व्यंग्य *-*-* एवरीथिंग ऑफ़िशियल अबाउट क्रिकेट *-*-* इससे पहले मैं क्रिकेट देखता सुनता नहीं था. खेलना तो खैर, दूर की बात है. परंतु जब सुना कि...
व्यंग्य
*-*-*
एवरीथिंग ऑफ़िशियल अबाउट क्रिकेट
*-*-*
इससे पहले मैं क्रिकेट देखता सुनता नहीं था. खेलना तो खैर, दूर की बात है. परंतु जब सुना कि मियाँ मुशर्रफ़ क्रिकेट देखने भारत आ रहे हैं तो लगा कि क्रिकेट में कुछ तो होगा कि लोग दीवाने बने फिरते है. तो इस बार देखा. सुना था कि क्रिकेट इज़ ए फनी गेम. येप, इट इज़, जेंटलमेन. सचमुच दूसरे किसी भी खेल में मज़े का अंश उतना नहीं रहता जितना क्रिकेट में होता है. हॉकी, फ़ुटबाल से लेकर जिम्नास्टिक, एथलेटिक्स – किसी भी खेल को लीजिए, उसमें खेल का मज़ा होता है. परन्तु क्रिकेट में तो मज़ा ही मज़ा होता है. मजे का खेल होता है.
क्रिकेट के बारे में मैंने पिछले कुछ दिनों में तमाम अध्ययन किए, काफ़ी कुछ देखा, सुना और बहसें कीं. राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, स्थानीय क्रिकेट पत्र-पत्रिकाओं तथा क्रिकेट विशेषांकों का अध्ययन किया, इंटरनेट की क्रिकेट से सम्बन्धित तमाम साइटों की खाक छान डाली, टीवी पर लाइव मैचेस देखे, और साथ ही साथ रेडियो पर आँखों देखा हाल भी सुना. यही नहीं, मैंने अपने मुहल्ले में गली क्रिकेट भी खेली. प्रत्येक मैच के प्रारम्भ होने से पहले, मैच के दौरान और मैच के बाद मैच के बारे में विशेषज्ञों द्वारा किए गए विश्लेषणों का गहन चिंतन-मनन और विश्लेषण किया. क्रिकेट मैच की तरह ये भी खासे मज़ेदार रहे. इस प्रकार मेरे पास क्रिकेट के बारे में ढेर सारी, अच्छी खासी ज़ानकारी एकत्र हो गई जिनमें मेरे अपने क्रिकेट के अनुभव भी शामिल हैं.
क्रिकेट के अपने अनुभवों का गहराई से विश्लेषण करने पर मैंने पाया कि मेरे पास भी क्रिकेट के बारे में बोलने बताने को काफी कुछ है. मैं इससे आपको वंचित नहीं करना चाहता, और चाहता हूँ कि आप भी मौक़े का कैच पकड़ें और जानें समथिंग ऑफ़ीशियल अबाउट क्रिकेट-
क्रिकेट एकमात्र ऐसा खेल है, जो किसी जमाने में बहुत पहले सिर्फ मैदानों में खेला जाता था. अब गली मोहल्लों – भीड़ भरी सड़कों से लेकर रेडियो, टीवी-प्रसारणों, पत्र-पत्रिकाओं के स्तम्भों-विशेषांकों, राजनीति और सट्टे – यानी यत्र-तत्र-सर्वत्र खेला जाने लगा है. अब तो क्रिकेट - खेल से भी आगे जाकर क्रिकेट डिप्लोमेसी तक पहुँच गया है, जहाँ एक देश के संबंध क्रिकेट के कारण एक दूसरे से बनते बिगड़ते रहते हैं. परंतु क्रिकेट को लेकर ये बातें विश्व के कुछ दर्जन-भर राष्ट्रों में ही लागू है, जिनमें भारत-पाकिस्तान प्रमुख हैं.
इस खेल में सिर्फ हार या सिर्फ जीत ही महत्वपूर्ण होती है, खेल नहीं. अगर किसी देश की टीम हार जाती है तो उस टीम के विरूद्ध उनके देश में धरना प्रदर्शन तो होते ही हैं, गाहे बगाहे धोखेबाज़ी, भ्रष्टाचार और मैच फ़िक्सिंग के आरोप भी लगाए जाते हैं. जाँच की मांग की जाती है. टीम का जो सदस्य हार का जिम्मेदार माना जाता है, उसका घर से निकलना दूभर हो जाता है, लोग उसके घर में पत्थरों की बौछारें तक करने लगते हैं. मैदानों में तो पत्थरबाजी आम बात है ही. अगर टीम जीत जाती है तो उसे इनामों से लाद दिया जाता है, प्रशंसा के पुल बाँध दिए जाते हैं. परंतु हर दूसरे मैच में हार-जीत की यह स्थिति टॉगल होती रहती है. यह एकमात्र ऐसा खेल है, जिसके खेलने वालों की संख्या सैकड़ों में है, लाखों इसे देखते हैं और इसके विशेषज्ञ करोड़ों में (यानी, लगभग हर कोई) हैं. कोई भी अपनी विशेषज्ञता पूर्ण राय दे सकता है कि टॉस का फैसला या पहले खेलने का फैसला कुछ दूसरा लिया गया होता तो मैच का परिणाम कुछ दूसरा होता. यानी खिलाड़ी की कैपेबिलिटी, टीम की कैपेबिलिटी ज्यादा मायने नहीं रखती. क्रिकेट में मायने रखता है – टॉस, अम्पायर, विकेट, मौसम और सट्टा.
क्रिकेट के बारे में कहा जाता है कि मैच की आखिरी गेंद फेंकी जाने तक भी मैच के भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. सत्य को डिफ़ाइन करने का इससे उचित वाक्य हो ही नहीं सकता. भले ही एक गेंद बची हो और मैच जीतने के लिए डेढ़ सौ रन बनाने हों, तब भी कयास लगाए जाते हैं, पूर्वानुमान लगाए जाते हैं और विश्लेषण किया जाता है कि अगर पानी गिर गया या अँधेरा हो गया तो मैच रूक जाएगा और यह टीम रन औसत के आधार पर जीत सकती है. यूं टीम में प्रत्येक पक्ष में ग्यारह खिलाड़ी होते हैं, परंतु कभी कभी अम्पायर और रेफरी भी किसी टीम की तरफ से खेलने लग गए प्रतीत होते हैं. क्रिकेट में कहा जाता है कि जिस टीम ने टॉस जीत लिया, समझो आधा मैच जीत लिया. पर अमूनन वह बाकी का आधा मैच हार ही जाता है.
क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसे पाँच-पाँच दिनों तक या दिन-दिन भर खेलने के बजाए उसे देखने में ज्यादा आनंद आता है. हाथों में चिप्स का पैकेट हो और टीवी पर क्रिकेट का मैच तो फिर काउच पोटैटो के आनंद के क्या कहने. परंतु उससे भी ज्यादा मज़ा मैच की चर्चा, उस पर विचार, उसके विश्लेषणों और आँकड़ों पर अनवरत बहसों में आता है कि कौन सी टीम कैसा खेली, किस खिलाड़ी ने कितने-कैसे चव्वे मारे, किसने कितने कैच टपकाए इत्यादि – इत्यादि.
तो, ये था मेरा ‘समथिंग’. आपके पास भी तो क्रिकेट की जमापूँजी होगी इस बारे में. तो फिर शीघ्र बताइए ताकि उन्हें भी ‘एवरीथिंग ऑफ़िशियल अबाउट क्रिकेट’ में शामिल किया जा सके.
(संपादित अंश नईदुनिया अधबीच में 8 जुलाई 1996 को पूर्व-प्रकाशित)
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एवरीथिंग ऑफ़िशियल अबाउट क्रिकेट
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इससे पहले मैं क्रिकेट देखता सुनता नहीं था. खेलना तो खैर, दूर की बात है. परंतु जब सुना कि मियाँ मुशर्रफ़ क्रिकेट देखने भारत आ रहे हैं तो लगा कि क्रिकेट में कुछ तो होगा कि लोग दीवाने बने फिरते है. तो इस बार देखा. सुना था कि क्रिकेट इज़ ए फनी गेम. येप, इट इज़, जेंटलमेन. सचमुच दूसरे किसी भी खेल में मज़े का अंश उतना नहीं रहता जितना क्रिकेट में होता है. हॉकी, फ़ुटबाल से लेकर जिम्नास्टिक, एथलेटिक्स – किसी भी खेल को लीजिए, उसमें खेल का मज़ा होता है. परन्तु क्रिकेट में तो मज़ा ही मज़ा होता है. मजे का खेल होता है.
क्रिकेट के बारे में मैंने पिछले कुछ दिनों में तमाम अध्ययन किए, काफ़ी कुछ देखा, सुना और बहसें कीं. राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, स्थानीय क्रिकेट पत्र-पत्रिकाओं तथा क्रिकेट विशेषांकों का अध्ययन किया, इंटरनेट की क्रिकेट से सम्बन्धित तमाम साइटों की खाक छान डाली, टीवी पर लाइव मैचेस देखे, और साथ ही साथ रेडियो पर आँखों देखा हाल भी सुना. यही नहीं, मैंने अपने मुहल्ले में गली क्रिकेट भी खेली. प्रत्येक मैच के प्रारम्भ होने से पहले, मैच के दौरान और मैच के बाद मैच के बारे में विशेषज्ञों द्वारा किए गए विश्लेषणों का गहन चिंतन-मनन और विश्लेषण किया. क्रिकेट मैच की तरह ये भी खासे मज़ेदार रहे. इस प्रकार मेरे पास क्रिकेट के बारे में ढेर सारी, अच्छी खासी ज़ानकारी एकत्र हो गई जिनमें मेरे अपने क्रिकेट के अनुभव भी शामिल हैं.
क्रिकेट के अपने अनुभवों का गहराई से विश्लेषण करने पर मैंने पाया कि मेरे पास भी क्रिकेट के बारे में बोलने बताने को काफी कुछ है. मैं इससे आपको वंचित नहीं करना चाहता, और चाहता हूँ कि आप भी मौक़े का कैच पकड़ें और जानें समथिंग ऑफ़ीशियल अबाउट क्रिकेट-
क्रिकेट एकमात्र ऐसा खेल है, जो किसी जमाने में बहुत पहले सिर्फ मैदानों में खेला जाता था. अब गली मोहल्लों – भीड़ भरी सड़कों से लेकर रेडियो, टीवी-प्रसारणों, पत्र-पत्रिकाओं के स्तम्भों-विशेषांकों, राजनीति और सट्टे – यानी यत्र-तत्र-सर्वत्र खेला जाने लगा है. अब तो क्रिकेट - खेल से भी आगे जाकर क्रिकेट डिप्लोमेसी तक पहुँच गया है, जहाँ एक देश के संबंध क्रिकेट के कारण एक दूसरे से बनते बिगड़ते रहते हैं. परंतु क्रिकेट को लेकर ये बातें विश्व के कुछ दर्जन-भर राष्ट्रों में ही लागू है, जिनमें भारत-पाकिस्तान प्रमुख हैं.
इस खेल में सिर्फ हार या सिर्फ जीत ही महत्वपूर्ण होती है, खेल नहीं. अगर किसी देश की टीम हार जाती है तो उस टीम के विरूद्ध उनके देश में धरना प्रदर्शन तो होते ही हैं, गाहे बगाहे धोखेबाज़ी, भ्रष्टाचार और मैच फ़िक्सिंग के आरोप भी लगाए जाते हैं. जाँच की मांग की जाती है. टीम का जो सदस्य हार का जिम्मेदार माना जाता है, उसका घर से निकलना दूभर हो जाता है, लोग उसके घर में पत्थरों की बौछारें तक करने लगते हैं. मैदानों में तो पत्थरबाजी आम बात है ही. अगर टीम जीत जाती है तो उसे इनामों से लाद दिया जाता है, प्रशंसा के पुल बाँध दिए जाते हैं. परंतु हर दूसरे मैच में हार-जीत की यह स्थिति टॉगल होती रहती है. यह एकमात्र ऐसा खेल है, जिसके खेलने वालों की संख्या सैकड़ों में है, लाखों इसे देखते हैं और इसके विशेषज्ञ करोड़ों में (यानी, लगभग हर कोई) हैं. कोई भी अपनी विशेषज्ञता पूर्ण राय दे सकता है कि टॉस का फैसला या पहले खेलने का फैसला कुछ दूसरा लिया गया होता तो मैच का परिणाम कुछ दूसरा होता. यानी खिलाड़ी की कैपेबिलिटी, टीम की कैपेबिलिटी ज्यादा मायने नहीं रखती. क्रिकेट में मायने रखता है – टॉस, अम्पायर, विकेट, मौसम और सट्टा.
क्रिकेट के बारे में कहा जाता है कि मैच की आखिरी गेंद फेंकी जाने तक भी मैच के भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. सत्य को डिफ़ाइन करने का इससे उचित वाक्य हो ही नहीं सकता. भले ही एक गेंद बची हो और मैच जीतने के लिए डेढ़ सौ रन बनाने हों, तब भी कयास लगाए जाते हैं, पूर्वानुमान लगाए जाते हैं और विश्लेषण किया जाता है कि अगर पानी गिर गया या अँधेरा हो गया तो मैच रूक जाएगा और यह टीम रन औसत के आधार पर जीत सकती है. यूं टीम में प्रत्येक पक्ष में ग्यारह खिलाड़ी होते हैं, परंतु कभी कभी अम्पायर और रेफरी भी किसी टीम की तरफ से खेलने लग गए प्रतीत होते हैं. क्रिकेट में कहा जाता है कि जिस टीम ने टॉस जीत लिया, समझो आधा मैच जीत लिया. पर अमूनन वह बाकी का आधा मैच हार ही जाता है.
क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसे पाँच-पाँच दिनों तक या दिन-दिन भर खेलने के बजाए उसे देखने में ज्यादा आनंद आता है. हाथों में चिप्स का पैकेट हो और टीवी पर क्रिकेट का मैच तो फिर काउच पोटैटो के आनंद के क्या कहने. परंतु उससे भी ज्यादा मज़ा मैच की चर्चा, उस पर विचार, उसके विश्लेषणों और आँकड़ों पर अनवरत बहसों में आता है कि कौन सी टीम कैसा खेली, किस खिलाड़ी ने कितने-कैसे चव्वे मारे, किसने कितने कैच टपकाए इत्यादि – इत्यादि.
तो, ये था मेरा ‘समथिंग’. आपके पास भी तो क्रिकेट की जमापूँजी होगी इस बारे में. तो फिर शीघ्र बताइए ताकि उन्हें भी ‘एवरीथिंग ऑफ़िशियल अबाउट क्रिकेट’ में शामिल किया जा सके.
(संपादित अंश नईदुनिया अधबीच में 8 जुलाई 1996 को पूर्व-प्रकाशित)
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