भारत में अमीर-ग़रीब सब बराबर विश्व प्रसिद्ध कार्टूनकार आर. के. लक्ष्मण का एक कार्टून 22 नवंबर के अंक में छपा है. वे अपने पैने व्य...
भारत में अमीर-ग़रीब सब बराबर
विश्व प्रसिद्ध कार्टूनकार आर. के. लक्ष्मण का एक कार्टून 22 नवंबर के अंक में छपा है.
वे अपने पैने व्यंग्य की कूची चलाते हुए स्पष्ट करते हैं कि भारत में क्या अमीर क्या ग़रीब सब
बराबर हैं. सभी भुगतने के लिए अभिशप्त हैं. ग़रीब रोटी कपड़ा मकान की समस्या से त्रस्त
है तो अमीर पावर कट, लोड शेडिंग, गड्ढे और धूल युक्त सड़कों, ट्रैफिक जाम, पानी की
कमी, स्कैम इत्यादि समस्याओं से त्रस्त है.
समाजवादी / साम्यवादी लोगों को खुश होना चाहिए कि कम से कम भुगतने के मामले में तो
भारत में सभी बराबर हैं. अमीरी-ग़रीबी का फ़र्क़ वास्तव में यहाँ मिट गया है.
पर, अगर कोई फ़र्क़ कहीं नज़र आता है तो वह राजा और रंक (बक़ौल अमिताभ बच्चन) के
बीच है. और यह फ़र्क़ दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है.
*-*-*
ग़ज़ल
**//**
आदमी है आदमी के पीछे बराबर
सोचता नहीं होना है हिसाब बराबर
चाँदी का चम्मच ले के आया पर
चार दिन की जिंदगी सबकी बराबर
रत्न जटित ताबूत है तो क्या हुआ
भीतर कीड़े और दुर्गंध सभी बराबर
सच है कि अपने आवरणों के अंदर
कहीं कोई फ़र्क़ नहीं है बाल बराबर
काल को तुम भूल गए रवि शायद
कल दुर्ग था आज मैदान बराबर
//**//
विश्व प्रसिद्ध कार्टूनकार आर. के. लक्ष्मण का एक कार्टून 22 नवंबर के अंक में छपा है.
वे अपने पैने व्यंग्य की कूची चलाते हुए स्पष्ट करते हैं कि भारत में क्या अमीर क्या ग़रीब सब
बराबर हैं. सभी भुगतने के लिए अभिशप्त हैं. ग़रीब रोटी कपड़ा मकान की समस्या से त्रस्त
है तो अमीर पावर कट, लोड शेडिंग, गड्ढे और धूल युक्त सड़कों, ट्रैफिक जाम, पानी की
कमी, स्कैम इत्यादि समस्याओं से त्रस्त है.
समाजवादी / साम्यवादी लोगों को खुश होना चाहिए कि कम से कम भुगतने के मामले में तो
भारत में सभी बराबर हैं. अमीरी-ग़रीबी का फ़र्क़ वास्तव में यहाँ मिट गया है.
पर, अगर कोई फ़र्क़ कहीं नज़र आता है तो वह राजा और रंक (बक़ौल अमिताभ बच्चन) के
बीच है. और यह फ़र्क़ दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है.
*-*-*
ग़ज़ल
**//**
आदमी है आदमी के पीछे बराबर
सोचता नहीं होना है हिसाब बराबर
चाँदी का चम्मच ले के आया पर
चार दिन की जिंदगी सबकी बराबर
रत्न जटित ताबूत है तो क्या हुआ
भीतर कीड़े और दुर्गंध सभी बराबर
सच है कि अपने आवरणों के अंदर
कहीं कोई फ़र्क़ नहीं है बाल बराबर
काल को तुम भूल गए रवि शायद
कल दुर्ग था आज मैदान बराबर
//**//
COMMENTS