आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 365 मक्खी और हाथी गुरू रोज़ी मनोविश...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
365
मक्खी और हाथी
गुरू रोज़ी मनोविश्लेषकों के एक समूह को चीनी विद्या ज़ेन की शिक्षा प्रदान करने के लिए सहमत हो गए। उस संस्थान के निदेशक द्वारा परिचय कराए जाने के बाद रो़ज़ी फर्श पर डले एक गद्दे पर बैठ गए। एक छात्र ने कक्ष में प्रवेश करने के बाद रोज़ी को दंडवत प्रणाम किया और उनके सामने पड़े गद्दे पर बैठ गया।
छात्र ने पूछा - "ज़ेन क्या है?"
रोज़ी ने एक केला निकाला और उसे छीलकर खाने लगे।
छात्र ने पूछा - "बस हो गया? क्या आप मुझे ज़ेन विद्या के बारे में कुछ और भी बता सकते हैं?"
रोज़ी ने कहा - "थोड़ा पास आओ।"
छात्र सरककर उनके पास पहुँच गया। रोज़ी ने छात्र के सामने ही बचा हुआ केला भी खाना शुरू कर दिया।
छात्र ने उन्हें दंडवत प्रणाम किया और वहॉं से चला गया।
एक दूसरा छात्र दर्शकों को संबोधित करते हुए बोला - "आप लोगों को कुछ समझ में आया? "
जब दर्शकों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी तो छात्र फिर बोला - "आप लोगों ने अभी-अभी ज़ेन विद्या के बारे में प्रत्यक्ष प्रस्तुति देखी है। क्या आपके मन में कोई प्रश्न है? "
काफी देर के सन्नाटे के बाद एक व्यक्ति बोला -"रोज़ी जी, मैं आपके प्रदर्शन से जरा भी संतुष्ट नहीं हूँ। आपके प्रदर्शन से स्पष्ट रूप से कुछ समझ में नहीं आ रहा है। आपका प्रदर्शन ऐसा होना चाहिए जिससे ज़ेन विद्या के बारे में स्पष्ट रूप से समझ में आये।"
रोज़ी ने उत्तर दिया - "अगर आप शब्दों में सुनना चाहते है? तो सुनिए.......ज़ेन विद्या एक ऐसे हाथी की तरह है जो मक्खी के साथ मैथुन करता है।"
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सांसारिक आकांक्षाओं के परे
वर्ष 1952 में चैम विह्ज़मैन के निधन के बाद अल्बर्ट आइंस्टीन से इज़राइल का राष्ट्रपति बनने का निवेदन किया गया। आइंस्टीन ने उस प्रस्ताव को नकार दिया और इज़राइल के राजदूत अब्बा इबान को साफ-साफ मना करते हुए कहा - "मुझे प्रकृति की तो थोड़ी कहुत समझ है परंतु मैं मानव स्वभाव के बारे में जरा भी जानकारी नहीं रखता। इज़राइल की ओर से इस प्रकार के प्रस्ताव ने मेरे दिल को तो छुआ है परंतु मैं दुख व अपरोधबोध से भी भर गया हूं क्योंकि मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकता।"
अपने पत्र में आइंस्टीन ने आगे लिखा कि "अपना सारा जीवन मैंने भौतिक वस्तुओं के साथ गुजारा है। मानव व्यवहार और शासकीय कामकाज के बारे में न तो मेरा कोई अनुभव है और न ही क्षमता। इन दो कारणों से ही मैं इस उच्च पद के लायक नहीं हूं।
इसके अलावा वृद्धावस्था के कारण भी मेरी शारीरिक क्षमतायें कम हो गयीं हैं।"
स्टीवन हॉकिंग ने अपनी पुस्तक "द यूनीवर्स इन अ नटशैल" में इस कथा का एक अन्य संस्करण लिखते हुए बताया है कि आइंस्टीन ने राष्ट्रपति पद का प्रस्ताव इस लिए ठुकरा दिया था क्योंकि वे जानते थे कि "राजनीति तो कुछ देर की ही मेहमान है परंतु जो वैज्ञानिक सूत्र वे दे रहे हैं, वे सांसारिकता से परे एवं शाश्वत हैं।"
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स्वर्ण के लिए खुदाई
एंड्र्यू कार्नेगी युवावस्था में ही अमेरिका चले आए थे, और वहाँ आजीविका के लिए छोटी-मोटी नौकरी करने लगे थे. बाद में वे अमेरिका के सबसे बड़े स्टील निर्माता बने.
एक समय उनकी कंपनी में 43 करोड़पति काम करते थे. किसी ने उनसे कभी पूछा था कि वे अपनी कंपनी के कर्मचारियों के साथ कैसे काम करते हैं. एंड्र्यू कार्नेगी ने जवाब दिया – “लोगों के साथ काम करना तो सोने के खदान में काम करने जैसा है. आपको एक तोला सोना पाने के लिए टनों में मिट्टी खोदना पड़ता है. और जब आप खोदते रहते हैं तो आप मिट्टी को नहीं देखते. आपकी निगाहें चमकीले सोने के टुकड़े ढूंढने में लगी रहती है.”
हर व्यक्ति में, हर परिस्थिति में कुछ न कुछ उत्तम रहता ही है. अलबत्ता इन्हें पाने के लिए यदा कदा खुदाई गहरी करनी पड़ती है, क्योंकि ये सतह पर दिखाई नहीं देते.
सफल व्यक्ति हंस की तरह काम करते हैं - हंस मिलावटी दूध के पात्र में से दूध को पी लेता है, और जल को छोड़ देता है.
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चतुर जौहरी
शहर में एक बेहद सफल, धनवान जौहरी था. उसकी जवाहरातों की दुकान का बड़ा नाम था. बीच बाजार में बड़ी सी दुकान थी, और बड़े बड़े शोकेस में चमचमाते जवाहरात हर एक का ध्यान बरबस खींच लेते थे.
एक दिन नवाब उस दुकान में खरीदारी करने पहुँचे. दुकानदार और कर्मचारी नवाब के सामने एक से एक जवाहरात और नई डिजाइन के गहने पेश करने लगे.
मगर नवाब को उनमें से कोई पसंद नहीं आए. वो जल्दी ही इस सिलसिले से बोर होने लगा.
अंत में नवाब जब चलने को हुआ तो उसकी नजर कोने पर पड़े रत्नजटित एक साड़ी-पिन पर पड़ी, जिसे उसके सामने पेश नहीं किया गया था.
नवाब ने जौहरी से उसके बारे में पूछा, तो जौहरी ने नवाब को बताया कि वह एक अलग किस्म का, प्राचीन, परंतु बेहद कीमती जेवर है. डिजाइन भले ही आज के हिसाब से आकर्षक न लगे, मगर जेवर पुश्तैनी, भाग्यवर्धक है. जौहरी ने नवाब की दृष्टि की भी तारीफ की कि उन्हें यह छोटा, परंतु खास जेवर अलग से दिखाई दिया.
नवाब ने वह साड़ी-पिन ऊंची कीमत देख कर खरीद लिया.
नवाब के जाने के बाद जौहरी के पुत्र ने जो व्यापार के गुर अपने पिता से सीख रहा था, अपने पिता से कहा – “यह साड़ी-पिन तो बेहद साधारण था, यह मूल्यवान भी नहीं था, इसमें कुछ कमी थी, और इसे तुड़वाकर आप नया डिजाइन बनवाने वाले थे...”
चतुर जौहरी ने अपने पुत्र को व्यापार का गुर समझाया - “कीमतें ग्राहकों के मुताबिक तय होती हैं. नवाब के लिए यहाँ मौजूद हर जवाहरातों और जेवरों की कीमत धूल बराबर ही थी. सवाल उनके पसंद के जेवर का था. एक बार उनके पसंद कर लेने के बाद कीमत तो हमें ही तय करनी थी. यदि नवाब की हैसियत मुताबिक कीमत नहीं बताता तो वह उसे खरीदता ही नहीं!...”
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
ज़ेन के नाम पर कोई भी कुछ भी ठेल सकता है, बशर्ते वह सिर खुजाऊ हो! :-)
हटाएंकीमत ग्राहक निर्धारित करता है..
हटाएंआइंस्टीन वाली कथा तो बहुत जानी मानी है... स्टीफन ने भी बढिया बयान दिया है उस पर। स्टीवन या स्टीफन ?
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