ब्लॉग - विज्ञापनों के लिए नया, सशक्त माध्यम उस परिस्थिति की कल्पना करें जब आपको एक ऐसा माध्यम दिया जाता है जिसके जरिए आप ताजा तरीन घटनाओ...
ब्लॉग - विज्ञापनों के लिए नया, सशक्त माध्यम
उस परिस्थिति की कल्पना करें जब आपको एक ऐसा माध्यम दिया जाता है जिसके जरिए आप ताजा तरीन घटनाओं पर अपनी बेलौस राय व्यक्त कर सकते हों या नए उभरते विचारों और धारणाओं पर अपनी नजर डाल सकते हों या फिर नए उत्पाद व तकनॉलाज़ी की समीक्षा कर सकते हों. क्या यह आपको वरदान सदृश्य नहीं लगता जहाँ आप बिना किसी दबाव या पूर्वाग्रह के अपने विचारों को स्वतंत्रता पूर्वक सबके सामने रख सकते हैं?
जी हाँ, ब्लॉग के आने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने नए आयामों को छुआ है. देखा गया है कि प्रत्येक नया, नायाब कदम, नया इतिहास रचता है. जब ऐसे विचार सफल और प्रसिद्ध हो जाते हैं तो उनमें व्यापार और वाणिज्य की संभावनाएँ भी लोगों को दिखाई देने लगती हैं - और जल्दी ही दिखाई देने लगती हैं. अब तो ब्लॉग भी सक्षम विज्ञापनों के सफल माध्यम के रुप में इस्तेमाल किए जाने लगे हैं. ब्लॉग के साथ विज्ञापनों को प्रायोजन, विज्ञापन या सम्बद्धन - इन तीन प्रकारों से इस्तेमाल किया जा रहा है.
प्रायोजन (स्पांसरशिप) : यदि कोई ब्लॉग क्रिकेट के बारे में है, तो क्रिकेट के सामानों का उत्पादक उस ब्लॉग को प्रायोजित (स्पांसर) कर सकता है. इस तरह से उनके उत्पादों के विज्ञापनों के लिए एक स्थान मिल सकेगा और ब्लॉग को पैसा. साथ ही, यह सब सन्दर्भयुक्त होगा, न कि उस तरह का गैर संदर्भित - जहाँ कि किसी गंजे को शैम्पू या कंघी बेचने का प्रयास किया जा रहा हो. जाहिर है, इस तरह का एकीकरण सबके लिए मददगार होता है.
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विज्ञापन: ब्लॉग के विषय-सामग्री से संबंधित सामग्रियों के विज्ञापनों को गूगल के एडसेंस व ब्लॉगएड्स के जरिए बेहतर तरीके से प्रभावी बनाया जा सकता है. ब्लॉग के पाठकों को यह गैर संदर्भित व गैर जरूरी भी नहीं लगेगा व वे ऐसे विज्ञापनों के जरिए अतिरिक्त जानकारियों को प्राप्त करने की आशा करेंगे - चूंकि वे ब्लॉग तथा संदर्भित विज्ञापनों में उस तरह की सामग्री को पढ़ रहे होते हैं जिनमें उनकी रुचि है. यह एक तरह का आकर्षण प्रभाव ही है जो निश्चित रूप से ज्यादा प्रभावी होता है.
समबद्धन (एफ़िलिएट्स): पुस्तक प्रकाशकों के साथ साझेदारी तथा सहयोग भी बहुत काम का होगा. यदि कोई पाठक कला विषयक ब्लॉग को पढ़ रहा हो, तो उसे ब्लॉग स्थल पर ही कला विषयक पुस्तकों, उनके प्रकाशक व विक्रय कर्ता के बारे में बताना बुद्धिमानी ही होगी. उदाहरण के लिए, http://www.drawn.ca/ कला, कार्टून व ड्राइंग पर समर्पित ब्लॉग है. इसका प्रयोजन है कला विषयक विविध संसाधनों व कड़ियों को एक ही स्थल पर उपलब्ध करवाकर पाठकों में सर्जनात्मक रुचि जगाना. सार तत्व यह कि यह समस्त विश्व के कला प्रेमियों को एक स्थल पर जोड़कर लाता है तथा उनके लिए रूचिपूर्ण, उपयोगी जानकारियों को प्रस्तुत करता है - जिनमें कला से सम्बन्धित वस्तुओं के विज्ञापन भी हैं. कला प्रेमियों को एक ही स्थल पर ऐसी सुविधाएँ मिलें तो यह विचार निश्चित रूप से सफल है.
विज्ञापनों के लिए सार्थक, शक्तिशाली माध्यम के रुप में ब्लॉग की पहचान बन चुकी है. पीक्यू मीडिया द्वारा जारी एक रपट के मुताबिक, वैकल्पिक मीडिया उद्योग के रुप में ब्लॉग, पॉडकास्ट तथा आरएसएस के जरिए विज्ञापनों के खर्च में पिछले वर्ष सर्वाधिक वृद्धि देखी गई. वर्ष 2005 में इन सभी माध्यमों में विज्ञापनों में कुल एक अरब रुपयों से अधिक खर्च किए गए जो कि पिछले वर्ष से 198.4 प्रतिशत अधिक था. वर्ष 2006 के लिए अनुमान है कि इसमें अतिरिक्त 144.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होगी और कुल ढाई अरब रुपयों से अधिक के विज्ञापन इन माध्यमों में दिए जाएंगे. अपने उत्पादों के बारे में कई तरह के आंतरिक जानकारियों तथा फ़ीडबैक प्राप्त करने में कंपनियों के लिए ब्लॉग महत्वपूर्ण हैं. बहुत बार सुधारों अथवा बेहतर संस्करणों के लिए सुझाव आंतरिक उत्पाद विकास विभाग से नहीं आता बल्कि ब्लॉगरों जैसे नेट-प्रयोक्ताओं से आता है. एचपी तथा सन माइक्रोसिस्टम जैसी कंपनियाँ अपने कर्मचारियों तथा समान सोच वाले समूहों के साथ संवाद स्थापित करने हेतु ब्लॉग का बखूबी इस्तेमाल करती हैं.
तकनीकी विकास ने बिखरते हुए मीडिया के इस युग में कुछ नए मीडिया प्रदान किए हैं और मीडिया योजनाकारों को इन पर ध्यान देना ही होगा. इंटरनेट उपयोक्ता दिन दूने रात चौगुने बढ़ते जा रहे हैं, ब्रॉडबैण्ड की दरें सस्ती हो रही हैं. ऑनलाइन मीडिया के लिए भविष्य सुनहरा है. ब्लॉग को भी भरोसेमंद विज्ञापन माध्यम के रुप में पहचान मिल चुकी है. जैसे ही कोई विशेष ब्लॉग प्रसिद्ध होता है, उसकी पाठक संख्या में वृद्धि होती है, विज्ञापन दाताओं की कतार वहां निवेश करने में लग जाती है. यह सचमुच रोचक है कि इंटरनेट उपयोक्ता के व्यक्तिगत विचार, विज्ञापनों को परोसने के लिए सशक्त माध्यम भी बन गया है.
(मीडिया व विज्ञापनों की पत्रिका - पिच (जून15-जुलाई15) के मूल अंग्रेजी लेख का साभार अनुवाद. )
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