आ जकल हर कोई फ़ेसबुक से दुःखी है. सबसे ज्यादा दुःखी तो सरकार है. सरकार फ़ेसबुक से इतना दुःखी हो चुकी है कि वो इस पर बैन करने की बात कहने ल...
आजकल हर कोई फ़ेसबुक से दुःखी है. सबसे ज्यादा दुःखी तो सरकार है. सरकार फ़ेसबुक से इतना दुःखी हो चुकी है कि वो इस पर बैन करने की बात कहने लगी है. और अब तो न्यायालय भी चीनी तर्ज पर फ़ेसबुक को ब्लॉक करने की धमकियाँ देने लगी है. उधर फ़ेसबुक में घुसे पड़े रहने वाले और तमाम वजहों के अलावा इस वजह से भी दुःखी हुए जा रहे हैं कि सरकार या न्यायालय अब किसी भी दिन फ़ेसबुक पर बैन लगा देगी तो उनके अनगिनत फ़ेसबुक मित्रों, चिकोटियों, स्टेटस मैसेज, वॉल पोस्टिंग और पसंद का क्या होगा!
फ़ेसबुक से मैं तो दुःखी हूँ ही, मेरी पत्नी मुझसे ज्यादा दुःखी है. अलबत्ता दोनों के कारण जुदा जुदा हैं. फ़ेसबुक से तो मैं तब से दुःखी था जब से मैं फ़ेसबुक से जुड़ा भी नहीं था. तब जहाँ कहीँ भी जाता, लोग गर्व से बताते कि वे फ़ेसबुक पर हैं. मैं उनके गर्व के सामने निरीह हो जाता और दुःखी हो जाता. फिर पूछते – आप भी फ़ेसबुक पर हैं? और चूंकि मैं फ़ेसबुक पर नहीं होता था तो और ज्यादा दुःखी हो जाता था कि मैं कितना पिछड़ा, नॉन-टेक्नीकल आदमी हूँ कि देखो तमाम दुनिया तो फ़ेसबुक पर पहुँच चुकी है, और हम हैं कि अभी जाने कहाँ अटके हैं.
तो एक अच्छे भले दिन (पत्नी के हिसाब से एक बेहद खराब दिन) मैं भी इधर उधर से जुगत भिड़ाकर फ़ेसबुक पर आ ही गया. और, मैं फ़ेसबुक पर आ क्या गया, मेरे और ज्यादा दुःखी होने के दिन भी साथ आ गए.
मेरे फ़ेसबुक पर आने के कई कई दिनों तक मेरे पास किसी का कोई मित्र निवेदन नहीं आया. आप समझ सकते हैं कि मेरे दुखों का क्या पारावार रहा होगा. यही नहीं, मैंने दर्जनों, सैकड़ों मित्र निवेदन भेजे. मगर फ़ेसबुक में आपसी मित्रों में उलझी मित्रमंडली में से किसी ने गवारा नहीं किया कि वो मेरे मित्र निवेदन का जवाब भेजे. स्वीकारना तो खैर, दूर की बात थी. अब जब आप बड़ी आशा से मित्र निवेदन भेजें और सामने से कोई प्रतिक्रिया नहीं आए, तो आप क्या खुश होंगे? और, जब पता चले कि गली के नुक्कड़ पर चायवाले के पाँच हजार फ़ेसबुक मित्र हैं, और आप खाता खोलने के लिए भी तरस रहे हैं तो अपने दुःख की सीमा का अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं.
अब चूंकि मैं फ़ेसबुक पर आ चुका तो यहाँ थोड़ी चहल कदमी भी करने लगा. लोगों की देखा-देखी एक दिन मैंने भी अपना स्टेटस लगाया – आज मुझे जुकाम है, और मेरी नाक म्यूनिसिपल्टी के टोंटी विहीन नल की तरह बह रही है. मुझे लगा कि दूसरों के भरे पूरे फ़ेसबुक वॉल की तरह इस धांसू फ़ेसबुक स्टेटस पर टिप्पणियों की भरमार आ जाएगी और मेरा वाल भी टिप्पणियों, प्रतिटिप्पणियों से भर जाएगा. मगर मुझे तब फ़ेसबुक में टिके रहने वालों की असलियत पता चली कि उनमें जरा सा भी सेंस ऑफ़ ह्यूमर नहीं है, जब मेरे इस धांसू स्टेटस मैसेज पर एक भी टिप्पणी दर्ज नहीं हुई. और, जहाँ फ़ेसबुक के अरबों प्रयोक्ता हों, लोग बाग़ चौबीसों घंटे वहाँ पिले पड़े रहते हों, वहाँ जीरो टिप्पणी वाली स्टेटस मैसेज का मालिक क्या खुश होगा?
इसी तरह मैंने अपने वाल पर तमाम टीका टिप्पणियाँ भरीं, दूसरों के सार्वजनिक वाल पर आशा-प्रत्याशा में टीप मारे, मगर मामला वही, ढाक के तीन पात. मेरी वाल सदा सर्वदा से खाली ही बनी रही, और मुझे अच्छा खासा दुःखी करती रही.
अपना फ़ेसबुकिया जीवन संवारने व कुछ कम दुःखी होने की खातिर एक दिन मैंने कुछ टिप हासिल करने की खातिर एक अत्यंत सफल फ़ेसबुकिया से संपर्क किया. उसके पाँच हजार फ़ेसबुक मित्र थे, उसकी वॉल सदा हरी भरी रहती थी. वो एक टिप्पणी मारता था तो प्रत्युत्तर में सोलह सौ पचास प्रतिटिप्पणियाँ हासिल होती थीं. मगर जो बात उसने मुझे अपना नाम सार्वजनिक न करने की कसम देते हुए कही, वो मुझे और दुःखी कर गई. उस सफल फ़ेसबुकिये ने बताया कि उसे अपने तमाम पाँच हजार मित्रों के स्टेटस संदेश पर हाहा-हीही किस्म की टिप्पणियाँ मारनी पड़ती हैं, उनके जन्मदिनों में याद से उनके वॉल पर बधाईयाँ टिकानी पड़ती है, उनकी टिप्पणियों का जवाब देना मांगता है, उनकी चिकोटियों पर उलटे चिकोटी मारनी पड़ती है और उनमें से लोग जो दीगर लिंक टिकाते हैं, फोटो चेंपते हैं उनमें भी अपनी टिप्पणी और पसंद मारनी पड़ती है इत्यादि इत्यादि. और इन्हीं सब में दिन रात उलझ कर वो अपना चैन (माने नौकरी, प्रेमिका इत्यादि...) खो चुका है, लिहाजा आजकल बेहद दुःखी रहता है!
आह! फ़ेसबुक! तूने तो सबको दुःखी कर डाला है रे! फ़ेसबुक से गूगल, एमएसएन और याहू तो दुःखी हैं ही, क्या पता शायद खुद मार्क जुगरबर्ग भी दुःखी हो!
रवि जी, फेसबुक पर 5000 मित्र बनाने की क्या आवश्यकता है. आप 10-15 मित्रों से भी काम चला सकते है. मैंने अभी तक फेसबुक पर सिर्फ 16 मित्र बनाये है. और वो भी मेरे कॉलेज या स्कूल के मित्र है, इसमें दुखीः होने की कोई बात नहीं है. आप अपने सहपाठियो और जानने वालो को अपना मित्र बनाये.
हटाएंऔर हाँ ये सरकार क्या सचमुच फेसबुक पर बैन लगा पायेगी. ऐसा शायद ना हो क्योंकि वो भी कभी कभी फेसबुक इस्तेमाल करती है.
संख्या बढ़ती है, आशायें बढ़ती हैं, क्या करें सब संतुष्ट न कर सकते हैं और न हो सकते हैं।
हटाएंएक साल पहले एक मित्र के बहकावे में आकर मैंने अपना फ़ेसबुक का खाता खोला था ।
हटाएंबस एक ही मित्र था मेरा, वही जिसके कहने पर मैंने अपना खाता खोला था।
एक ही सप्ताह के बाद हमने अपना खाता बन्द कर दिया।
कारण : बस उस एक दोस्त की बेतुकी टिपणियाँ, उसके फ़ोटोस, वगैरह वगैरह जिससे हम बोर होने लगे थे।
हमने सोचा कि यदि केवल एक ही मित्र होने से मेरा यह हाल है तो आगे क्या होगा?
जिस दुख की आप बात कर रहे हैं उससे हम बच गये।
मेरे लिए ईमेल, कुछ याहू ग्रूप में सदस्यता और ब्लॉग जगत में भ्रमण और टिप्पणी काफ़ी है।
आजकल कोई दो दर्जन ब्लॉग पढता हूँ (हिन्दी और अँग्रेज़ी में) और सात याहू ग्रूपों में सदस्य हूँ।
अंतरजाल के लिए निर्धारित समय इसीमें कट जाता है।
कई ब्लॉग ऐसे हैं जो मैं पढता हूँ पर टिप्पणी के लिए समय नहीं मिलता।
मुझे कोई फ़ेसबुक वेसबुक की आवश्यकता नहीं महसूस हुई।
हम ट्विट्टर से भी दूर रहे हैं।
किसी को क्या रुची हो सकती है, मेरी हर मिनट की गतिविधियों मे?
और न हमें रुची है औरों की हर मिनट या घंटे की गतिविधियों मे।
फ़ेसबुक / ट्विट्टर को दूर से सलाम।
शुभकमानाएं
जी विश्वनाथ
उम्मीद कर रहा हूँ आपका यह सब लिखा आपका बयान-ए-हकीकत नहीं होगा। लेकिन बदनसीबी से यदि ऐसा है तो आपकी सलाह (जो आपने मुझे ब्लॉग शुरु करते समय दी थी) आपकी ही नजर कर रहा हूँ - यह आपके लिए हे। अपना काम खतम करके इसकी ओर पीठ कर लीजिएगा। यदि आप इसके लिए हो गए तो गए काम से।
हटाएंकिसी भी चीज की अति नुकसानदेह होती है।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट्स पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
फेसबुक माया है. सभी दुखी हैं. कोई छोड़ता नहीं
हटाएंआज मुझे जुकाम है, और मेरी नाक म्यूनिसिपल्टी के टोंटी विहीन नल की तरह बह रही है.
हटाएंपर भी कोई लाइक/ टिप्पणी नहीं मिली तो फेसबुक किसी काम का नहीं
:-)
लोग भी न जाने क्यों इसे इतना सीरियसली लिये ले रहे हैं... सड़क पर चलते-चलते समय किसी को भी राम-राम कह देने भर का ये आज का तरीक़ा है फ़ेसबुक. इससे ज़्यादा कुछ भी नहीं.
हटाएंबढि़या पोस्ट। फेसबुक पर मैनें भी एक कविता लिखी है जिसे इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं। http://gmaurya.blogspot.com/2011/02/blog-post_23.html
हटाएंहा हा हा! हम दुखी नहीं हैं। यह तो है ही काम फालतू लोगों का... मेरे जैसों का...
हटाएंसदस्य "परिवार" बढ़ेगा तो परेशानी होगी ही,
हटाएंमजेदार, घर घर की कहानी।
हटाएंअच्छ हुआ जो हमने कभी फ़ेस बुक का झंझट नहीं पाला .विभिन्न ब्लागों पर काफ़ी माल-मसाला मिल जाता है .और अपने ब्लाग पर टिप्पणी ?कुछ भूले-भटके लोग कभी-कभार दे जाते है -उसी में खुश !
हटाएंएक फर्जी ब्लॉग पर भी यह पोस्ट मौजूद है ,कृपया देखें-
हटाएंhttp://vivesoft.blogspot.in/2012/08/blog-post_1153.html
सादर
यशवन्त जी, सूचना के लिए धन्यवाद.
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