(कार्टून – साभार काजल कुमार के कार्टून) दुनिया में केवल और केवल दो तरह के लोग होते हैं. या तो टॉपर या फिर टॉपरों से भयभीत. मैं दूसरे किस्म ...
(कार्टून – साभार काजल कुमार के कार्टून)
दुनिया में केवल और केवल दो तरह के लोग होते हैं. या तो टॉपर या फिर टॉपरों से भयभीत. मैं दूसरे किस्म का व्यक्ति हूँ. टॉपरों से भयभीत. टॉप और टॉपरों से मुझे सदैव भय लगता आया है. जिस तरह से कुछ लोगों को ऊंचाई से भय लगता है, बिलावजह, शायद जेनेटिक खामियों की वजह से. ठीक उसी तरह मुझे भी टॉप और टॉपरों से भय लगता रहा है. कुछ केमिकल लोचा है. कुछ जेनेटिक खामी है मुझमें.
पढ़ाई के दौरान टॉपरों से अधिक भय लगता रहा. पता नहीं कब, कौन, कैसा साथी टॉप कर जाए और अपन टीपते रह जाएँ, और पालकों की तिर्यक निगाहों का सामना करना पड़ जाए! प्रायोगिक विषयों के विद्यार्थी होने के कारण, बिना किसी आग्रह-पूर्वग्रह के, जब कुछ विशिष्ट सहपाठियों के प्रति कुछ विशिष्ट शिक्षकों के कुछ विशिष्ट अति उदारमना होने और उन्हें अतिरिक्त दक्षिणा की तरह सोत्साह अतिरिक्त अंक प्रदान करने की टॉप घटनाओं से कई-कई बार आहत होते रहे और टॉप की अंकीय-चोटें खाते रहे.
इस तरह, टॉपरों से जूझते-उलझते जब नौकरी में आए तो ऐसे विभाग से पाला पड़ गया जहाँ हर महीने और हर महत्वपूर्ण कार्यालयीन बैठकों में टॉपरों, टॉप की सूचियों से पाला पड़ता रहा. टॉप-परफ़ॉर्मेंस के लक्ष्य तो खैर दिए ही जाते थे, जिसमें उत्साही और अति-उत्साही किस्म के लोग लक्ष्य हासिल करने में सदा-सर्वदा टॉप में ही आते रहे और हमारे जैसे जन्माल्सी (भई, जन्म से आलसी, और क्या!), टॉप से भयभीत लोगों के लिए टॉप की जगह सदैव दूर की कौड़ी बनी रही. इस बीच कुछ ऐसे उप-विभाग में भी पदस्थापना हुई जहाँ किसिम किसिम के टॉपरों की सूची तैयार करनी होती थी. एक बानगी तो ऊपर दिए गए चित्र से प्रकट हो ही रही है.
तब टॉपरों से और भी अधिक समस्याएँ होती थी. टॉपरों की सूची बनाने में ही समस्या खड़ी हो जाती थी. उन दिनों, जब दुनिया में कंप्यूटर नहीं था, एक क्लिक से डेटा सार्टिंग होती नहीं थी, बिग डेटा जैसी परिकल्पना नहीं थी, डेटा-एनालिस्ट होते नहीं थे, तब आपको हजारों लाखों विद्युत उपभोक्ताओं में से अपने हाथों से छांटकर टॉप की सूची बनानी होती थी कि कौन सबसे डिफ़ॉल्टर है, कौन सबसे ज्यादा बिजली उपयोग करता है, कौन सबसे कम बिजली जलाता है, किस क्षेत्र में सबसे ज्यादा चोरी या गुल होती है, किस क्षेत्र के लोग बिजली, ट्रांसफ़ार्मरों से बिजली का तेल, बिजली के तार आदि न जाने क्या क्या चोरी ज्यादा करते हैं आदि आदि. बात यहीं तक यानी केवल टॉपरों की सूची बनाने तक होती तो भी ठीक थी. ऐसी टॉपर सूची बनाकर बैठकों में अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत कर गालियाँ ऊपर से खाते थे और नए टॉप लक्ष्य पाते थे – टॉप डिफ़ॉल्टरों की सूची के लिए समय-बद्ध कार्ययोजना बनाई जाकर डिफ़ॉल्टरों से पैसा वसूला जाए और यह डिफ़ॉल्टर टॉपर सूची शून्य पर लाई जाए. अब कोई अफसरों को बताए कि मनुष्य के विकासक्रम में डिफ़ॉल्टर कहीं भी, कभी भी शून्य स्तर पर रहे हैं? जब मानवता के इतिहास में डिफ़ॉल्टर कभी भी शून्य नहीं रहे हैं तो बिजली उपभोक्ताओं से उम्मीदें क्यों पाली जाती हैं भला, और ऐसे इम्पॉसिबल, नामुमकिन किस्म के लक्ष्य अफ़सरों द्वारा अपने अधीनस्थों को क्यों दिए जाते हैं. ऐसे असंभव किस्म के लक्ष्य देने वाले अफ़सरों की मनोवैज्ञानिक जांच की जानी चाहिए और यथासंभव उन्हें लूप-लाइन में डालना चाहिए जहाँ अफ़सरशाही की संभावना शून्य हो. और, बिजली ही क्यों, बैंकिंग, टेलिफ़ोन आदि आदि उपभोक्ताओं से भी क्यों उम्मीदें पाली जाएँ!
जब देखा गया कि टॉप डिफ़ॉल्टर कम ही नहीं हो रहे हैं, तो किसी अद्भुत किस्म के अफ़सर ने उतनी ही अद्भुत कल्पना की और कार्यालयीन इतिहास का सदा-सर्वदा का अद्भुत आदेश जारी किया – टॉप 10 डिफ़ॉल्टरों की सूची सार्वजनिक नोटिसबोर्ड और इंटरनेट पर जारी की जाए. इससे डिफ़ॉल्टरों में शर्म महसूस होगी और मारे शर्म के वे अपना लंबित बिजली बिलों का भुगतान करेंगे. मगर माल्या – माफ कीजिए, कीबोर्ड मालफंक्शन हो गया लगता है - मामला बूमरैंग की तरह हो गया लगता है. टॉप डिफ़ॉल्टरों की सार्वजनिक इंटरनेटी सूची का कोई भला मानुस अध्ययन करे, शोध करे तो यह पाएगा कि सूची नियमित अंतराल पर बिला-नागा अपडेट होती है और डिफ़ॉल्टर और डिफ़ॉल्ट की दर भी बिला-नागा उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर है. प्रतीत होता है कि डिफ़ॉल्टरों में टॉप सूची में आने हेतु बमचक मची है और हर कोई उस टॉप सूची में शामिल होने की दौड़ में शामिल है. नए-नए लोग उस सूची में आने को लालायित हैं!
अब आप अपनी बताएं. आप टॉपर हैं या टॉपरों से भयभीत?
वाह. क्या बात है.
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