आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 271 शिकार एक दिन सुल्तान ने नसरुद्दीन ...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
271
शिकार
एक दिन सुल्तान ने नसरुद्दीन को अपने साथ भालू के शिकार पर चलने को कहा। नसरुद्दीन जाना नहीं चाहता था पर सुल्तान को खुश करने के लिए वह साथ में जाने को तैयार हो गया।
शिकार पर गया दल जब शाम को लौटा तो सभी लोग उनसे यह जानने को उत्सुक थे कि शिकार कैसा रहा और उन्होंने नसरुद्दीन से इसके बारे में पूछा।
नसरुद्दीन बोला - "बेहतरीन" !
लोगों ने फिर उत्सुकतावश पूछा - "तुमने कितने भालू मारे?"
"एक भी नहीं "- नसरुद्दीन बोला।
"तो तुमने कितने भालुओं का पीछा किया?"- उन्होंने पूछा।
"एक भी नहीं " - नसरुद्दीन फिर बोला।
"तो तुम्हें कितने भालू दिखायी दिए?"- उन्होंने पूछा।
"एक भी नहीं "- नसरुद्दीन बोला।
"तो तुमने कितने भालुओं का पीछा किया?"- उन्होंने उत्सुकतावश पूछा।
"एक भी नहीं "- नसरुद्दीन बोला।
तो फिर तुम यह कैसे कह सकते हो कि शिकार बेहतरीन रहा? - एक व्यक्ति ने कहा।
नसरुद्दीन ने मुस्कराते हुए कहा।- "महोदय! यह जान लीजिये, कि जब आप भालू जैसे खतरनाक जानवर के शिकार पर हों तो सबसे अच्छी बात यही है कि उससे आपका सामना ही न हो। "
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संघर्ष की महत्ता
एक व्यक्ति को तितली का एक कोकून मिला, जिसमें से तितली बाहर आने के लिए प्रयत्न कर रही थी. कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया था जिसमें से बाहर निकलने को तितली आतुर तो थी, मगर वह छेद बहुत छोटा था और तितली का उस छेद में से बाहर निकलने का संघर्ष जारी था.
उस व्यक्ति से यह देखा नहीं गया और वह जल्दी से कैंची ले आया और उसने कोकून को एक तरफ से काट कर छेद बड़ा कर दिया. तितली आसानी से बाहर तो आ गई, मगर वह अभी पूरी तरह विकसित नहीं थी. उसका शरीर मोटा और भद्दा था तथा पंखों में जान नहीं थी. दरअसल प्रकृति उसे कोकून के भीतर से निकलने के लिए संघर्ष करने की प्रक्रिया के दौरान उसके पंखों को मजबूती देने, उसकी शारीरिक शक्ति को बनाने व उसके शरीर को सही आकार देने का कार्य भी करती है. जिससे जब तितली स्वयं संघर्ष कर, अपना समय लेकर कोकून से बाहर आती है तो वह आसानी से उड़ सकती है. प्रकृति की राह में मनुष्य रोड़ा बन कर आ गया था, भले ही उसकी नीयत तितली की सहायता करने की रही हो. नतीजतन तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और जल्द ही काल कवलित हो गई.
संघर्ष जरूरी है हमारे बेहतर जीवन के लिए.
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शायद ऊपर कोई रास्ता निकल आए
कुछ बच्चों ने तय किया कि मुल्ला नसरूद्दीन को परेशान करने के लिए जब मुल्ला कहीं चप्पल निकाले तो उसे छुपा दिया जाए.
उन्होंने एक उपाय निकाला. जब मुल्ला पास से गुजर रहा था तो मुल्ला को सुनाने के लिए एक बच्चे ने दूसरे से जोर से कहा – “सामने वाले पेड़ पर कोई भी नहीं चढ़ सकता, और मुल्ला तो कभी भी नहीं.”
मुल्ला ठिठका, पेड़ को देखा जो कि बेहद छोटा और शाखादार था. “कोई भी चढ़ सकता है इस पर – तुम भी. देखो मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि कैसे.” ऐसा कह कर उसने अपनी चप्पलें निकाली और उन्हें अपनी कमरबंद में खोंसा और पेड़ पर चढ़ने लगा.
“मुल्ला,” बच्चे चिल्लाए क्योंकि उनका प्लान फेल हो रहा था – “ऊपर पेड़ में तुम्हारे चप्पलों का क्या काम?”
“इमर्जेंसी के लिए हमेशा तैयार रहो,” मुल्ला ने मुस्कुराते हुए बात पूरी की – “क्या पता ऊपर कोई रास्ता मिल ही जाए”
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
इमर्जेंसी के लिए हमेशा तैयार रहो, क्या पता कोई पोस्ट टिप्पणी करने लायक मिल ही जाये! :-)
हटाएंप्रकृति की योजना में अपना दिमाग नहीं लगाना चाहिये।
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