपयों से भी ज्यादा मूल्यवान है. यदि किसी के पास लाखों रुपये हैं और वह उनमें से कुछेक हजार दे दे तो उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं. मगर इस गरीब वृद्धा का तो यह इकन्नी ही सर्वस्व है. उसने अपना सर्वस्व संघ को दान कर दिया है. इसीलिए यह सर्वाधिक मूल्यवान है.
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
मुल्ला ने कहा कि लिखना चाहते हो तो झख क्यों मार रहे हो, टिप्पणी क्यों नहीं करते।
जवाब देंहटाएंसो किये दे रहा हूं!
माटाजूरो की कथा…बहुत अच्छी लगी…
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