*** भारत (और चीन की भी) की जनसंख्या के बारे में चौंकानी वाली बात एक और भी है. लिंग परीक्षणों जैसी सुविधाओं का उपयोग करते हुए भारत के अधिसंख...
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भारत (और चीन की भी) की जनसंख्या के बारे में चौंकानी वाली बात एक और भी है.
लिंग परीक्षणों जैसी सुविधाओं का उपयोग करते हुए भारत के अधिसंख्य परिवारों ने
पारंपरिक मान्यताओं और रूढ़ियों के कारण बालिकाओं की जगह बालकों के जन्म को
हमेशा से प्राथमिकता दी है. लिहाजा पुरूष और स्त्री के जनसंख्या अनुपात में
अंतराल चिंताज़नक तेजी से बढ़ता जा रहा है. जहाँ भारत का राष्ट्रीय स्त्रीःपुरूष
औसत अनुपात पिछले दशक में १०५.८ से बढ़कर १०७.९ पहुँच गया वहीं कुछ राज्यों,
मसलन पंजाब में यह औसत अनुपात १२६ तक है.
अब, ऐसी स्थिति में लोगों को कौन यह समझाए कि भाई, आपने अपना वंश चलाने को
पुत्र तो पैदा कर लिया, पुत्र वधू कहाँ से लाओगे जो आपके पौत्र को जन्म दे सके?
अभी के अनुपात (पंजाब) के हिसाब से प्रत्येक १२६ पुरूषों में से जब २६ अविवाहित
रहने को अभिशप्त हो जाएँगे तो कल्पना कीजिए कि हालात क्या होने हैं?
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ग़ज़ल
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क्या कुछ सीख पाएंगे हम लोग
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क्या कभी कुछ सीख भी पाएंगे हम लोग
जमाने को सिर्फ सोच दे जाएंगे हम लोग
ज़ंगलों की आग में और भी हवाएँ दे रहे
लगता नहीं हरियाली रोप पाएंगे हम लोग
घर के पत्थर को तो कभी तराशा नहीं
दावा है कि कोहेऩूर ढूंढ लाएंगे हम लोग
अब तो उठ के बनाना होगा कोई मंज़िल
नहीं तो और भी पीछे हो जाएंगे हम लोग
फ़ेंक रवि अपनी फ़टी पुरानी चादर वरना
श़क है कि ज़हीनों में भी आएंगे हम लोग
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अंत में...
दशकों से सिगरेटों का धुआँ उड़ाते उड़ाते आईटीसी को अंततः कैंसर का रोग लग ही गया
लगता है, लिहाज़ा वह भी अब भगवान की शरण में जाकर अगरबत्ती का धुआँ उड़ाने जा
रही है... (जी हाँ, आईटीसी का मेड फॉर ईच अदर (विल्स सिगरेट) ब्रांड अब लगता है
कि किसी अगरबत्ती के विज्ञापन में देखने को मिलेगा क्योंकि अब वह अगरबत्ती का
निर्माण_विपणन करने जा रही है...)
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