आदमी की (सद्यः संशोधित?) मूल भूत आवश्यकताओं में अब शामिल हैं – रोटी, कपड़ा, मकान और जी हाँ, सही पहचाना - ब्लॉगिंग! बहुत पहले की मजाक में ...
आदमी की (सद्यः संशोधित?) मूल भूत आवश्यकताओं में अब शामिल हैं – रोटी, कपड़ा, मकान और जी हाँ, सही पहचाना - ब्लॉगिंग! बहुत पहले की मजाक में कही गई बात अब सत्य प्रतीत होती दीखती है. आदमी (और, औरतों की भी,) की मूलभूत आवश्यकताओं में अब रोटी, कपड़ा और मकान के साथ साथ इंटरनेट तो जुड़ ही गया है. फ़िनलैण्ड विश्व का ऐसा पहला देश बन गया है जहाँ इंटरनेट – वो भी 1 एमबीपीएस ब्रॉडबैण्ड को अब व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल मान लिया गया है और इसके लिए क़ानून बना दिया गया है. इधर, इंटरनेट से ब्लॉगिंग जुड़ा हुआ है. तो हम आगे क्यों न एक बात मजाक में ही सही, कहें – आदमी की मूल भूत आवश्यकताओं में अब शामिल हैं – रोटी, कपड़ा, मकान और ब्लॉगिंग!
और, जब चहुँओर ब्लॉगिंग की धूम मच रही हो तो कार्पोरेट जगत में, कार्पोरेट स्टाइल में कार्पोरेट ब्लॉगिंग क्यों नहीं? कार्पोरेट ब्लॉगिंग नाम के किताब में राजीव करवाल और प्रीति चतुर्वेदी ने इसी विषय को केंद्र में रखते हुए बहुत सी काम की बातें बताईं हैं. डेढ़ सौ पृष्ठों की इस किताब का मूल्य तीन सौ पैंतालीस रुपए है जो कि थोड़ा ज्यादा प्रतीत होता है, मगर जब बात कार्पोरेट जगत की कही जाएगी तो मामला थोड़ा महंगा तो होगा ही! वैसे किताब के पन्ने व लेआउट, प्रिंटिंग इत्यादि उच्च श्रेणी के हैं.
किताब में नौ अध्याय है जिसमें कार्पोरेट ब्लॉगिंग परिदृश्य से लेकर मार्केटिंग, उत्पादकता, उपभोक्ता इत्यादि तमाम पहलुओं में ब्लॉगिंग के जरिए ज्यादा से ज्यादा कैसे कुछ हासिल किया जा सकता है यह बताने की कोशिश उदाहरणों के साथ की गई है. कई मामले में लेखक द्वय सफल भी रहे हैं, तो कहीं कहीं उबाऊ, दोहराए गए विवरण भी हैं. हर अध्याय के अंत में टिप्पणियाँ और संदर्भ नाम से किताबों, सीडी, व नेट के कड़ियों युक्त संदर्भ दिए हैं, जिससे विषय संबंधी अतिरिक्त ज्ञान हासिल तो किया ही जा सकता है, तथ्यों की पुष्टि भी की जा सकती है.
जब आईबीएम और डिज़्नी जैसी विशालकाय बहु-राष्ट्रीय कंपनियाँ ब्लॉगों का उपयोग उत्पाद/परियोजना में अभिनवता लाने तथा आंतरिक परियोजना प्रबंधन जैसे उपायों के लिए भी कर रही हैं, तो कार्पोरेट जगत में ब्लॉगों की लोकप्रियता और उपादेयता स्वयंसिद्ध है ही. क्लीयरट्रिप.कॉम जैसे उपक्रमों के उदाहरण दिए गए हैं कि कैसे इन कार्पोरेट सेक्टरों ने ब्लॉगों का शानदार, व्यवहारिक प्रयोग अपने उत्पादों के बारे में जानकारियों को जनजन तक पहुँचाने में, ग्राहकों से फ़ीडबैक लेने व उन्हें उच्च स्तरीय सुविधाएँ प्रदान करने में कैसे किया.
नेटकोर के राजेश जैन भारत में कार्पोरेट ब्लॉगिंग के पुरोधाओं में से एक रहे हैं जो ईमर्जिक – राजेश जैन का ब्लॉग नाम से अपना ब्लॉग लिखते हैं. आज की तिथि में सैकड़ों बड़ी और नामी भारतीय कंपनियों के सीईओ तथा कंपनियों के स्टाफ़ में से ही, कार्पोरेट ब्लॉगिंग करते हैं – जाहिर है, अपने व्यवसाय को एक नई दिशा देने के लिए.
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कार्पोरेट ब्लॉगिंग इन इंडिया
लेखक गण - राजीव करवाल एवं प्रीति चतुर्वेदी
प्रकाशक – विज़्डम ट्री, 4779/23, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-2
पृष्ठ – 127, मूल्य 345.00 रुपए.
आईएसबीएन नं. – 978-81-8328-131-7
दीपावली के शुभ अवसर पर आपको और आपके सहपरिवार और आपके सभी शुभचिंतको को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये.
हटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी
हटाएंयह भारत में ब्लॉगिंग के भविष्य के लिए सुखद संकेत है। जानकारी देने का आभार।
हटाएंआपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की
हटाएंहार्दिक बधाइयां
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये .
हटाएंअच्छी जानकारी।
हटाएंशुभ दीपावली।
आलेख का आभार ।
हटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।
अच्छी जानकारी।
हटाएंअप्प दीपो भव!
इस साल ओबामा ने दीपावली मनाई, आगे से हर देश प्रकाश पर्व मनाए.
हार्दिक शुभकामनाएँ
उम्दा जानकारी, उम्दा शब्द संयोजन के साथ। अच्छी समीक्षा की है रवि जी। पुस्तक समीक्षा दो बार पढ़ गया, आपके शब्द बांधने में कामयाब और यह पुस्तक आकर्षित करने में कामयाब रहे। पुस्तक पढऩा चाहंूगा। शुक्रिया। दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं।
हटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
हटाएंअति सुन्दर पर अपनी रोटी तो हिन्दी की धरती के विकास से जूड़ा है, उसे कैसे कार्पोरेट की मुख्य वाहिका बनाया जाय.
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