ईमानदारों के प्रयास ने रंग लाया और अंततः भारतीय इतिहास में पहली ईमानदार सरकार भारी बहुमतों से चुन ली गई. जनता ने भ्रष्ट उम्मीदवारों, भ्रष्...
ईमानदारों के प्रयास ने रंग लाया और अंततः भारतीय इतिहास में पहली ईमानदार सरकार भारी बहुमतों से चुन ली गई. जनता ने भ्रष्ट उम्मीदवारों, भ्रष्ट पार्टी के उम्मीदवारों की जमानतें जब्त करवा दीं. और इस तरह आखिरकार भारत की पहली ईमानदार सरकार ने शपथ ले ही लिया. अत्यंत प्रसन्नता की बात थी कि अब प्रधान मंत्री भी ईमानदार थे, वित्त मंत्री भी और दूरसंचार मंत्री भी. यहाँ तक कि विपक्ष के नेता भी ईमानदार थे और लोकसभा अध्यक्ष भी. जब प्रत्येक संसद सदस्य ईमानदार होगा तो ये सब तो ईमानदार होंगे ही.
देश भर में हफ़्ते भर तक जश्न चलता रहा. चहुँओर खूब जुलूस निकाले गए, फटाके फोड़े गए, आतिशबाजियाँ हुईं. ईमानदारी के गुण गाए गए. जीते हुए ईमानदार प्रत्याशियों ने घर घर घूम घूम कर तमाम वोटरों को धन्यवाद दिया जिन्होंने अपने ईमानदार मतों का उतनी ही ईमानदारी से प्रयोग कर उन्हें बड़ी ईमानदारी से जिताया था.
भोंदूराम भी बड़ा ईमानदार था. दरअसल अब तक उसके पास बेईमानी करने का न तो कोई संसाधन था और न तरीका. वो एक दिहाड़ी मजदूर था. सुबह काम पर निकलता, शाम तक काम करता, अपनी रोजी कमाता और मजे में रहता. ऐसे में उसके पास ईमानदारी के अलावा और क्या मिलता भला? उसने भी उत्साह में आकर अपना ईमानदार वोट ईमानदार प्रत्याशी को दिया था जिसके फलस्वरूप देश की पहली ईमानदार सरकार बनी थी. हफ्ते भर वो भी अपना भूख प्यास भूल कर देश के पहले ईमानदार सरकार बनने के उत्सव में डूबा रहा था.
हफ़्ते भर बाद वो फिर से काम पर गया. पता चला कि काम बन्द है. वो पैटी कांट्रैक्टर के पास गया. पूछा भई, काम क्यों बंद है. पैटी कांट्रैक्टर ने बताया कि ईमानदार सरकार आ गई है, अब सब कुछ ईमानदारी से होगा इसीलिए अभी काम बन्द है. और काम कब तक चालू होगा इसकी कोई गारंटी नहीं. भोंदूराम के सामने तो जैसे खाने-पीने की समस्या आ गई. उसे लगा कि अरे! ये उसने क्या कर डाला! उसने ये कैसी ईमानदार सरकार चुन ली! हे भगवान!!!
इधर पैटी कांट्रैक्टर को कांट्रैक्टर ने कह दिया था कि चूंकि ईमानदार सरकार आ गई है अतः आगे कांट्रैक्ट मिलने की कोई गुंजाइश नहीं है, इसीलिए वो अपना कोई दूसरा धंधा देख ले. पैटी कांट्रैक्टर को धक्का लगा. उसने भी ईमानदार सरकार बनाने में एक वोट का अपना योगदान दिया था. पर इससे तो उसका धंधा ही चौपट हो गया था. अरे! ये तो बहुत बुरा हुआ!
कांट्रैक्टर, चीफ इंजीनियर से चालीस परसेंट सेट कर कांट्रैक्ट हथियाता था तो उसे मालूम था कि ईमानदार सरकार आ गई है तो अब ऐसी दाल गलनी नहीं है. उसे भी कांट्रैक्टरी में नए रीति-रिवाज सीखने होंगे तब तक वेट एंड वाच.
चीफ इंजीनियर की नौकरी के छः महीने बचे थे. पहले की सरकार में उसे पूरी उम्मीद थी कि मंत्रालय में एक खोखा भेंट देने पर उसे एक्सटेंशन मिल जाएगा पर अब तो ईमानदारी का तख्तापलट हो गया था. करोड़ों के एस्टीमेट और वर्कऑर्डर अब उसे मुँह चिढ़ाते थे - ईमानदारी के कीटाणुओं से घेला भर कमीशन मिलने की उम्मीद नहीं दिखती थी. तो वह पेंशन की उम्मीद में अपना टाइम पास करने लगा और फ़ाइलों को दूर से नमस्कार करने लगा. लोग फ़ाइलों के बारे में काम की स्वीकृति के बारे में पूछते तो वो कहता - भई, ईमानदारी से उस पर काम जारी है.
कमोबेश यह स्थिति चहुँओर होने लगी. लोगों के पासपोर्ट बनने बंद हो गए - ईमानदारी से बनने में वक्त तो लगता है. ड्राइविंग लाइसेंस मिलना दूभर हो गया - ईमानदारी से ड्राइविंग टेस्ट देने में अधिकांश भारतीय जनता फेल होने लगी. राशनकार्ड बनने बंद हो गये - पता चला कि भारत की अधिकांश जनता तो बांग्लादेशी है जिन्हें ईमानदारी से राशनकार्ड दिया ही नहीं जा सकता. बाजारों से सामान गायब होने लगे - ईमानदारी से ऑक्ट्रॉय और उत्पाद शुल्क भरने के चक्कर में कंपनियों को घाटा होने लगा तो उन्होंने प्रोडक्शन ही बंद कर दिया.
इधर ईमानदार नेताओं के घरों बंगलों में ईमानदार कार्यकर्ता अपने अपने ईमानदार कार्यों को करवाने के लिए डोलने लगे. ईमानदार नेता हर काम को ईमानदारी से करने के लिए अफसरों से बोलते थे. चूंकि सरकार ईमानदार हो गई थी, अफसर भी ईमानदार हो गए थे तो वे बड़ी ईमानदारी से हर काम की परख करते थे और नियमानुसार करने के लिए अपने मातहतों को लिखते थे. ईमानदारी का जुनून हर सर पर चढ़ कर बोल रहा था तो कर्मचारी भी पहले आओ पहले पाओ के तहत बड़ी ईमानदारी से काम में जुटे थे. ईमानदारी की रौ में उन्हें ऊपरी कमाई से दूर रहना था तो वे फ़ाइलों में अपनी पूरी तवज्जो देते और पूरी ईमानदारी से बारीक से बारीक नुक्स निकाल कर - यहाँ तक कि टाइपिंग त्रुटियों की ओर भी इंगित कर स्वीकृत किए बगैर उन्हें दुरुस्त करने के लिए वापस लौटा देते.
स्थिति ये हो गई कि सरकार की और जनता की ईमानदारी की वजह से हर काम हर जगह अटकने लगे. हालात ये हो गए कि लोगों के घरों में गैस टंकी पहुँचनी बंद हो गई तो वे भूखे मरने लगे.
आखिर में वही हुआ जिसका अंदेशा था. जनता और कार्यकर्ता ईमानदार नेताओं और ईमानदार सरकार से आक्रोशित होने लगे. ईमानदार नेताओं को कहीं जूते मारे जाने लगे तो कहीं ईमानदार नेताओं का मुंह काला ईमानदार गधों की सवारी करवाई जाने लगी. ईमानदार नेताओं के पुतले फूंके जाने लगे. ईमानदार अफसरों की पिटाई होने लगी.
ईमानदार सरकार को महीने भर बीता नहीं था कि जनता त्राहिमाम! त्राहिमाम!! करने लगी.
और, महीने बीतते बीतते देश में एक पूर्ण क्रांति हो गई. सरकार का तख्ता पलट गया. ईमानदार सरकार के कुछ नेताओं ने ईमानदार पार्टी छोड़ी, एक नई न्यू-भारतीय-ईमानदार पार्टी बनाई और पुरानी सरकार को गिराकर नया सरकार बना लिया. जल्द ही भारतीय कामकाज पुराने ढर्रे पर वापस आ गया और भारतीय जनता ने चैन की सांस ली.
भारतीयों के दिन वापस फिर गए और भारतीयों ने चैन की सांस लेनी शुरू की. भोंदूराम को वापस मजदूरी का काम मिल गया था.
ईमानदारी से पहली - पहली टिप्पणी..निर्दलीय पार्टी से ....चैन से ........
हटाएंभैया जी आपने क्या लिख दिया आज रात नींद कैसे आएगी . इतना कठिन और सही चित्रण कैसे पचेगा ...फिर भी खुबसूरत और यथार्थ
हटाएंईमानदारी से दूसरी टिप्पणी...हम नही सुधरेगें...देश जाए भाड़ मे
हटाएंबड़ी सफ़ल और शानदार रही ईमानदारी की सरकार!
हटाएंसपने दिखा कर डराना अच्छी बात नहीं है...पर यह तो सच है आज का..
हटाएंये भी उतनी ही उम्दा है
हटाएंभारतीयों के दिन वापस फिर गए और भारतीयों ने चैन की सांस लेनी शुरू की. भोंदूराम को वापस मजदूरी का काम मिल गया था.
हटाएंजैसे दिन भोंदूराम के फिरे, ऐसे सबके फिरें.
यह अन्ना की हार नहीं हमारी कुटिल राजनीति की जीत है.पर कब तक...?
हटाएंसुन्दर चित्रण. हम तो भयग्रस्त भये.
हटाएंWE ARE LUCKY TO HAVE SUCH GREAT THOUGHT. THIS GREAT THOUGHT KEPT US HAVING A GOOD JOB FOR BHONDU RAM.
हटाएंऐसी इमानदारी गई तेल लेने....
हटाएंबस आने वाली है इमानदार पार्टी!
हटाएंये शेर भ्रष्टाचार के लिए ही लिखा गया होगा...
हटाएंगुज़र तो जाएगी तेरे बगैर भी लेकिन,
बहुत उदास बहुत बेक़रार गुज़रेगी...
ईमानदार पार्टी होश में आओ...
ईमानदारी से कहूँ तो आपकी इस पोस्ट पर टिप्प्णी करना कम लग रहा है। आप पर न्यौछावर होने को जी चाह रहा है। विश्वास कीजिए, परसाईजी और शरद जोशी केकुछ निबन्धों की तरह ही, आपकी यह पोस्ट, अनेक पत्र/पत्रिकाओं में स्थान पाएगी और तदोपरान्त समुचित प्रशंसा भी।
हटाएंफिलहाल तो मैं इसे फेसबुक पर साझा कर रहा हूँ।
Creating a honest system is no achievement if system is not efficient.
हटाएंसरकार को ईमानदार बनाना यह प्रयास होना चाहिये।
हटाएंआप गजब धार में व्यंग्य लिखे हैं ।
न्यू से अल्ट्रा न्यू पार्टी भी आएगी... सिलसिला चलता रहना चाहिए
हटाएंशानदार व्यंग्य
हटाएंbehad sundar, bilkul raveendranath tyagi jee ki takkar ka. waah
हटाएंkya karara javab hai apka beimani ke upar gazab ka saval prastut kiya hai aapne apne is lekh me ek aisa sawal jiska jawab har kisi ke pass hai par koi dena hi nahi chahta... shayad mai bhi nahi
हटाएंkya karara javab hai apka beimani ke upar gazab ka saval prastut kiya hai aapne apne is lekh me ek aisa sawal jiska jawab har kisi ke pass hai par koi dena hi nahi chahta... shayad mai bhi nahi
हटाएंअति किसी भी चीज की अच्छी नहीँ होती फिर वो चाहे इमानदारी हो या बेइमानी।
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