इंडिया टुडे हिंदी के हालिया अंक में मनीषा पांडेय ने हिंदी ब्लॉगिंग पर एक धारदार आलेख लिखा है. आलेख साभार यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है. आप भ...
इंडिया टुडे हिंदी के हालिया अंक में मनीषा पांडेय ने हिंदी ब्लॉगिंग पर एक धारदार आलेख लिखा है. आलेख साभार यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है. आप भी बांचें:
बच्चा पैदा हुआ तो आस-पास के लोगों ने माना कि वह स्वस्थ है. एक समय ऐसा आया कि हिंदी ब्लॉग की संख्या 18,000 को पार कर गई और हर दिन 150 नए हिंदी ब्लॉग जुड़ने लगे. फिर इसे किसी की नजर लग गई. सभी मानते हैं कि हिंदी ब्लॉग की दुनिया में ठहराव आ गया है. यह दुनिया लगभग आठ साल पुरानी है. आठ साल लंबा वक्त होता है. इतने समय में फेसबुक ने दुनिया भर में 80 करोड़ यूजर जुटा लिए.
हिंदी के प्रमुख ब्लॉग एग्रीगेटर (एक ऐसी साइट जहां ढेर सारे ब्लॉग इकट्ठे देखे जा सकते हैं) नारद, चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी बंद हो गए. कई सक्रिय ब्लॉगर दृश्य से गायब हो गए, कई फेसबुक पाकर ब्लॉग को भुला बैठे, कुछ ट्विटर पर जम गए. हिंदी ब्लॉग का यह सफर कई सवाल खड़े करता है. कुछ साल पहले इसे लेकर देखे जा रहे सपने क्या हकीकत से दूर थे?
क्या हिंदी में ब्लॉग की स्थिति इसलिए बुरी है? क्योंकि इंटरनेट पर ही हिंदी की स्थिति बुरी है. क्या हिंदी की राजनीति ब्लॉग को ले डूबी? क्या 'इंस्टैंट' के दौर में फेसबुक और ट्विटर ने ब्लॉग की जगह खा ली? सवाल कई हैं और जवाब जटिल.
टीवी पत्रकार और ब्लॉग कस्बा चलाने वाले रवीश कुमार कहते हैं, ''ब्लॉग का खत्म होना दरअसल उसके बनने में ही निहित था. ब्लॉग अभिव्यक्ति के एक वैकल्पिक माध्यम के रूप में उभरा और एसएमएस, फेसबुक, ट्विटर के समय में खुद ही निष्क्रिय भी हो गया. यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे डीवीडी के आने से कैसेट चलन से बाहर हो गए.''
लेकिन टीवी लेखक और ब्लॉग निर्मल आनंद के लेखक अभय तिवारी की राय इससे कुछ अलग है. इस बात से सहमत होने के बावजूद कि फेसबुक काफी हद तक हिंदी ब्लॉगिंग के निष्क्रिय होते जाने के लिए जिम्मेदार है, वे कहते हैं, ''फेसबुक सोशल नेटवर्किंग के लिए की जाने वाली अड्डेबाजी है, जबकि ब्लॉग एक किस्म की सार्वजनिक डायरी है. कुछ लोग डायरी में कौड़ी-पाई का हिसाब रखते हैं, कुछ मन की गांठें टटोलते हैं तो कुछ अपनी पसंद की चिंता पर विचार प्रवाह खोलते हैं. कौड़ी-पाई और मन की गांठें भले अब फेसबुक पर खिलने और खुलने लगी हों पर तात्कालिकता से परे गंभीर चिंतन और विमर्श के लिए ब्लॉग की उपयोगिता हमेशा बनी रहेगी.''
ब्लॉगिंग का भविष्य - कौन क्या कह रहा है:
बेशक हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां हर दिन एक नई चीज बाजार में आ रही है और पुरानी को अप्रासंगिक किए दे रही है. दरअसल, फेसबुक की गति और ट्विटर की चंद शब्दों में अपनी बात को समेट देने की सीमा ने भारी-भरकम ब्लॉग को चलन से बाहर कर दिया. जैसा कि रवीश चुटकी लेते हैं, ''मैं यह देखने के लिए उत्साहित हूं कि दुनिया के किस कोने में कौन-सा ऐसा नया मंच बन रहा है, जो फेसबुक और ट्विटर को भी खत्म कर देगा.''
आज हिंदी ब्लॉगों की संख्या 30,000 के आसपास है, जिसमें से महज 3,000 ही नियमित लिखे जाते हैं. वहीं देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या तकरीबन 10 करोड़ है, जिसमें से 3.4 करोड़ सक्रिय फेसबुक यूजर हैं. इनमें से अगर देश के बड़े शहरों को निकाल दें तो भी राजधानी समेत हिंदी राज्यों के बड़े-मझेले और छोटे शहरों में फेसबुक का इस्तेमाल करने वालों की संख्या डेढ़ करोड़ से ज्यादा है. इन आंकड़ों के मुकाबले हिंदी ब्लॉगिंग के आंकड़े बहुत कम हैं. हिंदी के सबसे ज्यादा चर्चित और पढ़े जाने वाले ब्लॉगों पर प्रतिदिन 200 से 300 हिट्स होती हैं. हालांकि ऐसे ब्लॉग उंगलियों पर गिने जा सकते हैं, जबकि अन्य ब्लॉगों पर हिट्स का आंकड़ा प्रतिदिन 25 से लेकर 100 तक है.
ब्लॉग के मरणासन्न होते जाने पर स्यापा करने वालों और फेसबुक को तनी भौंहों से देखने वालों का तर्क है कि फेसबुक तत्काल छप जाने और प्रतिक्रिया पा लेने को लालायित लोगों का शगल है. यहां लोगों के पास हर मुद्दे पर देने के लिए कुछ रेडीमेड विचार हैं, जबकि ब्लॉग ज्यादा गंभीर और विचारशील थे. ''लेकिन यही विचारशीलता उसकी सबसे बड़ी दिक्कत भी थी.
ब्लॉग पर कोई गंभीर, दार्शनिक विचार हासिल करने नहीं आता. यहां लोग लाइट रीडिंग और हल्की-फुल्की मनोरंजक चीजें चाहते हैं.'' यह कहना है ब्लॉग एग्रीगेटर चिट्ठाजगत के संस्थापक और पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर विपुल जैन का.
वे कहते हैं, ''अगर आप गौर करें तो पाएंगे कि सबसे ज्यादा पॉपुलर वही ब्लॉग थे, जो रोजमर्रा की जिंदगी की छोटी-छोटी बातें और रोचक किस्से मस्त किस्सागोर्ई वाले अंदाज में बयां करते थे.'' ब्लॉग को पॉपुलर करने में जरूरी भूमिका निभाने वाले मोहल्ला ब्लॉग के मॉडरेटर अविनाश को भी स्पीडी फेसबुक से कोई गुरेज नहीं है. उनके मुताबिक इस तेज रफ्तार समय में लंबी पोस्ट पढ़ने की फुरसत किसी के पास नहीं.
क्या आम पाठक ब्लॉग के साथ इसलिए नहीं जुड़ पाए क्योंकि उसकी भाषा और विषयवस्तु 'मास कम्युनिकेशन' के साधारण से तर्क को पूरा नहीं करती थी. जैसा कि शब्दों का सफर ब्लॉग के लेखक और पेशे से अखबार सरीखे मास कम्युनिकेशन के माध्यम से जुड़े अजीत वडनेरकर कहते हैं, ''ब्लॉग बहुत-से लोगों के लिए अपनी छपास की भूख शांत करने का माध्यम था. उसमें गुणवत्ता नहीं थी. बेशक अच्छे ब्लॉगर भी थे, लेकिन ब्लॉग उनके लिए छपने के माध्यम से ज्यादा अपने लिखे का डॉक्युमेंटेशन करने का एक माध्यम था.
ब्लॉग की ताकत ही यह है कि यहां हर कोई लेखक या संभावित लेखक है. यह ताकत है, लेकिन हिंदी पब्लिक स्पेस में यही बात समस्या बन गई. यहां ब्लॉगर ही ब्लॉग के पाठक भी थे. यह माध्यम अपने लिए पाठक नहीं बना पाया.''
ब्लॉग पर महिलाओं के साझा मंच चोखेर बाली की मॉडरेटर सुजाता कहती हैं, ''यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आपके ब्लॉग का पाठक कौन है? चोखेर बाली के निष्क्रिय होने की एक वजह यह थी कि उससे नए लोग नहीं जुड़ रहे थे. ब्लॉग पढ़ने और टिप्पणियां करने वाले ज्यादातर ब्लॉगर ही होते थे. हम आपस में ही एक-दूसरे की पीठ थपथपाने और आलोचना करने में मुब्तिला थे. अगर नए लोग नहीं जुड़ते, नए विचार नहीं आते तो एक ठहराव-सा आ ही जाता है.''
सुस्त पड़ रहे हिंदी ब्लॉग को जिस एक एग्रीगेटर ब्लॉगवाणी के बंद हो जाने से आखिरी धक्का लगा, उसके संचालक मैथिली गुप्त भी इस बात का समर्थन करते हैं, ''ब्लॉगवाणी का ट्रैफिक ज्यादातर ब्लॉगर से ही आ रहा था. सिर्फ ब्लॉग पढ़ने के लिए आने वाले पाठकों की संख्या न के बराबर थी.'' यह एक पक्ष है, लेकिन संगीत के चर्चित ब्लॉग रेडियोवाणी के लेखक व रेडियो एनाउंसर यूनुस खान हिंदी दुनिया की उस दुखती रग पर हाथ रखते हैं, जो साहित्य से लेकर ब्लॉग और अब फेसबुक पर भी अपने पैर पसार रही है.
वे कहते हैं, ''ब्लॉगवाणी हिंदी की कुटिल राजनीति के चलते बंद हुआ. लोग उसका रचनात्मक इस्तेमाल करने की बजाए उसे अपनी कुंठाएं शांत करने का माध्यम समझ्ते थे. यही पॉलिटिक्स अब फेसबुक पर भी नजर आती है, लेकिन उसका असर इतना व्यापक नहीं कि जुकेरबर्ग तंग आकर फेसबुक को ही बंद कर दे.'' बेशक यहां आप अपने दोस्त चुन सकते हैं और नापसंदीदों से छुटकारा भी पा सकते हैं.
मौजूदा स्थितियां आखिर किस ओर इशारा कर रही हैं? क्या हिंदी में ब्लॉग अप्रासंगिक होते-होते खत्म हो जाएंगे? विपुल जैन ब्लॉगिंग की कुछ गंभीर तकनीकी खामियों की ओर इशारा करते हैं. समस्या हिंदी ब्लॉगिंग से कहीं ज्यादा इंटरनेट में हिंदी को लेकर है. चीन और कोरिया के उलट भारत में इंटरनेट इंग्लिश में आया और वह स्थिति अब भी कमोबेश बनी हुई है.
हिंदी में यूनिकोड देर से आया, इस वजह से अरसे तक फॉन्ट की समस्या बनी रही. विपुल कहते हैं, ''जिस तरह अरब देशों में कोई कंपनी अरबी फॉन्ट के बगैर कंप्यूटर नहीं बेच सकती, उसी तरह भारत में भी देवनागरी और राज्यों की भाषाएं कंप्यूटर की बोर्ड में अनिवार्य कर दी जानी चाहिए.''
आंकड़ों से इतर एक बड़ा तबका अभी भी ब्लॉग के भविष्य को लेकर आशान्वित है. ब्लॉग फुरसतिया के लेखक अनूप शुक्ल ब्लॉग के हाशिए पर जाने की बात को सिरे से खारिज करते हैं, ''ब्लॉग निष्क्रिय नहीं हुआ है? कल मैं अकेला ब्लॉगर था, लेकिन आज मेरे मुहल्ले में ही चार और पूरे शहर में 100 ब्लॉगर हैं. फेसबुक तो आभासी है. 5,000 के बाद फ्रेंड लिस्ट भी खत्म हो जाती है. लेकिन ब्लॉग के जरिए तो दोस्त और मुरीद मिलते हैं.'' ब्लॉग ढार्ई आखर के लेखक और पत्रकार नसीरुद्दीन हैदर भी यह मानते हैं कि जब तक कहने की इच्छा रहेगी, कहने को कुछ बात होगी, तब तक ब्लॉग बने रहेंगे.
एक ब्लॉगर की सक्रियता समय के अनुसार घटती बढ़ती रहती है लेकिन ब्लॉग को ट्विटर और फेसबुक से कोई खतरा नहीं है क्योंकि इनकी प्रक्रुति बिल्कुल अलग-अलग है। फ़ेसबुक/ट्विटर पोस्टों की लाइफ़ अखबारी खबरों से अधिक नहीं है, जबकि ब्लॉग पर स्थायी प्रकृति की सामग्री भी स्थान पाती है। फेसबुक और ट्वीटर पर आप अपना स्टेटस पोस्ट करते हैं जैसे मोबाइल पर अपना हाल-चाल बता रहे हों। यह बतकही का एक तेज साधन हो सकता है लेकिन ब्लॉग लम्बी रेस का घोड़ा है। इसे अपनी गति से चलते हुए बहुत दूर तक जाना है।
हटाएंआपका कहना सही है. ब्लॉग ही अंत में टिकेगा और जमेगा
हटाएंबिकुल ठीक कहा आपने
हटाएंमुद्रित माध्यम ऐसे लेखों को वरीयता देकर अपनी श्रेष्ठता बरकरार रखने का मुगालता पाले बैठे हैं -ब्लॉग जगत उत्तरोत्तर समृद्ध होता जाएगा -हाँ थोथा उढ़ता जाएगा !
हटाएंबहुत से थोथे तो उड़ भी चुके! नहीं?
हटाएंबहुत ही विषद विश्लेषणात्मक लेख...प्रस्तुति के लिये आभार..
हटाएंआलेख में एक तथ्यगत त्रुटि है -
हटाएंहिंदी के सबसे ज्यादा चर्चित और पढ़े जाने वाले ब्लॉगों पर प्रतिदिन 200 से 300 हिट्स होती हैं.
यह पुराना आंकड़ा है. आजकल हजार पंद्रह सौ हिट्स प्रतिदिन तो आम बात है और ऐसे हिट्स पाने वाले दर्जनों ब्लॉग हैं. हजार से ऊपर सब्सक्राइबर वाले हिंदी ब्लॉग भी कई हैं.
बिलकुल सही, यह पुराना आंकड़ा है
हटाएंइस बात से आप कितने सहमत हैं कि हिंदी ब्लॉग्स का कोई स्तरीय एग्रीगेटर नहीं होने से भी बहुत नुकसान हुआ है? वैसे मनीषा भी ब्लॉगर थीं... पर उनका ब्लॉग भी अब अपडेट नहीं होता।
हटाएंमैं बिलकुल भी सहमत नहीं हूं. हमने जब शुरूआत की थी तो मेरी पोस्ट को बमुश्किल दस लोग रोज पढ़ते थे.
हटाएंआज हजार से ऊपर सब्सक्राइबर हैं. पांच सौ से ऊपर प्रसंशक. गूगल सर्च से आने वाले अलग से. मुझे और क्या चाहिए?
यदि आपके पास कंटेंट है तो पाठक हैं. बस, कंटेंट रचते रहें. किसी एग्रीगेटर की आपको कभी जरूरत ही नहीं होगी.
सहमत मैं भी नहीं
हटाएंएक दृष्टिकोण से देखा जाए तो एग्रीगेटर्स ने अपने समय की हिंदी ब्लॉगिंग का नुकसान ही किया है.
कैसे?
इस पर तो गहन विमर्श हो चुका
सर्च से ही इतना ट्रैफिक मिलता है कि उत्साह बना रहता है
वो बात अलग है कि वह ट्रैफिक, टिप्पणियों में नहीं ढल पाता
ब्लॉग में अंतत: वही टिकेगा, जिसके पास कंटेट होगा। उसमें भी शर्त यही है कि रोचक और उपयोगी।
हटाएंएक स्तरीय एग्रीगेटर की जरुरत है तो सही ताकि स्तरीय कंटेंट को शुरुआत से प्रोत्साहन मिले
हटाएंपर अग्रीगेटर पर ही सब निर्भर होता तो हिंदी ब्लोगिंग कब की ख़त्म हो गयी होती पर ऐसा है नहीं
जहां से मैं देख पा रहा हूँ पिछले दो सालों में कई बेहतरीन सामग्री मिली हिंदी ब्लोग्स में जो कही और उपलब्ध नहीं है
और हाँ अगर आपके ब्लॉग की सामग्री अच्छी है तो बहुत से और तरीके हैं जहाँ से पाठक आपके ब्लॉग तक पहुँच ही जायेंगे .
वरना अनजाने से गाँव में बैठे व्यक्ति के ब्लॉग को अमेरिका और दिल्ली वाले रोज नहीं देखते
रजनीश जी, पाबला जी, नवीन जी,
हटाएंआप सबका सही कहना है. हिंदी ब्लॉगिंग तो अजातशत्रु है. इसका कोई दुश्मन कभी भी कहीं भी नहीं हो सकता!
इस बात से आप कितने सहमत हैं कि हिंदी ब्लॉग्स का कोई स्तरीय एग्रीगेटर नहीं होने से भी बहुत नुकसान हुआ है? वैसे मनीषा भी ब्लॉगर थीं... पर उनका ब्लॉग भी अब अपडेट नहीं होता।
हटाएंफेसबुक, ट्विटर अभिव्यक्ति के एक अलग प्रकार के माध्यम है तो ब्लॉग अलग. ब्लॉग की जगह वे कभी नहीं ले सकते.
हटाएंसही है. ब्लॉग आपकी रचनाधर्मिता को हर एंगल से एक्सपोज करने की ताकत रखते हैं.
हटाएंblog tastmatch jasa perfact ha
हटाएंblog tastmatch jasa perfact ha
हटाएंब्लॉग में अच्छा लिखने वालों को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने उठा लिया। दिशा देने वाले और प्रेरणा देने वाले लोग पॉलिटिक्स के कारण किनारा कर गए या समय की तंगी होने लगी। थोड़े समय में फेसबुक और ट्विटर तो चल सकता है लेकिन ब्लॉगिंग नहीं। ब्लॉगिंग पूरा समय मांगती है। शुरूआत में यह अपेक्षा भी थी कि ब्लॉग रैंक अच्छी होने से पैसे कमाए जा सकते हैं, लेकिन जल्दी ही वह गलतफहमी भी टूट गई। यह सारे झटके एक साथ लगे और एक पूरी पीढ़ी ने किनारा कर लिया जिससे हिंदी ब्लॉगिंग अनाथ हो गई है।
हटाएंयदि इसमें शुरूआत से जुड़े यदि 50 लोग एक निश्चय के साथ सक्रिय हो जाएँ (केवल हिंदी ब्लॉगिंग की खातिर), और एकाध अच्छा एग्रीगेटर चल पड़े, तो हिंदी ब्लॉगिंग का नया चैप्टर शुरू हो सकता है जिसमें कई विषय आधारित ब्लॉग भी सामने आ सकते हैं। फिलहाल लगता तो यही है कि हिंदी ब्लॉगिंग देखा-देखी शुरू हुई थी, देखा-देखी में ही चलेगी।
- आनंद
अपनी गलतफहमी को न टूटने दें. आप ही कह रहे हैं कि ब्लॉग में अच्छा लिखने वालों को प्रिंट मीडिया... ने उठा लिया. माने अप्रत्यक्ष रूप से तो कमाई हुई ही ना?
हटाएंऔर, एक रचनाकार को पाठक एबंडन मात्रा में मिल जाए तो क्या यह उसकी कमाई नहीं है?
पता नहीं आप किसे एग्रीगेटर कह रहे !
हटाएंमेरी जानकारी में ऐसे दसियों एग्रीगेटर हैं जिनमे हिंदी ब्लॉगों की अच्छी खासी संख्या दर्ज है
इन सभी की जानकारी एक पोस्ट में लिख कर भी दी है मैंने
आपने देखी ही होगी :-)
और विषय आधारित ब्लॉग भी सैकड़ों में हैं
सच कह रहा हूँ भई!
हम होंगे कामयाब एक दिन...हो...हो मन में है विश्वास ...पूरा है विश्वास...हम होंगे कामयाब एक दिन
हटाएं...एक दिन?
हटाएंबंधु आप तो पहले ही कामयाब हैं. यकीनन!
हम होंगे कामयाब एक दिन...मन में है विश्वास...पूरा है विश्वास...हम होंगे कामयाब एक दिन
हटाएंनिस्संदेह आज का व्यस्त व कामकाजी व्यक्ति किताबें तलाशने व खरीदने के भले ही समय न निकाल पा रहा हो पर ब्लॉग के माध्यम से अपनी क्षुधा शांत अवश्य कर ले रहा है। हिंदी की नामचीन साहित्यिक पत्रिकाओं को आज उतने लोग नहीं पढ़ रहे हैं, जितने हिंदी ब्लॉग्स को।
हटाएंआपने सही कहा. हिंदी की नामचीन पत्रिकाओं के साथ साथ तमाम अन्य प्रिंट सामग्री (अखबारों को छोड़ दें तो,) को उतना नहीं पढ़ा जा रहा है जितना ब्लॉगों को. और यह मात्रा एक्सपोनेंशियली बढ़ती ही रहेगी.
हटाएंऐसे पाठक जो ब्लाग पर लगभग नियमित हैं, उनके लिए इस लेख में खास यही है कि यह इंडिया टुडे में प्रकाशित है, वरना ब्लाग पर प्रस्तुत होने वाले विश्लेषण कम गंभीर या कम धारदार नहीं होते. तथ्यात्मक भूलों का उल्लेख तो आपने ही कर दिया है.
हटाएंब्लॉगों की सामग्री आजकल तमाम पत्र पत्रिकाओं के पृष्ठों और अखबारों के संपादकीय पन्नों में विराजमान रहते हैं. तो यह उनकी धार और गंभीरता ही है.
हटाएंमैं भविष्यवक्ता नहीं पर एक बात समझ में आती है कि साहित्य की न्यूनतम ग्रहणीय ईकाई ब्लॉग ही है, महाग्रन्थ पढ़ने का धैर्य यदि किसी में न हो, लेकिन दो लाइन की फेसबुकिया चुटुकी से भी पाठक संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। ब्लॉग सशक्त माध्यम के रूप में उभरेगा।
हटाएंपर, यह भी यकीन रखिए कि आने वाले समय में ब्लॉगों में महाग्रन्थ भी आएंगे और उन्हें भी लोग उसी महा लगन और धैर्य से पढ़ेंगे
हटाएंब्लॉग तो टेस्ट मैच की तरह है जिसमे कलात्मकता है फेस्बूक 20-20 है, आज का हिन्दी गाना है जिसको लोग भुला नहीं पायेंगे तो याद भी तो नहीं रख पायेंगे
हटाएंहाँ, क्रिकेट के लिहाज से यह तुलना सटीक है.
हटाएंबढिया विमर्श चला!
हटाएंसंकलक को लेकर इतना जोर दिखने से ऐसा नहीं लगता जैसे शब्दकोश के बिना शब्द नहीं चल सकते, यह मानना ?
और कुछ कहने का मन था लेकिन फिलहाल ब्लॉग से दूरी बनी हुई है, इसलिए अभी इतना ही।
ब्लाग पते में आज काम के जगह डाट इन दिख रहा है, कुछ खास वजह ?
ब्लॉगर अपने प्लेटफ़ॉर्म को देश विशेष आधारित डोमेन नेम टिका रहा है. लोगों का कहना है कि यह सेंसर की ओर बढ़ता कदम है !
हटाएंसच यह है कि फ़ेस्बुक और ट्वीटर ने ब्लागिंग को बरबाद कर दिया । लम्बे समय तक फ़ेस्बुक पर चिपके रहने के बाद मैने तो तौबा कर ली
हटाएंब्लॉगिंग बरबाद तो नहीं हुई है, अलबत्ता कुछ हिंदी ब्लॉगर लोग जरूर फेसबुक में जम गए हैं तो वे जरुर घर के बुद्धू हैं, वापस लौट आएंगे.
हटाएंआपकी इस बात से घोर सहमति
हटाएंब्लॉग का अपना एक अलग महत्व है। मैं लम्बे समय से फेसबुक पर भी हूं। लेकिन, जब भी मैं आभासी दुनिया पर आता हूं तो पहले ब्लॉग देखता हूं अपना और अन्य। फेसबुक पर कुछ क्षण के लिए ही जाता हूं।
हटाएंरवि जी फिलहाल अपने ब्लॉग पर आ रही एक समस्या आपके सामने रखता हूं। मेरे ब्लॉग पोस्ट पर टिप्पणी की संख्या में अंतर दिख रहा है। बाहर यदि 12 टिप्पणियां लिखा है तो अंदर वो 8 ही दिखती हैं। दूसरी कई मित्रों की टिप्पणियां स्वत: ही स्पैम में चली जा रही हैं। कुछ तकनीकि दिक्कत है तो बताइए। साथ ही यह भी बताने की कृपा करें कि टिप्पणी में प्रत्युत्तर का ऑप्शन कैसे शुरू होगा। www.apnapanchoo.blogspot.com
lokendra777@gmail.com
09893072930
स्पैम में टिप्पणियों का जाना तो स्वचालित होता है. परंतु यह स्वयं सीखता भी है. तो जब आप ऐसी टिप्पणियों को एप्रूव करते हैं तो वह आगे स्पैम में नहीं जाती.
हटाएंटिप्पणी में प्रत्युत्तर का विकल्प पाने के लिए आप अपने टैम्प्लेट में फेरबदल कर देखें. डिफ़ॉल्ट ब्लॉगर का यह जो टैम्प्लेट मैंने लगाया है, इसमें प्रत्युत्तर का विकल्प स्वयं ही आ गया है. मैंने कोई सेटिंग बदली नहीं है.
हम्म.
हटाएंतो पत्रिकाओं का भी ब्लागिंग के प्रति दुराग्रह समाप्त हुआ !...
हाँ, लगता तो है..
हटाएंब्लागिंग चलेगी. ब्लॉग पढ़े जायेंगे. शुरुआती दौर वाले उत्साह की कमी हो गई होगी लेकिन रिफाइनमेंट का प्रॉसेस ही ऐसा है. ट्विटर और फेसबुक के जरिये मुझे बहुत पाठक मिले हैं. ज्यादा दिन तक कुछ न लिखे जाने पर लोग पूछते भी हैं कि नया लेख कब लिखेंगे?
हटाएंऐसे में एक और पोस्ट लिख देते हैं. ऐसे ही चल रही है ब्लागिंग. और भविष्य में चलेगी भी.
क्योंकि हर ऐरा गैरा आज ब्लॉगर बन गया है जिसने कभी इमला तक नहीं लिखा आज वो बड़ी बड़ी बातें लिख रहा है सब लेखक बन गए हैं और बोर कर रहे हैं इसलिए बुरी दशा है
हटाएंएग्रीगेटर मददगार थे. आप लिखते तो विश्वास रहता की लोगों तक पहुँच रहा है. कोई पढ़े न पढ़े यह एक अलग बात है. अब जब लिखते है तो लगता है किसी को कैसे पता चलेगा. वहीं फैसबुक में सभी मौजुद दिखते है. वहाँ लिखा तो मित्रों की दीवार पर दिखेगा ही. प्रतिक्रिया भी तत्काल मिल जाती है.
हटाएंयह एक मनोविज्ञान लिखा है. लोगो के विमुखता का कारण, मुझे यह लगता है.
एक किस्सा बचपन में सुना था, कछुए और खरगोश के बीच प्रतिस्पर्धा होती है... दोनों दौड लगाते हैं, खरगोश तेजी से भागता है पर कछुआ धीमी गति से चलता रहता है। खरगोश को लगता है कि वह कछुए से काफी आगे है और कछुआ उसकी बराबरी नहीं कर सकता, जीतेगा वह ही। इसी अभिमान में वह कुछ देर सुस्ता लेने की गरज से सो जाता है... उसकी नींद पड जाती है पर कछुआ अपनी गति से चलता ही रहता है और खरगोश से आगे निकल जाता है... आखिर में जीत कछुए की हो जाती है.......
हटाएंमुझे लगता है कि ब्लाग इस कहानी का कछुआ है........
एक दौर है ...अभी तो और गति आयेगी. अभिव्यक्ति की ऐसी आजादी..भला किसे पसंद न होगी. उज्जवल भविष्य के लिए पूर्णतः आशान्वित और आज की स्थितियों से संतुष्ट...
हटाएंजिस दिन पोस्ट आयी थी तभी देख ली थी . उस दिन भी एक ही सवाल मन में था " मनीषा पाण्डेय " क्या ब्लॉगर हैं या महज एक पत्रकार ही हैं . क्युकी अगर वो सक्रिय ब्लॉगर होती तो आज कल सक्रिय ब्लॉगर से बात चीत करके उनका नज़रिया भी यहाँ देती . चंद हिंदी ब्लॉगर जो हिंदी ब्लॉग्गिंग को शुरू करवाने में सहायक रहे हैं और जिनका महत्व अब केवल हिंदी ब्लॉग्गिंग का इतिहास में नाम दर्ज करवाना हैं अगर मनीषा पाण्डेय केवल उनका नज़रिया ले कर आलेख लिखेगी तो वो केवल भ्रम ही पैदा करेगा .
हटाएंब्लॉग बढ़ रहे हैं घट नहीं रहे हैं . और एग्रीगेटर भी हैं और उनका ना होना खलता था अब नहीं क्युकी आदत बदल जाती हैं
मनीषा पाण्डेय को चाहिये और ब्लॉग पढ़े और लोगो से बात चीत करे . कुछ महनत करे आकलन देने से पहले
विचारणीय लेख ....
हटाएंब्लॉग ने छपास के भूखों को ललचाया तो जरूर किन्तु जल्दी ही वे भूखों मरने लगे और परिदृष्य से अदृष्य भी हो गए। फेसबुक और ट्विटर से ब्लॉग की तुलना करना उचित नहीं लगता। दोनों में वही अन्तर है जो 'सूक्ति' और 'आलेख' में है। मुझे यह भी लग रहा है कि ब्लॉग को इतना समय नहीं हुआ कि इस पर इस नजर से देखा जाए/विचार किया जाए। यह तो अभी शैशवकाल में ही है। अभी तो इसने आकार भी नहीं लिया है।
हटाएंकिन्तु दो-एक बातें कहना मुझे जरूरी लग रही हैं। पहली तो यह कि इसकी सामग्री में 'साहित्य' की अनिवार्यता नहीं तलाशी जानी चाहिए। इसकी अनगढता और इसका खुरदरापन ही इसकी सुन्दरता है। जिसे, जहॉं 'साहित्य' मिले, पढे ले, आनन्द ले ले। जो लगातार लिखता रहेगा वह बना रहेगा और यदि अच्छा लिखेगा तो बने रहने के साथ ही साथ पढा भी जाता रहेगा। मैं ब्लॉग को हमारे 'लोक जीवन' का प्रतिरूप मानता हूँ जहॉं यदि 'सुभाषित' हैं तो 'गालियॉं' भी हैं। दोनों की अपनी-अपनी जगह भी है और जरूरत भी। इसे न तो 'श्रेष्ठ' बनाने की कोशिश्ा की जानी चाहिए और न ही 'यलो लिटरेचर' में बदला जाना चाहिए। दूसरी बात - कोई न कोई एग्रीगेटर बनाने पर विचार अवश्य ही किया जाना चाहिए। इसलिए नहीं कि 'मेरा ब्लॉग सब तक पहुँचे' बल्कि इसलिए कि एक सम्पूर्ण सन्दर्भ उपलब्ध हो सके।
मैं ऐसे कस्बे में हूँ जहॉं की आबादी अभी तीन लाख तक भी नहीं पहुँची है। फिर भी सप्ताह में दो-तीन लोग ऐसे मिल जाते हैं जो मेरे ब्लॉग की चर्चा करते हैं। इनमें से अधिकारंश लोग ऐसे होते हैं जिनके घरों में इण्टरनेट नहीं है। यह बात मुझे आश्वस्त करती है कि ब्लॉग के दिन तो अब आनेवाले हैं। यह न तो मेरा 'भरोसा' है न ही 'शुभेच्छापूर्ण सोच।' यह हकीकत है।
ब्लॉग बना रहेगा।
ब्लॉग न सिर्फ बना रहेगा, उत्तरोत्तर फलेगा-फूलेगा.
हटाएंअंग्रेज़ी व अन्य भाषाओं के ब्लॉग उदाहरण हैं.
लोग कहना ज़्यादा चाहते हैं और पढना कम...वैसे कोई भी ग्राफ पहले तेज़ी से उठता फिर गिरता और फिर स्थाई होता है...फिर धीरे धीर दुबारा उठता है...ट्विटर तो बिल्कुल बोरिंग लगा....हाँ, फेसबुक दोस्तों से जुड़ने का अच्छा माध्यम हो चला है... इसका उपयोग् अपने ब्लॉग को और ब्लॉग के ज़रिये अपनी बात पहुँचाने के लिये किया जा सकता है... लिख्ने और पढ़ने के लिये ब्लॉग सदैव एक अच्छा और पसन्दीदा माध्यम बना रहेगा ऐसा मानना भी है और ईश्वर से प्रार्थना भी...
हटाएंजिस तरह २०-२० के आने से टैस्ट मैच खत्म नहीं हुआ वैसे ही फेसबुक, ट्विटर के बावजूद ब्लॉग की जगह बनी रहेगी।

हटाएं--
मनीषा जी ने लेख में विपुल जैन जी को डॉक्टर से इंजीनियर बना दिया।