आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 389 तुम्हारा धर्म अलग है एक भटका...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
389
तुम्हारा धर्म अलग है
एक भटका हुआ राहगीर रात के समय एक गाँव में पहुंचा और एक घर के दरवाज़े खटखटाये। दरवाज़ा खुलने पर उसने घर में रात गुजारने देने का अनुरोध किया। उस घर के निवासी ने उस राहगीर से उसके धर्म के बारे में पूछा। राहगीर का उत्तर सुनने के बाद वह बोला कि उसका धर्म अलग होने के कारण वह उसे रात में अपने घर में ठहरने की अनुमति नहीं दे सकता।
राहगीर ने दरवाज़ा खोलने के लिए उस व्यक्ति को धन्यवाद दिया और ईमानदारी से वहाँ से चला गया। पास में ही मौलश्री का पेड़ था। वह राहगीर उस पेड़ के नीचे ही सो गया। रातभर उसके ऊपर सुगंधित फूलों की वर्षा होती रही। सुबह जब उसकी आँखें खुलीं तो वह ऊर्जा और ताजगी से भरा हुआ था।
उसने फिर उसी घर के दरवाज़े खटखटाये और दरवाज़ा खुलने पर उसने घर के मालिक को तीन बार धन्यवाद दिया कि उसने रात को उसे शरण नहीं दी थी। वह राहगीर बोला -"यदि रात को आपने मुझे अपने घर में शरण दे दी होती तो मैं मौलश्री वृक्ष के नीचे रात गुजारने के दैवीय अनुभव से वंचित रह जाता और पूरी रात मुझे आपके और आपके धर्म के बारे में सुनना पड़ता। यह प्रकृति और मानवता ही सर्वोपरि धर्म है। वृक्ष के नीचे सोते हुए मैंने यही सीखा। इन सब अनुभवों को दिलाने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद!"
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विभाग प्रमुख
एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय का अध्यक्ष एक संन्यासी से अत्यंत प्रभावित था एवं वह उन्हें अपने विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र विभाग का प्रमुख बनाना चाहता था।
वह अपने प्रस्ताव को लेकर संन्यासी के वरिष्ठतम शिष्य के पास गया। शिष्य ने कहा - "हमारे गुरू जी प्रबुद्ध बनने पर जोर देते हैं, प्रबुद्धता के शिक्षण पर नहीं।"
"तो यह आखिर किस तरह यह बात उन्हें धर्मशास्त्र विभाग का प्रमुख होने से रोकती है?" अध्यक्ष ने कहा।
शिष्य ने उत्तर दिया - "ठीक उसी तरह जैसे यह किसी हाथी को प्राणिविज्ञान विभाग का प्रमुख बनने से रोकती है।"
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ज्ञान बड़ा या हीरा
एक बुद्धिमान व्यक्ति को पहाड़ों में घूमते घूमते एक कीमती पत्थर मिला तो उन्होंने उसे अपने थैले में रख लिया. कुछ समय पश्चात आगे जाने पर उन्हें एक भूखा-प्यासा यात्री मिला. उस बुद्धिमान व्यक्ति ने भोजन से भरे अपने थैले का मुंह उस भूखे प्यासे यात्री की ओर कर दिया. खाना खाते-खाते यात्री ने थैले में रखा कीमती पत्थर भी देख लिया.
उस पत्थर को देखकर उस यात्री के मन में लालच जागा और उसने बुद्धिमान व्यक्ति से पूछा कि क्या वह उस पत्थर को ले सकता है.
बिना कोई दूसरा विचार किए उस बुद्धिमान व्यक्ति ने वह पत्थर यात्री को दे दिया. वह यात्री बेहद प्रसन्न होकर चला गया.
परंतु कोई दो-एक घंटे बाद ही वह यात्री वापस उस बुद्धिमान व्यक्ति के पास आया और वह कीमती पत्थर वापस करते हुए बोला –
“मैं इस कीमती पत्थर को ले जाते हुए बेहद प्रसन्न था. परंतु मैं सोचने लगा कि इतने कीमती पत्थर को आपने मुझे आसानी से बिना किसी फल प्रतिफल या आशा प्रत्याशा में दे दिया. तो, अब आप मुझे अपने पास का वह ज्ञान दे दें जिसने आप के भीतर यह क्षमता प्रदान की है!”
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आप अपनी लँगोटी कैसे बचाते हैं?
एक आध्यात्मिक गुरु अपने शिष्य की धार्मिकता, समर्पण और ज्ञान से इतना प्रभावित हुए कि जब वे अन्य आश्रम की ओर प्रस्थान पर गए तो अपने शिष्य को एक गांव के बाहर एक छोटे से झोंपड़े में छोड़ गए कि वह गांव वालों का कल्याण करेगा.
उस शिष्य के पास एक लंगोट और एक भिक्षा पात्र के अलावा कुछ नहीं था. वह गांव से अपना आहार भिक्षा रूप में प्राप्त करता और झोपड़ी में तप और ध्यान करता. जब उसका लंगोट गंदा हो जाता तो रात्रि के अंधेरे में उसे धोकर वहीं सुखा देता.
एक दिन सुबह उसने देखा कि उसके लंगोट को किसी चूहे ने कुतर डाला है. गांव वालों ने उसके लिए नए लंगोट का प्रबंध कर दिया. मगर जब नए लंगोट को भी चूहों ने नहीं बख्शा तो फिर शिष्य ने चूहों के उत्पात से बचने के लिए बिल्ली पाल ली.
अब वह भिक्षा में बिल्ली के लिए दूध भी मांग लाता. उसे चूहों से तो निजात मिल गई थी, मगर बिल्ली के लिए नित्य दूध मांग लाना पड़ता था.
इस समस्या का हल निकालने के लिए उसने एक गाय पाल ली. मगर गाय के लिए चारा भी उसे मांग लाना पड़ता था. उसने आसपास खाली जमीन पर चारा उगाने को सोचा. कुछ समय तो ठीक चला, पर इससे उसे ध्यान योग में समय नहीं मिलता था. तो उसने गांव के एक व्यक्ति को काम पर रख लिया. अब उस व्यक्ति पर नजर कौन रखे. तो उसने लँगोटी छोड़ धोती धारण कर ली और एक स्त्री से विवाह कर लिया.
और, देखते ही देखते, वह गांव का सर्वाधिक अमीर व्यक्ति बन गया.
कुछ समय पश्चात उसका आध्यात्मिक गुरु वापस उस गांव के भ्रमण पर आया. वह उस स्थल पर पहुँचा जहाँ झोपड़ी में उसका शिष्य रहता था. परंतु यह क्या? वहाँ तो अट्टालिका खड़ी थी. उसे दुःख हुआ कि गांव वालों ने उसके शिष्य को भगा दिया शायद. परंतु उस अट्टालिका से एक मोटा ताजा आदमी बाहर आया और आते ही गुरु के चरणों में लिपट गया. गुरु ने उसे पहचान लिया. गुरु को झटका लगा. पूछा – अरे! इसका क्या मतलब है?
“गुरूदेव, आपको विश्वास नहीं होगा,” उस शिष्य ने कहा – “मेरी अपनी लँगोटी बचाए रखने के लिए इसके बेहतर और कोई तरीका ही नहीं था!”
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
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