वैसे भी, कहावत है ही – जर, जमीन और जोरू. जोरू याने नारी. सारे झगड़े की जड़ ये ही हैं. ये अगर दूर रहें, आदमी की जिंदगी से बहुत दूर रहें...
वैसे भी, कहावत है ही – जर, जमीन और जोरू. जोरू याने नारी. सारे झगड़े की जड़ ये ही हैं. ये अगर दूर रहें, आदमी की जिंदगी से बहुत दूर रहें तो किसी तरह की समस्या ही न हो. महिलाएँ पुरूषों से दूर रहें तो फिर निरूपमा जैसे कांडों को सिरे से नकारा नहीं जा सकता?
क्यों न अब आदमीयत की सारी शक्ति इस बात पर लगा देनी चाहिए कि महिलाओं को पुरुषों से कैसे दूर कर दिया जाए. अब भले ही महिलाएँ माँ, बहन, बेटियाँ हों, बहुएँ, सास हों, मामी – चाची हों. इन्हें पुरुषों से दूर करना ही होगा. दफ़्तर हो या घर. मस्जिद हो या मंदिर क्या फर्क पड़ता है? वैसे भी, किसी धर्म स्थल और पब में आखिर क्या कोई अंतर होता है? वहाँ भी दर और दीवार होते हैं यहाँ भी. पब तो फिर भी ज्यादा सुसज्जित और लाइवली होता है – और शायद इसी वजह से कुछ समय पूर्व महिलाओं को पब से दूर रहने की सलाहें दी गईं थीं…
व्यंज़ल
कोई पास है कोई दूर है
वो पास रहकर भी दूर है
निरूपमा जैसी बेटियों की
दिल्ली अभी बहुत दूर है
आसमान तो मुट्ठी में है
मगर धरती क्यों दूर है
दूरी कदम भर की है पर
मंजिल क्यों बहुत दूर है
सबके के दिलों में है रवि
खुद से दूर, बहुत दूर है
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दूर रहिये, मजबूर रहिये ।
हटाएंऔरों को नसीहत और खुद मियां....
हटाएंमियांजी को घर में तो चार चार की दरकार है।
शरियत में तो औरत को नौकरी ही नगवार है।
घडी को उलटी घुमा रहे हो मियां........
इतने बच्चो के लिए दोहरी आमदनी ही सरोकार है।
ये औरत को दिमाग से निकाल नहीं सकते. इसलिए ना ना बहानों से उसे कोसते रहते है.
हटाएंअच्छा लगा पढकर।
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