(2007 में आलोक पुराणिक ब्लॉगों में इस तरह हंसते-हंसाते हुए पाए गए थे) सूचना – यह आलोक पुराणिक पर संस्मरण भी है. इसे जुगाड़ का व्यंग्य भी कह ...
(2007 में आलोक पुराणिक ब्लॉगों में इस तरह हंसते-हंसाते हुए पाए गए थे)
सूचना – यह आलोक पुराणिक पर संस्मरण भी है.
इसे जुगाड़ का व्यंग्य भी कह सकते हैं तो व्यंग्य का जुगाड़ भी, क्योंकि जब व्यंग्य जुगलबंदी ने अपने पूरे 50 के आंकड़े छुए तो मैंने प्रस्तावित किया था कि अब जुगलबंदी को थोड़ा विश्राम दिया जाए, जुगलबंदी के हासिल जमा की पड़ताल की जाए और फिर संभव हो तो कुछ अरसे बाद जोर-शोर से जुगलबंदी सीजन -2 चालू किया जाए.
मगर मेरा प्रस्ताव नक्कारखाने में तूती साबित हुई और फुरसतिया, कट्टाकानपुरी, अनूपशुक्ल 51 वीं जुगलबंदी का जुगाड़ ले आए. तो मैंने सोचा कि जुगलबंदी में अपना स्वयं का एकल विश्राम दे देते हैं, क्योंकि लगता था कि जुगलबंदी के व्यंग्यों को न तो कोई पढ़ता है, न कोई भाव देता है, न कहीं चर्चा होती है. फुरसतिया चर्चा भी बड़ी अनियमित हो गई और जुगलबंदी के तमाम व्यंग्य कहाँ किधर लिखे जाते हैं, लोगों को पता ही नहीं चलता.
मगर ये क्या?
व्यंग्य के बाबा आलोक पुराणिक ने अपने वर्तमान सवाल जवाब सीरीज में इस सवाल –
“...हजारों व्यंग्य लिखने से भ्रष्ट नौकरशाही, नेता, दलाल, मंत्री पर कोई असर नहीं पड़ता। फेसबुक में इन दिनों" व्यंग्य की जुगलबंदी " ने तहलका मचा रखा है इस में आ रही रचनाओं से पाठकों की संख्या में ईजाफा हो रहा है ऐसा आप भी महसूस करते हैं क्या ?..”
के जवाब में जब यह कहा –
“...अनूप शुक्ल ने व्यंग्य की जुगलबंदी के जरिये बढ़िया प्रयोग किये हैं। एक ही विषय पर तरह-तरह की वैरायटी वाले लेख मिल रहे हैं। एक तरह से सीखने के मौके मिल रहे हैं। एक ही विषय पर सीनियर कैसे लिखते हैं, जूनियर कैसे लिखते हैं, सब सामने रख दिया जाता है। बहुत शानदार और सार्थक प्रयोग है जुगलबंदी। इसका असर खास तौर पर उन लेखों की शक्ल में देखा जा सकता है, जो एकदम नये लेखकों-लेखिकाओं ने लिखे हैं और चौंकानेवाली रचनात्मकता का प्रदर्शन किया है उन लेखों में। यह नवाचार इंटरनेट के युग में आसान हो गया।...”
तो लगा कि मैं तो महा-मूर्ख था जो नाहक ही सन्यास ले रहा था. मैं भी तो, चौंकाने वाली रचनात्मकता का प्रदर्शन करने वाले जुगलबंदी व्यंग्यकारों में शामिल हूँ! भाई मेरे, ये तो मेरे अगले 50 जुगलबंदी-व्यंग्य का जुगाड़ हो गया था!
अब जब जुगाड़ लग ही गया तो, आगे की बात. सवाल जवाब के सिलसिले में कहीं पर व्यंग्य के यह बाबा कहते हैं कि व्यंग्य लिखने का जुगाड़ लगाने के लिए वे रोज 10-11 अखबार नित्य पढ़ते हैं. मेरा आंकड़ा अभी 4 अखबार तक पहुँचा है, यानी अच्छे और अधिक व्यंग्य लिखने के लिए और अधिक अखबार पढ़ने का जुगाड़ करना होगा. आजकल के जमाने में अखबारों के ऑनलाइन एडीशन और अधिकतर के मुफ़्त होने, व असीमित ब्रॉडबैण्ड के सस्ते हो जाने से इस सुविधा का जुगाड़ मुश्किल नहीं है, नहीं तो महीने भर की रद्दी सम्हालने का जुगाड़ और करना पड़ता. मगर, एक जुगाड़ तो चाहिए ही. समय का जुगाड़. पढ़ने के लिए समय तो चाहिए होगा.
मुझे यह नहीं पता कि व्यंग्य के बाबा श्री श्री आलोक पुराणिक 10-11 अखबार नित्य पढ़ने के लिये टाइम का जुगाड़ कहाँ से करते हैं, क्योंकि दिन में तो केवल 24 घंटे ही होते हैं, और किसी दूसरे का टाइम न उधार मिलता है न मोल, और क्योंकि जितना व्यंग्य वे एक दिन में रचते हैं यकीनन उनका दिन ब्रह्मा जी के दिन की तरह ही 48 या 72 घंटे का होता होगा. यूँ आलोक पुराणिक प्रारंभ से ही जुगाड़ू रहे हैं. इंटरनेट पर जब हिंदी की छटा बिखरने को हुई तो हिंदी टाइपिंग के तमाम जुगाड़ लगाए जाते थे. किसी को कोई जुगाड़ जमता था तो किसी को कोई. हर कोई एक दूसरे की मदद को उत्साहित रहता.
एक दिन आलोक पुराणिक ने मुझ समेत कई लोगों को ईमेल किया –
alok puranik wrote:
hi
pl mere blogs visiteye, BALKI ROJ HI VISTEYE NA, ROJ NAYI KHURAFAT
HOGI, AAIYE BLOGS PER MULAKAT HOGI
alok5.blogspot.com <http://alok5.blogspot.com/>
puranikalok.blogspot.com <http://puranikalok.blogspot.com/>
उन्होंने एक नया ब्लॉग आलोक पुराणिक के नाम से बनाया था. इससे कोई साल भर पहले, जनवरी 2006 में उन्होंने एक हिंदी ब्लॉग प्रपंचतंत्र (http://prapanchtantra.blogspot.in/) बनाया था, जिसमें कुछ व्यंग्य पोस्टें उन्होंने प्रकाशित की थीं. तो मैंने उन्हें लिखा –
what happened to your old blog - Prapanchtantra?
Ravi
उनका जवाब आया –
sir
prapanchtantra ko bhi is blog per hi revive karoonga
daily update karne ke sankalp ke sath aya hoon is bar
ab jaldi hi nayi prapanchtantra stories yahan milengi
aapka blog roj dekhta hoon
aap to hindi blogging ke guide ho gaye hein
ek kitab likh dijiye, naye bloggers ke liye asani hogi
thanx
अब आप देखिए कि उस वक्त जीमेल में हिंदी देवनागरी में लिखने का जुगाड़ नहीं आ पाया था. तो बातचीत अंग्रेज़ी या रोमन हिंदी में हो रही है. परंतु जल्द ही वह जुगाड़ भी ढूंढ लिया गया और अगली बातचीत कुछ यूँ रही –
आलोक जी,
आपने ये अच्छी बात बताई. अब इंटरनेट पर हिन्दी आपके व्यंग्य बाणों से प्रतिदिन समृद्ध होती रहेगी. आप अपनी पुरानी रचनाओं को भी लगातार नियमित प्रकाशित करते रहें तो और भी उत्तम.
रवि
--.
रविजी
आप जैसे सीनियर ब्लागर की शुभकामनाएं साथ हैं, तो देखिये अच्छा काम करने की कोशिश करुंगा इंटरनेट पर। आज आपकी वैबसाइट पर वीरेन डंगवालजी की कविताएं जोरदार हैं।
आपका
आलोक पुराणिक
..
इंटरनेट की संभावनाओं को आलोक पुराणिक ने प्रारंभ से पहचान लिया था. जल्द ही उन्होंने अपना स्वयं का साइट बना लिया आलोकपुराणिक डाट काम (अब यह बंद हो चुका है) उस समय तमाम तकनीकी उलझने होती थीं. उस वक्त का उनके पास से आया एक ईमेल –
alok puranik <puranika@gmail.com>
21/8/07
sharma.shrish, अनूप
सरजी
तमाम तकनीकी बाधाओं से बचने के लिए एक काम करने की कोशिश की कि puranikalok.blogspot.com से शिफ्ट होने के लिए www.alokpuranik.com
की तैयारी की। सब हो गया, और इसके बाद इसे वर्डप्रेस की थीम से अटैच कर दिया गया, ताकि वर्ड प्रेस की सुविधाओं का लाभ लिया जा सके। वर्ड प्रेस की सबसे आकर्षक सुविधा मुझे टाइम स्टांप की लगती है, यानी किसी भी वक्त पोस्ट को तैयार कर के एक टाइम दे दिया जाये, तो पोस्ट उसी टाइम ब्लाग पर पब्लिश होती है।
पर वर्डप्रेस पर अजग गजब काम यह हो रहा है कि मैंने blu3z in 31 0 थीम का चुनाव किया, पर कुछ देर बाद यह थीम अपने प बदलकर वर्ड प्रेस की डिफाल्ट थीम 1.6 हो जाती है, यह मुझे नहीं चाहिए। इसके अलावा मुख्य पृष्ट पर जो आर्काइव दिखता है, वह भी गायब हो जाता है। मुझे वही थीम चाहिए, जो मैंने चुनी है।
इस बवाल का कोई हल है।
अगर है, प्लीज बतायें।
आलोक पुराणिक ..”
आप देखेंगे कि उन्होंने तमाम संभावित उम्मीदवारों को लूप में लिया था, जहाँ से जुगाड़ का जवाब आने की उम्मीद थी. जुगाड़ मेरे पास भी नहीं था, संभावना किसी तीसरे के पास दिख रही थी तो मैंने जुगाड़ बताया –
“...सरजी,
आपकी समस्या संभवत जीतू जी हल कर सकते हैं - उन्हें वर्डप्रेस पर अपने डोमेन में काम करने का बहुत अनुभव है. मैं चूंकि ब्लॉगर इस्तेमाल करता हूँ अत: यहां मेरा ज्ञान शून्य है .
रवि”
और श्रीश ने बताया –
और इस तरह, जुगाड़ लगा कर आलोक पुराणिक ने अपनी शानदार साइट बना ही ली और लंबे अरसे तक सक्रिय रहे. संभवतः और ब्लॉगों की तरह ही फ़ेसबुक ने उनका यह शानदार ब्लॉग भी लील लिया. आर्काइव.ऑर्ग की वेबेक मशीन से प्राप्त उनके शानदार ब्लॉग का यह पन्ना देखें - सवाल जवाब में आलोक पुराणिक ने एक जगह और बताया है कि वे तकनीक का अत्यधिक और सफलता से इस्तेमाल करते हैं. मोबाइल उपकरणों पर भी धड़ल्ले से व तेजी से लिखते हैं. नई तकनीक को सीखने की ललक उन्हें हमेशा से रही और सीखने के लिए कहीं कोताही और परहेज नहीं किया. इंटरनेट पर हिंदी जम रही थी, तब तमाम तकनीकी दिक्कतें होती थी. एक बार ऐसा ही कुछ हुआ तो उन्होंने निःसंकोच पूछा –
मैंने जवाब दिया था –
आज तो हर चीज उपलब्ध है. किसी जुगाड की जरूरत ही नहीं. हाँ, आलोक पुराणिक का लिखा, बल्कि तमाम लिखा पढ़ने के लिए आपको जुगाड़ की जरूरत होगी. समय के जुगाड़ की. वे जिस गति से रचते हैं, हममें से अधिकांश को वह रफ़्तार पठन में हासिल करने के लिए जुगाड़ की जरूरत होगी. है किसी के पास ऐसा आलोकित जुगाड़? |
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