धन्यवाद एनिमीग्राफ : फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया अंततः एंटी-सोशल हो ही गए.

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अभी तक हम गर्व से अपने 5000 (भई, सीमा ही इतनी है, क्या करें!) फ़ेसबुक मित्रों की सूची सबको बताते फिरते थे. फ़ेसबुक दुश्मन (आप इनमें से चाहे...

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अभी तक हम गर्व से अपने 5000 (भई, सीमा ही इतनी है, क्या करें!) फ़ेसबुक मित्रों की सूची सबको बताते फिरते थे. फ़ेसबुक दुश्मन (आप इनमें से चाहे जो भी कह लें - शत्रु, दुश्मन, वैरी, विरोधी, बैरी, मुद्दई, रिपु, अरि, प्रतिद्वंद्वी, प्रतिद्वन्द्वी, मुखालिफ, मुख़ालिफ़, रकीब, रक़ीब, अनुशयी, अराति, सतर, अयास्य, अमित्र, अमीत, वृजन, अरिंद, अरिन्द, अरुंतुद, अरुन्तुद, तपु) की बात तो कोई करता ही नहीं था.

फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट तो एकदम आइडियल दुनिया लगती थी. यहाँ बस मित्र और मित्र ही बसते थे. दुश्मनों का तो कोई ठौर ठिकाना ही नहीं था जैसे.

परंतु ऐसा कहीं होता है? जहाँ आपके दस मित्र होते हैं तो बीस-चालीस दुश्मन भी होते हैं. सीधे शब्दों में कहें तो फेसबुक अब तक आपके प्रोफ़ाइल का आधा सच ही बताता फिरता था. बाकी का आधा सच वो गोल कर जाता था. आपके दुश्मनों के बारे में कहीं कोई जगह ही नहीं थी इसमें. और, बकौल पॉल न्यूमैन - फेसबुक में तो आपका (या किसी का भी,) कोई कैरेक्टर ही नहीं था क्योंकि, वहाँ किसी का कोई दुश्मन ही नहीं था.

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परंतु धन्यवाद फेसबुक एप्प - एनिमीग्राफ. अब हम सार्वजनिक रूप से अपने दुश्मनों को फ़ेसबुक में सूचीबद्ध कर सकेंगे.  उन्हें गर्व से जोड़ सकेंगे, शामिल कर सकेंगे.

और, जिसका जितना बड़ा, रसूखदार दुश्मन, वो उतना ही बड़ा फेसबुकिया आदमी. और, अब तो लगता है कि फ़ेसबुक के प्रसार-प्रचार, लोकप्रियता और उपयोग में और भी ज्यादा धुंआधार वृद्धि दर्ज होगी. अभी तक शत्रु, दुश्मन किस्म के लोग फ़ेसबुक से दूरियाँ जो बनाए हुए थे. वैसे भी, किसी से दुश्मनी निकालने का सोशल प्लेटफ़ॉर्म फ़ेसबुक से बढ़िया और कोई हो सकता है भला?

तो चलिए,  अपने फेसबुक में यह एप्प एनिमीग्राफ इंस्टाल करें और धड़ाधड़ जोड़ें अपने दुश्मनों को. वैसे भी इस बेदर्द दुनिया में मित्रों की अपेक्षा दुश्मनों की संख्या कई गुना ज्यादा है. और दुश्मन तो कोई भी हो सकता है -नेता, सेलेब्रिटी, ब्रांड, फिल्म, कोई जगह इत्यादि इत्यादि. और, शुरूआत के लिए आप माया या मुलायम दोनों में से किसी एक को चुन सकते हैं - क्योंकि दोनों के दोनों एक साथ किसी के दुश्मन नहीं हो सकते. या फिर, शायद हो सकते हों! मगर फिर आपके सामने दूसरा विकल्प भी दे देता हूं - करुणानिधि या जयललिता.

 

यहाँ तक तो फिर भी ठीक था. परंतु आपके आभासी सोशल लाइफ की वाट तब लगेगी, इसकी हवा तब निकलेगी जब लोग धड़ाधड़ आपको अपने दुश्मन सूची में शामिल करेंगे. पता चला कि आपके तो कुछ हजार दुश्मन हैं, मगर आपने लाखों की तादाद में लोगों की दुश्मनी मोल ले ली है!

 

वैसे, अपने दुश्मनों को देखने जाएं, उनकी सूची बनाने जाएँ तो सबसे पहला नाम किसका आएगा सोचा है आपने कभी?

संदर्भ के लिए ये सूफी पंक्ति आपके लिए -

लाली देखन मैं गई...

 

बहरहाल, हैप्पी दुश्मनी!

COMMENTS

BLOGGER: 8
  1. यही कहा जा सकता है- ये तो होना ही था। :)

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  2. हम तो फेसबुक में हैं ही नहीं, साइबर परमहंस।

    जवाब देंहटाएं
  3. हा हा हा ... बस इस की ही कमी थी ... चलिये यह भी सही ... आभार इस जानकारी के लिए !

    जवाब देंहटाएं
  4. संदर्भ से समझ गए... ...

    फेसबुक ने जीवन के सच को स्वीकारा है, गाँधी जी की तरह आदर्शवाद को नहीं..


    वैसे -
    दुश्मनी का सफर कदम दो कदम,
    हम भी थक जाएंगे, तुम भी थक जाओगे।

    जवाब देंहटाएं
  5. रफीकों से रकीब अच्छे ,जो जलकर नाम लेते हैं ,

    गुलों से खार बेहतर हैं ,जो दामन थाम लेते हैं .

    जवाब देंहटाएं
  6. इतनी सच्चाई क्या सामाजिक लोग झेल पायेंगे वो भी सार्वजनिक तौर पर

    जवाब देंहटाएं
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छींटे और बौछारें: धन्यवाद एनिमीग्राफ : फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया अंततः एंटी-सोशल हो ही गए.
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