आप सोचते हैं कि आप बेनाम या अनाम रहकर इंटरनेट पर गुल-गपाड़ा कर सकते हैं? तो आप गलत सोचते हैं या, रुकिए, शायद आप सही सोचते हैं... क्योंक...
आप सोचते हैं कि आप बेनाम या अनाम रहकर इंटरनेट पर गुल-गपाड़ा कर सकते हैं? तो आप गलत सोचते हैं या, रुकिए, शायद आप सही सोचते हैं... क्योंकि सरकारें ऐसा सोचती हैं... अब सरकार चाहे भारत की हो या जर्मनी की...
सरकारें समय समय पर हम बेनामी इंटरनेट प्रयोक्ताओं पर नकेल कसने का असफल प्रयास करती रहती हैं.
अभी मैं पिछले दिनों प्रवास पर था तो इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए एक सायबर कैफ़े में गया. वहाँ एक गंदा सा फटा-पुराना रजिस्टर रखा था. इंटनरेट का इस्तेमाल करने से पूर्व उस पर नाम पता लिखना आवश्यक था.
मैंने सायबर कैफ़े संचालक से पूछा – नाम पता लिखना क्या जरूरी है? उसने बताया कि साहब क़ानून है और पुलिस वाले जब तक आकर चेक करते हैं कि रजिस्टर भरा जा रहा है या नहीं. अब, सभी से तो भरवाने से रहे – धंधे का सवाल है, आप भर दें तो अच्छा.
मैंने मजाक में शाहरूख़ का नाम पता भर दिया – जो जाहिर है चल निकला – किसी ने तवज्जो ही नहीं दी कि क्या भरा है. यह है क़ानून, और उसका पालन और उसके फल स्वरूप सरकारी कामों में सुविधा. दरअसल यह कानून इस लिए बनाया गया है कि साइबर अपराधी किसी साइबर कैफ़े से गुल गपाड़ा करें तो वे साइबर कैफ़े के आई.पी. पते व उनके द्वारा रजिस्टर में दर्ज नाम पते से तुरंत पकड़ा जाएँ. मैं अपराधी था, मैंने एक साइबर कानून तोड़ा था, गलत नाम पता दर्ज किया था. क्या मैं पकड़ा जाऊंगा? मासूम सरकार समझती है कि अपराधी बड़े ही ईमानदार होते हैं जो अपना सही अता-पता रजिस्टर में दर्ज करते हैं!
इसी तर्ज पर जर्मनी की सरकार चल रही है. क्या कहा ? जर्मनी की सरकार? जी हाँ, सरकारें हर जगह एक सी होती हैं, और नेता भी. लालू और बुश में कोई अंतर किसी को पता हो तो बताएँ. मुश और बुश में तो तुक भी बढ़िया मिलती है.
जर्मनी की सरकार ने इंटरनेट ट्रैफ़िक का रेकॉर्ड बनाए रखने की कोशिश में एक नया क़ानून बनाया है जिसके तहत प्रत्येक (जी)मेल खाता धारक को, जो जर्मनी में रहता है, अपना वैध नाम पता दर्ज करवाना आवश्यक होगा. जर्मनी में अब बेनामी – अनामी ईमेल खाता नहीं चलेंगे. कल को ये ब्लॉग इत्यादि पर भी लागू हो सकते हैं. और तब हर ब्लॉग के बाजू पट्टी में ब्लॉग लेखक के खानदान के साथ गली मुहल्ले का विवरण दिया जाना क़ानूनन अनिवार्य होगा.
इसकी भनक हमारे भारतीय नेताओं और अफ़सरों को लगने की देरी है, जो वैसे भी सुरक्षा के नाम पर नाहक फूं-फ़ां करते रहते हैं. और फिर हम सभी की आफ़त आने वाली है. तो दोस्तों, घर-गली के नाम-पट्ट चमका रखें. कौन जाने कब जरूरत आन पड़े! और सत्यापन के नाम पर उनके फ़ोटो भी हमें अपने-अपने ब्लॉगों में लगाना पड़े!
सही!!
हटाएंयह सायबर कैफ़े में नाम पते दर्ज़ करवाने वाला आदेश यहां भी साल दो साल पहले जारी हुआ था, कुछ दिन चला फ़िर वही ढाक के तीन पात!
तब भी एक एक सी एस पी साहब से बातचीत के दौरान हमने उनके सामने यही तर्क रखा था कि जिसे सायबर कैफ़े से गलत-सलत काम या गलत ईमेल भेजना होगा वह अपना नाम पता रजिस्टर में सही दर्ज ही क्यों करेगा!!
उपर से सायबर थानों का यह हाल है कि वहां रखे कंप्यूटर गेम खेलने के काम आते हैं !!
रवि जी यहाँ पर तो निना वैलिड डाकुमेंट, (आई कार्ड या पास पोर्ट) दिखाये आप आप साइबर कैफ़े मे इन्टरनेट इश्तेमाल कर सकते
!
हटाएंहिन्दुस्तान में भी इस तरह के कई नियम लागू हैं, एवं कई और नियम आने की सम्भावना है. आभी तक अधिकतर लोगों का पाला इन नियमों से नहीं पडा है इसलिये वे इनके बारे में अज्ञान हैं.
हटाएंये भी संभव है कि घर के बाहर लगी नेम प्लेट पर ही ब्लाँग का नाम भी लिखा दिखाई दे ..रवि श्रीवास्तव...हाउस नं.......और उसके नीचे
हटाएंrachanakar.blogspot.com.शब्द संपदा के दुश्मन तो हर कालखण्ड में हुए है...हम सब भी प्रताड़ित हुए तो भाषा के लिये मर मिटने वालों में नाम होगा अपना.ब्लाँग-शहीद सुनना अच्छा लगेगा न ?
मैं नहीं समझता कि इसमें सरकार की गलती है, क्योंकि कानून ये बनाया गया है कि नाम पता लिखा तो जाएगा लेकिन वही जो आपके पहचान पत्र में हो। अब उसका ये साइबर कैफ़े वाले कैसे पालन कर रहे हैं इसमें इनकी गलती है, जिसके लिए इनको दंड मिलना चाहिए।
हटाएंलेकिन हर जगह हालात ऐसे नहीं हैं। अभी एकाध महीना पहले जब मैं क्नॉट प्लेस में कुछ ढूँढ रहा था तो किसी कारणवश कुछ मिनट के लिए इंटरनेट सेवा का प्रयोग करना था, तो मैं एक साइबर कैफ़े में चला गया। उसके मालिक ने कह दिया कि सेवा प्रयोग करने के लिए फोटो परिचय पत्र दिखाना होगा, तो उनको मैंने अपना ड्राइविंग लाईसेन्स दिखाया जिसकी फोटोकापी रखने के बाद उन्होंने मुझे कंप्यूटर प्रयोग करने दिया।
तो ऐसा नहीं है कि हर जगह इस कानून का गलत तरीके से पालन हो रहा है। लेकिन अपनी सरकार की यह वाकई हेय मानसिकता है कि एक तो कानून बनाते नहीं और यदि बनाते हैं तो इस बात का निश्चय नहीं करते कि उसका सही से पालन हो, दोनो स्थिति एक ही समान हो जाती हैं!!
एक और बात, अब तो इंटरनेट कनेक्शन(चाहे कहीं भी लगवाएँ) के लिए भी पहचान पत्र और आवास प्रमाण देना होता है, चाहे किसी भी कंपनी से लगवाएँ, और वे लोग इसमे लापरवाही नहीं बरतते(कम से कम मेरे केस में तो नहीं हुआ, मेरे पास फिलहाल २ इंटरनेट कनेक्शन हैं)।
हटाएं@अमित,
हटाएंआपका कहना सही है, परंतु मेरा यह भी मानना है कि साइबर अपराध को रोकने के नाम पर नाम-अता पता दर्ज करने जैसे अधकचरे कानून न तो कभी प्रभावी हो सकते हैं और न ही इनका कोई तुक है.
शातिर अपराधी परिचय पत्रों की जालसाजी कर लेगा. फिर एक शातिर क्रैकर किसी दूसरे कम्प्रोमाइज़्ड कम्प्यूटर पर अपना नियंत्रण बना कर अपना काम दूर बैठे ही कर लेगा और अपने सारे ट्रेसेस भी मिटा देगा. फंसेगा दूसरा बेचारा - और ऐसा कई मर्तबा हो चुका है. ब्लूटूथ और वायरलेस एक्सेस के जमाने में यदि नेटवर्क की आंतरिक सुरक्षा पुख्ता नहीं हुई तो घुसपैठियों को आप रोक ही नहीं सकते. अभी ही पेंटागन के कुछ ईमेल सिस्टम को अक्षम किया गया था ऐसी खबर आई थी चूंकि उसमें घुसपैठिए अपना काम दिखाने में कामयाब हो गए थे.
इंटरनेट पर अपराध रोकने के लिए अधकरचरे कानून के बजाए सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता होनी चाहिए. और, सुरक्षा हर समय, हर हमेशा रिलेटिव ही होती है.
अभी भी ऑनलाइन लॉटरी जीतने / लाखों डालर इधर उधर करने पर कमीशन मिलने इत्यादि इत्यादि के प्रलोभन वाले ईमेल से हजारों लोग नित्य फंस रहे हैं. तो इसमें लोगों की जागरूकता ही काम आएगी - कोई सड़ियल अधकचरा कानून नहीं.
आपका कहना सही है, परंतु मेरा यह भी मानना है कि साइबर अपराध को रोकने के नाम पर नाम-अता पता दर्ज करने जैसे अधकचरे कानून न तो कभी प्रभावी हो सकते हैं और न ही इनका कोई तुक है.
हटाएंहर कानून अधकचरा या पूर्ण कचरा है यदि उसका पालन ठीक तरीके से न हो। यदि पालन नहीं होता या ठीक तरीके से नहीं होता तो वह कागज़ को काला ही किया गया होता है, और कुछ नहीं।
इंटरनेट पर अपराध रोकने के लिए अधकरचरे कानून के बजाए सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता होनी चाहिए. और, सुरक्षा हर समय, हर हमेशा रिलेटिव ही होती है.
कोई भी सुरक्षा फूल-प्रूफ़ नहीं हो सकती, यह एक चूहे बिल्ली का खेल है जिसमें चूहा(अपराध) आगे ही रहता है और आगे ही रहेगा। आपने नेटवर्क हैक करने आदि की बात जो की वह सही है लेकिन यह देखिए कि इतने स्तर के अपराध कितने होते हैं? कोई यदि किसी को ब्लैकमेल कर रहा है, stalk कर रहा है या harass कर रहा है और वह तकनीकज्ञ नहीं है तो वह इस तरह के कानून के होते सावधान रहेगा। इस तरह के अपराधों में कमी आएगी। अन्यथा हर कानून का कोई न कोई तोड़ तो होता ही है, इसका अर्थ यह नहीं कि कानून बनाना या मानना ही छोड़ दिया जाए।
नैटवर्क हैक करना, दूसरे के कंप्यूटर प्रयोग करना और अपना काम समाप्त करने के बाद सारे ट्रेस मिटा देना कोई मज़ाक नहीं है, इसके लिए एक उँचे लेवल की तकनीकी दक्षता चाहिए जो हर किसी में नहीं होती। और छुट-पुट अपराधों में इस तरह की दक्षता लगाने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि उसकी इतनी worth नहीं।
Hi Ravi Ji!
हटाएंThank you so much for your comment on my blog . I also want to fulfill my dreams of becoming a good writer.. Lets see , how far I can go.. But I definitely very much impressed by your profile..
Kabhie mauka mila to would like to contribute....
Asmita
Wah bahut badhiya,
हटाएंJitna internet par gum-naam bane rahana assaan hai utana hi mushkeel.
Tab tak, happy blogging