एअरपोर्ट का अपहरण ********** बैंगलोर में एक अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट बनाए जाने की योजना पिछले दस साल (जी हाँ, पिछले दस साल !) से चल...
एअरपोर्ट का अपहरण
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बैंगलोर में एक अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट बनाए जाने की योजना पिछले दस साल (जी हाँ,
पिछले दस साल !) से चल रही है, और अभी भी मामला विभिन्न सरकारों और
सरकारी विभागों की स्वीकृति की प्रतीक्षा में उलझा पड़ा है. तारीफ़ की बात तो यह है कि
कर्नाटक की पिछली काँग्रेस सरकार ने इस परियोजना को स्वीकृति दे दी थी, परंतु नई
सरकार जो काँग्रेस की ही है (क्या बात करते हैं, मंत्री तो बदल गए हैं न भाई), इस
परियोजना की स्वीकृति पर पुनर्विचार कर रही है !
इस परियोजना की शीघ्र स्वीकृति के लिए इन्फ़ोसिस के नारायण मूर्ति भी लगे रहे हैं.
उनके प्रयासों से इसमें थोड़ी गति भी आई, परंतु और भी कई अन्य परियोजनाओं की
तरह यह भी हाईजैक हो गया राजनीतिबाजों, अफसरशाहों और लालफ़ीताशाहों के द्वारा.
परियोजनाओं पर विचार और पुनर्विचार करते-करते ये अपहृत हो जाते हैं और भारत का
इन्फ्रास्ट्रक्चर जहाँ का तहाँ पड़ा रह जाता है- ठस. भूले भटके कभी कोई परियोजना पूरी
होती भी है तो वह भ्रष्टाचार के चलते लड़खड़ाती / दम तोड़ती ही चलती है...
**--**
ग़ज़ल
**+**
मूल्यों में गंभीर क्षरण हो गया
मुल्क का भी अपहरण हो गया
भ्रष्ट राह में चलने न चलने का
सवाल ये जीवन मरण हो गया
बचे हैं सिर्फ सांपनाथ नागनाथ
पूछते हो ये क्या वरण हो गया
हँसा है शायद दीवाना या फिर
भूल से तो नहीं करण हो गया
रवि बताए क्यों कि ढोंगियों का
वो एक अच्छा आवरण हो गया
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बैंगलोर में एक अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट बनाए जाने की योजना पिछले दस साल (जी हाँ,
पिछले दस साल !) से चल रही है, और अभी भी मामला विभिन्न सरकारों और
सरकारी विभागों की स्वीकृति की प्रतीक्षा में उलझा पड़ा है. तारीफ़ की बात तो यह है कि
कर्नाटक की पिछली काँग्रेस सरकार ने इस परियोजना को स्वीकृति दे दी थी, परंतु नई
सरकार जो काँग्रेस की ही है (क्या बात करते हैं, मंत्री तो बदल गए हैं न भाई), इस
परियोजना की स्वीकृति पर पुनर्विचार कर रही है !
इस परियोजना की शीघ्र स्वीकृति के लिए इन्फ़ोसिस के नारायण मूर्ति भी लगे रहे हैं.
उनके प्रयासों से इसमें थोड़ी गति भी आई, परंतु और भी कई अन्य परियोजनाओं की
तरह यह भी हाईजैक हो गया राजनीतिबाजों, अफसरशाहों और लालफ़ीताशाहों के द्वारा.
परियोजनाओं पर विचार और पुनर्विचार करते-करते ये अपहृत हो जाते हैं और भारत का
इन्फ्रास्ट्रक्चर जहाँ का तहाँ पड़ा रह जाता है- ठस. भूले भटके कभी कोई परियोजना पूरी
होती भी है तो वह भ्रष्टाचार के चलते लड़खड़ाती / दम तोड़ती ही चलती है...
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ग़ज़ल
**+**
मूल्यों में गंभीर क्षरण हो गया
मुल्क का भी अपहरण हो गया
भ्रष्ट राह में चलने न चलने का
सवाल ये जीवन मरण हो गया
बचे हैं सिर्फ सांपनाथ नागनाथ
पूछते हो ये क्या वरण हो गया
हँसा है शायद दीवाना या फिर
भूल से तो नहीं करण हो गया
रवि बताए क्यों कि ढोंगियों का
वो एक अच्छा आवरण हो गया
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