मैं हिंदू रहूंगा न मुसलमान रहूंगा…

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आप कहेंगे कि अब ये क्या शीर्षक है. क्या इतनी असहिष्णुता आ गई है जो भारत भूमि के दो बड़े धर्म को छोड़ने की बात कर रहे हो. परंतु, जरा ठंड रखि...

आप कहेंगे कि अब ये क्या शीर्षक है. क्या इतनी असहिष्णुता आ गई है जो भारत भूमि के दो बड़े धर्म को छोड़ने की बात कर रहे हो.

परंतु, जरा ठंड रखिए.

पिछले दिनों मेरे पेट में कुछ क्रॉनिक संक्रमण की समस्या हुई, तो मैंने चिकित्सक को दिखाया. चिकित्सक ने रोग निदान में पाया कि, एक परजीवी, जो कि दुनिया की आबादी के करीब 50 प्रतिशत व्यक्तियों के पेट में बिना नुकसान पहुँचाए मौजूद रहती है, वह थोड़ी अधिक सक्रिय हो गई है. उसकी अति सक्रियता के कारण पेट में गैस, अपच, जलन आदि समस्याएँ होती हैं, और जब तक लंबा ट्रीटमेंट न लिया जाए, निदान नहीं होता. मेरे साथ यही समस्या थी. जब तब पेट अपसेट होता, ओवर द काउन्टर दवाई ली, आराम मिल जाता. परंतु फिर कुछ दिन बाद यही समस्या. अंततः यह पता चला कि इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए 'कम्प्लीट क्योर' यानी संपूर्ण रोग निदान होना चाहिए.

अब, इसके लिए चिकित्सक ने कोई आधा दर्जन गोलियाँ लिख दीं. जिसमें एक दो तो जाहिर है एंटीबैक्टीरियल ही थीं, साथ में कुछ विटामिन्स और फूड सप्लीमेंट एडेड सबस्टैंस जो पेट यानी अंतड़ियों और लीवर की हालत भी इस लंबी चिकित्सा में ठीक रखे. बताता चलूं कि कोई बीस साल पहले जब मेरी जन्मजात हृदय संबंधी समस्या के निदान के लिए हृदय शल्य चिकित्सा हुई थी और कोई 45 दिन अस्पताल में भर्ती था,  उस वक्त मैं शाकाहारी था, परंतु डायटीशियन ने जोर देकर मेरे डाइट में एनीमल प्रोटीन्स को शामिल किया था ताकि स्वास्थ्यलाभ जल्द हो सके.

 

बहरहाल, इधर जब मैं दवाई लेकर आया तो आज के आधुनिक वेल इन्फ़ॉर्म्ड पेशेंट के रूप में अपने आप को पाया और कंप्यूटर स्क्रीन पर दवाइयों के गुण, साइड इफ़ेक्ट आदि के बारे में खोजबीन करने लगा. मुझे अपने चिकित्सक पर पूरा विश्वास है, मगर, फिर है तो वह भी इन्सान ही और इन्सानों से गलतियाँ हो जाती हैं. क्या पता वो मेरे पेट के रोग निदान में किसी एमआर के चक्कर में भूलवश कोई गायनिक समस्या का टैबलेट न लिख दिया हो.

तो, एक दवाई उन्होंने दी थी पैंक्रिएटिन.

जब मैंने इसके बारे में खोजबीन की तो ये दिखा -

image

ये कोई कचरा या गलत साइट नहीं है. नहीं तो इंटरनेट पर 80 प्रतिशत से अधिक जानकारी कूड़ा है, प्रोपोगंडा है और धरती को चपटी मानने वाले लोग भी अपने धांसू तर्क देते मिल जाते हैं.

मेरी दवाई की सामग्री में है सूअरों और गायों के पैंक्रियास से निकाला गया पैंक्रियाटिन.

हे! डॉक्टर, तूने ये क्या किया. मुझे न हिंदू रखा न मुसलमान. क्या कहा, मुझे इंसान रखना चाहता है? पर, मुझे तो ये नामंजूर है!

जिंदा रहना है तो ये गोली खानी होगी. धार्मिक-शहीद होना होगा तो इस गोली को गटर में फेंकना होगा.

दुविधा में हूँ. बताओ क्या करूं?

इंसान ही बन जाऊँ?

--

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COMMENTS

BLOGGER: 5
  1. मैं हिंदू रहूंगा न मुसलमान रहूंगा…
    insaan ki aoulad hun insaan रहूंगा…

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  2. जिन्दा रहना है तो दवाई खानी ही पड़ती है ...खोजबीन करेंगे तो जिंदगी हाथ से हाथ धोना पड़ेगा ..फिर कोई भी धर्म नहीं बचा पायेगा ... ..इसलिए इंसान बने रहना जरुरी है ...

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  3. nirdosh upchar karvaye jese ayurved,homeopathy,accupressure,accupunchure,panchkarm aur vedic upchar,bimari ka jana pakka he sahab,jara bharosa rakh ke to dekho,swasth,sukhi aur sammanit jivan ka adhar sanatan sanskriti apno yaar.....

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  4. हे भगवान, क्या बना देंगे ये डाक्टरगण।

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  5. पिछले कई दिनों से हम भी इसी समस्या से ग्रस्त है, अभी वैध जी की पुड़िया खा रहे है शायद उसमें धर्मसंकट नहीं खड़ा होगा :)

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छींटे और बौछारें: मैं हिंदू रहूंगा न मुसलमान रहूंगा…
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छींटे और बौछारें
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