कीमत पहचान की *-*-* उत्तरप्रदेश के मंत्री आजम खान जब एक समारोह में बिना लाव लश्कर और पहचान पत्र के पहुँचे तो पुलिस के जवानों ने जो सुरक्षा क...
कीमत पहचान की
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उत्तरप्रदेश के मंत्री आजम खान जब एक समारोह में बिना लाव लश्कर और पहचान पत्र के पहुँचे तो पुलिस के जवानों ने जो सुरक्षा के लिए वहाँ तैनात थे, उन्हें पहचाना नहीं और उनकी जाँच करने लगे. मंत्री महोदय को यह खासा नागवार गुज़रा और नतीजे में नौ पुलिस कर्मियों को निलंबन की सज़ा भुगतनी पड़ी.
ठीक इसके विपरीत, एक घटना मुझे याद आ रही है. मेरा एक मित्र पुलिस विभाग में वायरलेस में कार्यरत था. उसका एसपी नया-नया ट्रांसफर होकर आया था और अपने मातहत विभागों का निरीक्षण करता रहता था. एक दिन वह एसपी सिविल ड्रेस में वायरलेस विभाग में जा पहुँचा जहाँ मेरा मित्र मोर्स कोड की कुंजियों की ठकठकाहट के साथ गोपनीय संदेशों का आदान प्रदान कर रहा था. ऐसे में ही उस एसपी ने मित्र से कुछ पूछताछ करनी चाही. मित्र जो उसे पहचानता नहीं था, उस पर चिल्लाया और बोला – बास्टर्ड यू गेट आउट फ्रॉम हियर. डोंट यू सी आई एम बिज़ी इन इम्पॉर्टेंट इन्फ़ॉर्मेशन्स? और फिर अपने काम में जुट गया.
वह ऑफ़ीसर तत्काल बाहर चला गया. उसे अपनी ग़लती का न सिर्फ अहसास हुआ, बल्कि उसने मित्र को अपनी ड्यूटी में प्रतिबद्धता रखने के लिए शाबासी तो दी ही, साथ ही उससे माफ़ी भी मांगी.
फ़र्क़ साफ़ है. पहचान की क़ीमत. किसी को गुस्सा आता है, किसी को ग़लती का अहसास होता है. वैसे भी, भारत के किसी मंत्री को न पहचानना और ऊपर से उससे पहचान पत्र पूछना – यह तो बहुत ही गंभीर क़िस्म का अपराध है.
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व्यंज़ल
*-*-*
बदल गई परिभाषाएँ बदल गए पहचान
मूरख मनुज तू क्यों बना रहा अनजान
जिसका नाम न हो न हो कोई पहचान
इस जग में बिरादर कतई नहीं धनवान
ले आओ मुद्रा या कहीं से जान पहचान
होगा काम तभी तो बगैर किसी अहसान
अंटी में रुपया नहीं न किसी से पहचान
यूँ तो मिलना ही है सभी जगह दरबान
नंगों में रवि ने भी ख़ूब बनाई पहचान
सिर में टोपी डाल के भूले है अपमान
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उत्तरप्रदेश के मंत्री आजम खान जब एक समारोह में बिना लाव लश्कर और पहचान पत्र के पहुँचे तो पुलिस के जवानों ने जो सुरक्षा के लिए वहाँ तैनात थे, उन्हें पहचाना नहीं और उनकी जाँच करने लगे. मंत्री महोदय को यह खासा नागवार गुज़रा और नतीजे में नौ पुलिस कर्मियों को निलंबन की सज़ा भुगतनी पड़ी.
ठीक इसके विपरीत, एक घटना मुझे याद आ रही है. मेरा एक मित्र पुलिस विभाग में वायरलेस में कार्यरत था. उसका एसपी नया-नया ट्रांसफर होकर आया था और अपने मातहत विभागों का निरीक्षण करता रहता था. एक दिन वह एसपी सिविल ड्रेस में वायरलेस विभाग में जा पहुँचा जहाँ मेरा मित्र मोर्स कोड की कुंजियों की ठकठकाहट के साथ गोपनीय संदेशों का आदान प्रदान कर रहा था. ऐसे में ही उस एसपी ने मित्र से कुछ पूछताछ करनी चाही. मित्र जो उसे पहचानता नहीं था, उस पर चिल्लाया और बोला – बास्टर्ड यू गेट आउट फ्रॉम हियर. डोंट यू सी आई एम बिज़ी इन इम्पॉर्टेंट इन्फ़ॉर्मेशन्स? और फिर अपने काम में जुट गया.
वह ऑफ़ीसर तत्काल बाहर चला गया. उसे अपनी ग़लती का न सिर्फ अहसास हुआ, बल्कि उसने मित्र को अपनी ड्यूटी में प्रतिबद्धता रखने के लिए शाबासी तो दी ही, साथ ही उससे माफ़ी भी मांगी.
फ़र्क़ साफ़ है. पहचान की क़ीमत. किसी को गुस्सा आता है, किसी को ग़लती का अहसास होता है. वैसे भी, भारत के किसी मंत्री को न पहचानना और ऊपर से उससे पहचान पत्र पूछना – यह तो बहुत ही गंभीर क़िस्म का अपराध है.
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व्यंज़ल
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बदल गई परिभाषाएँ बदल गए पहचान
मूरख मनुज तू क्यों बना रहा अनजान
जिसका नाम न हो न हो कोई पहचान
इस जग में बिरादर कतई नहीं धनवान
ले आओ मुद्रा या कहीं से जान पहचान
होगा काम तभी तो बगैर किसी अहसान
अंटी में रुपया नहीं न किसी से पहचान
यूँ तो मिलना ही है सभी जगह दरबान
नंगों में रवि ने भी ख़ूब बनाई पहचान
सिर में टोपी डाल के भूले है अपमान
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रवि जी,
हटाएंआपके पत्र के लिये धन्यवाद, हिन्दी के बचपन से प्रशंसक हूँ। चिट्ठों के बारे मैं काफी देर से पता चला, और अब जब पता चल ही गया है तो, बस मेरी गाङी शुरू।
आपकी, पाठकों की नब्ज कपङने की कला सीखना चाहूँगा- व्यंगय और समसामायिक बातों को आधारभूत तरीके से रखना एक बहुत जरूरी बात है, और यह बात आपके पत्रों को पढकर स्पष्ट होती है।