आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 363 कछुआ चीन के राजा ने अपने राजद...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
363
कछुआ
चीन के राजा ने अपने राजदूत को उत्तरी पर्वतमाला में रहने वाले एक संन्यासी के पास भेजा। वे उन्हें राज्य का प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे। कई दिनों की यात्रा के बाद राजदूत उत्तरी पर्वतमाला में स्थित उनके आश्रम पर पहुंचा। लेकिन आश्रम में कोई नहीं था। परंतु आश्रम के ही पास बहती नदी के बीचोंबीच स्थित एक चट्टान पर एक व्यक्ति अर्धनग्न हालत में बैठा हुआ मछलियाँ पकड़ रहा था। यह सोचकर कि यही वह संन्यासी है जिसे राजा अपना प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, उसने वहाँ के ग्रामीणों से पूछताछ की। ग्रामीणों ने उसे बताया कि यही वे संन्यासी हैं। राजदूत अत्यंत विनम्रता के साथ संन्यासी के पास पहुँचा और उनका ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया।
पैदल ही नदी को पार करते हुए वह संन्यासी राजदूत के समक्ष कमर पर हांथ रखकर खड़े हो गए और बोले - "तुम क्या चाहते हो? "
राजदूत ने उत्तर दिया - "हे महामानव, राजा ने आपके ज्ञान और पवित्रता की ख्याति सुनकर मुझे आपके पास इन उपहारों के साथ भेजा है। उन्होंने आपको साम्राज्य का प्रधानमंत्री बनने का निमंत्रण भेजा है। "
"साम्राज्य का प्रधानमंत्री? "
"जी हां श्रीमान! "
"और मैं ? "
"जी हां श्रीमान! "
"क्या तुम्हारे महाराज पागल हो गए हैं? " - कहकर संन्यासी जोर-जोर से हँसने लगा। उनकी हँसी देखकर वह राजदूत परेशान हो उठा।
जब उनका हँसना बंद हुआ तो उन्होंने राजदूत से कहा - "मुझे यह बताओ कि क्या तुम्हारे महाराज के पूजाघर में एक ऐसा कछुआ है जिसकी पीठ पर चमकते हुए हीरे जड़े हैं? "
"वह कछुआ तो बहुत ही पूजनीय है श्रीमान!"
"और तुम्हारे महाराज अपने परिवार के साथ दिन में एक बार उस कछुए की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं?"
"जी हाँ श्रीमान!"
"अब यदि उस कछुए को यहाँ लाकर उसकी पूँछ गोबर में सान दी जाए तो क्या गोबर में सना हुआ कछुआ उस चमकते कछुए की जगह ले सकता है?"
"जी नहीं श्रीमान! "
"तो जाकर अपने महाराज से कह दो कि मैं भी प्रधानमंत्री पद के योग्य नहीं हूँ।"
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364
भ्रम
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरूजी से पूछा - "मैं शाश्वत जीवन कब प्राप्त करूंगा?"
गुरूजी ने उत्तर दिया -"यही समय शाश्वत जीवन है। वर्तमान में जियो।"
"लेकिन मैं तो वर्तमान में ही जी रहा हूँ। क्या मैं वर्तमान में नहीं हूँ?" - शिष्य ने प्रश्न किया।
"नहीं "
"क्यों गुरूजी?"
"क्योंकि तुमने अपने भूतकाल को नहीं छोड़ा है। "
"लेकिन मैं अपने भूतकाल को क्यों छोड़ूँ? ये बुरा थोड़े ही था।"
गुरूजी ने कहा - "भूतकाल चाहे अच्छा हो या बुरा, छोड़ ही दिया जाना चाहिए क्योंकि वह मृत होता है। "
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116
आँखों की पट्टी उतारने का भी टैम नईं?
जब गुरु ने राज्यपाल को ध्यान-योग के लिए न्योता भेजा तो राज्यपाल ने जवाब दिया कि वो बेहद व्यस्त है. इस पर गुरु ने प्रत्युत्तर भेजा – “आपका जवाब मुझे उस बात की याद दिलाता है कि जैसे किसी व्यक्ति को जंगल में आँखों में पट्टी बांधकर जंगल में छोड़ दिया हो, और वो उसी स्थिति में रास्ता तलाश रहा हो. उसे अपने आँखों की पट्टी हटाने की भी फुर्सत नहीं है.”
एक लकड़हारा था. वह बेहद शक्तिशाली था. परंतु वह जरा सी लकड़ियाँ काट कर ही बेहद थक जाता. दरअसल उसकी कुल्हाड़ी भोथरी थी. न तो उसे अपनी कुल्हाड़ी को धार करने का भान था और न ही समय! उसकी ऊर्जा यूँ व्यर्थ ही नष्ट होते रहती थी.
अपनी ऊर्जाएँ लकड़हारे की माफिक नष्ट न करें. अपनी आँखों से पट्टी हटाएँ!
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117
खिड़की पर लटकता चेहरा
खोजा नसरूद्दीन ने अपने घर की खिड़की से देखा कि उसका मित्र चला आ रहा है. खोजा ने मित्र से रुपये उधार ले रखे थे और शायद वह मित्र तगादा करने आ रहा था.
खोजा ने अपनी बीवी से कहा कि वो उस मित्र को कह दे कि खोजा घर पर नहीं है.
बीवी ने उस मित्र से कहा कि खोजा घर पर नहीं है, वह तो बाहर गया हुआ है. उस मित्र ने खोजा को खिड़की से देख लिया था. परंतु उसने बीवी के बहाना बनाने पर उससे कहा – “ठीक है, कोई बात नहीं, परंतु उससे कहना कि अगली बार जब वो बाहर जाए, तो खिड़की पर अपनी सूरत लटका कर मत जाया करे.”
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
आँखों की पट्टी उतारने का तो समय निकालने होगा।
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