*** एक अख़बार ने ख़बर छापी कि देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान अमृता प्रीतम को रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाने वाला है चूंकि वे गंभीर अस्वस्थ...
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एक अख़बार ने ख़बर छापी कि देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान अमृता प्रीतम को
रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाने वाला है चूंकि वे गंभीर अस्वस्थता के कारण वह सम्मान
लेने समारोह पर नहीं जा सकीं. ख़बर छपते ही हलचल मची तो पता चला कि यह तो देश के
क़ानून में है कि यदि कोई व्यक्ति नागरिक सम्मान लेने किसी कारण से नहीं पहुँच
पाता तो यह सम्मान उसे रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाता है. वाह भई क्या बात हुई. यह
तो भारत राज में ही संभव है जहाँ एक पुरस्कार जो स्वयं राष्ट्रपति महोदय अपने
हाथों से देते हैं, यह कार्य डाक विभाग का पोस्टमेन भी निभाता है!
मुझे ध्यान है कि कुछ अरसा पहले जब सत्यजीत राय को ऑस्कर अवॉर्ड दिया गया था, तो
वे अपनी अस्वस्थता के चलते अवॉर्ड लेने नहीं जा सकते थे, तो आयोजकों ने यह
पुरस्कार उन तक पहुँचाया और उसका फ़ुटेज़ भी पुरस्कार वितरण के दौरान दिखाया.
क्या भारत में, जहाँ देश का सर्वोच्च सम्मान दिया जाता है, ऐसी व्यवस्था नहीं की
जा सकती? संभवतः नहीं. चूंकि किसी सरकारी बाबू ने यह नियम बना दिया है कि ऐसे
पुरस्कार तो रजिस्टर्ड डाक से भेजे जाने चाहिएँ, लिहाज़ा नियम तोड़ा थोड़े ही जा
सकता है.
पर, शुक्र है, अख़बार की ख़बर से सरकारी गलियारों में कुछ हलचल मची और कोई आला
अफ़सर स्वयं उपस्थित होकर अपने हाथों से वह पुरस्कार अमृता प्रीतम को प्रदान
किया. अब तो, शायद अखबार ही बचे हैं आपके भीतर की मानवता को निकाल बाहर करने के
लिए, वह भी, अगर कुछ असर करे, तो.
****
ग़ज़ल
****
बस, अख़बार बचे हैं
अब तो बस अख़बार बचे हैं
कुछ टहनी कुछ ख़ार बचे हैं
भीड़ भरे मेरे भारत में लो
मानव बस दो चार बचे हैं
कहने को क्या है जब सब
बेरोज़गार और बेकार बचे हैं
च़मन उजड़ चुका है बस
नेता के ग़ले के हार बचे हैं
चूस चुके इस देश को रवि
मुँह में फ़िर भी लार बचे हैं
***
टीपः ख़ार = कांटे
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एक अख़बार ने ख़बर छापी कि देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान अमृता प्रीतम को
रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाने वाला है चूंकि वे गंभीर अस्वस्थता के कारण वह सम्मान
लेने समारोह पर नहीं जा सकीं. ख़बर छपते ही हलचल मची तो पता चला कि यह तो देश के
क़ानून में है कि यदि कोई व्यक्ति नागरिक सम्मान लेने किसी कारण से नहीं पहुँच
पाता तो यह सम्मान उसे रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाता है. वाह भई क्या बात हुई. यह
तो भारत राज में ही संभव है जहाँ एक पुरस्कार जो स्वयं राष्ट्रपति महोदय अपने
हाथों से देते हैं, यह कार्य डाक विभाग का पोस्टमेन भी निभाता है!
मुझे ध्यान है कि कुछ अरसा पहले जब सत्यजीत राय को ऑस्कर अवॉर्ड दिया गया था, तो
वे अपनी अस्वस्थता के चलते अवॉर्ड लेने नहीं जा सकते थे, तो आयोजकों ने यह
पुरस्कार उन तक पहुँचाया और उसका फ़ुटेज़ भी पुरस्कार वितरण के दौरान दिखाया.
क्या भारत में, जहाँ देश का सर्वोच्च सम्मान दिया जाता है, ऐसी व्यवस्था नहीं की
जा सकती? संभवतः नहीं. चूंकि किसी सरकारी बाबू ने यह नियम बना दिया है कि ऐसे
पुरस्कार तो रजिस्टर्ड डाक से भेजे जाने चाहिएँ, लिहाज़ा नियम तोड़ा थोड़े ही जा
सकता है.
पर, शुक्र है, अख़बार की ख़बर से सरकारी गलियारों में कुछ हलचल मची और कोई आला
अफ़सर स्वयं उपस्थित होकर अपने हाथों से वह पुरस्कार अमृता प्रीतम को प्रदान
किया. अब तो, शायद अखबार ही बचे हैं आपके भीतर की मानवता को निकाल बाहर करने के
लिए, वह भी, अगर कुछ असर करे, तो.
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ग़ज़ल
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बस, अख़बार बचे हैं
अब तो बस अख़बार बचे हैं
कुछ टहनी कुछ ख़ार बचे हैं
भीड़ भरे मेरे भारत में लो
मानव बस दो चार बचे हैं
कहने को क्या है जब सब
बेरोज़गार और बेकार बचे हैं
च़मन उजड़ चुका है बस
नेता के ग़ले के हार बचे हैं
चूस चुके इस देश को रवि
मुँह में फ़िर भी लार बचे हैं
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टीपः ख़ार = कांटे
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