अब तक तो घरों के सामने नाम-पट्ट टंगता था, घरों के नाम या उसका अता-पता – गली, मोहल्ले, मकान का नंबर इत्यादि टंगता था. अब आदमी की अमीरी-गरीब...
अब तक तो घरों के सामने नाम-पट्ट टंगता था, घरों के नाम या उसका अता-पता – गली, मोहल्ले, मकान का नंबर इत्यादि टंगता था. अब आदमी की अमीरी-गरीबी टंगा करेगी.
यदि आप गरीब हैं, तो अब आपको अपने घर पर लिख कर ये टाँगना पड़ेगा – ‘मैं गरीब हूं’.
अभी तो ‘मैं गरीब हूं’ टंग रहा है. कल को मैं महा-गरीब हूँ, मैं महा-महा गरीब हूं, मैं बिलकुल फटीचर हूँ इत्यादि टंगने के फरमान आएंगे. आखिर सरकार गरीबों को कैसे पहचान पाएगी कि वो गरीब है जब तक कि उसके घर में ये टंगा, लिखा न मिले कि वो गरीब है. बहुत पहले खबर आई थी कि किसी जनप्रतिनिधि के पास बीपीएल कार्ड था. बीपीएल यानी बिलो पावर्टी लाइन. यानी गरीब से भी नीचे. इसके लिए कोई खालिस शब्द भी नहीं है. अपना शब्द भंडार भी इस मामले में कंगाल है. ऐसे लोगों के घरों पर क्या लिखा जाएगा? फिर, जल्द ही इसके उलट, ‘मैं अमीर हूं’, या ‘मैं महा अमीर हूं’, या फिर ‘मैं भारत का या दुनिया का सबसे अमीर हूं’ यह भी टंगने लगेगा. वैसे, अप्रत्यक्ष रूप से तो यह टंगने भी लगा है.
और, गरीबी की परिभाषा, उसका लेवल क्या है? मैं अपनी बात करूं तो मैं अंबानीज़, टाटाज़ के सामने तो महागरीब, महा फटीचर हूं. तो क्या मैं अपने घर के सामने ये लिख मारूं कि मैं तो फलां फलां व्यक्ति की तुलना में तो महा-महा गरीब हूं. या फिर गरीब वो है जिसे दो जून की रोटी मयस्सर नहीं है? तो क्या वो अपने मकान के सामने लिख कर बैठा रहेगा कि भई, मैं तो भूखे मर रहा हूं?
मप्र सरकार गरीबों के घरों के सामने यह लिखवा कर टंगवा रही है – “मैं गरीब हूं.” यह तो वैसी ही बात हुई जैसे कि किसी फ़िल्म में अमिताभ बच्चन के हाथों पर “मैं चोर हूँ” गुदवा दिया गया था.
गरीब होना कोई अपराध है? क्या गरीबी ऐसी समस्या है जिससे कभी छुटकारा नहीं पाया जा सकता? क्या गरीब को अपनी गरीबी क्या इस तरह सरेआम घोषित करते रहनी पड़ेगी? उसे सरेआम गरीबी का तमगा लगाकर घूमते रहना पड़ेगा?
हमारी वैचारिक गरीबी की पराकाष्ठा नहीं है ये? मैं सचमुच अपने आपको बहुत, बहुत गरीब महसूस करने लगा हूं.
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व्यंज़ल
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पूछते हो कि क्यों मैं गरीब हूँ
तेरे राज में जानम मैं गरीब हूँ
दर्द का अहसास है न भूख का
सबब बस ये है कि मैं गरीब हूँ
मेरी तो समस्या है बड़ी अजीब
सोने के ढेर पे बैठा मैं गरीब हूँ
अमीरों के इस भीषण शहर में
मुझे तो फख्र है कि मैं गरीब हूँ
टाँग दी गई तख्ती रवि पर भी
सबने मान लिया है मैं गरीब हूँ
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जिस के रहने को घर नहीं है उस के लिए कहाँ लिखा जाएगा?
हटाएंइस पोस्ट को पढ़ने के बाद मैं भी एकाएक गरीब महसूस करने लगा हूँ। शब्दों का अकाल जो पड़ गया है आपकी प्रशंसा के लिए। बस ‘वाह-वाह’ से काम चलाता हूँ।
हटाएंसरकार को अपने कागजादों पर सबसे ऊपर छपवाना चाहिए, हम दिमागी तौर पर गरीब है.
हटाएंअमीरों के इस भीषण शहर में
हटाएंमुझे तो फख्र है कि मैं गरीब हूँ
badhiyaa lagi ye panktiyan
हां सवाल ये भी है ही कि जो सडक स्टेशन या कहीं और गुज़र कर रहा हो, उसका क्या होगा?
हटाएंक्या ज़रूरी है जो दिल में है, जुबां पर आए
हटाएंये ज़माना नहीं इतना भी खरा होने का।
बहुत खूब। वैसे सरकारें भी नये-नये शगूफ़े उछालती रहती हैं।
हटाएंअभी कुछ दिन पहले से नीतीश कुमार भी महादलित और महापिछड़ा की टेर लगा रहे हैं।
इस तरह की खबरें गरीबी के पुख्ता सबूत हैं । किस तरह की ?
हटाएंक्योंकि बीपीएल की सूची में अमीरों के नाम जुड़ चुके हैं और प्रदेश सरकार इसे ठीक नहीं करवा पा रहे है सो यह नई कवायद शुरू की जाएगी।
हटाएंMe to gareeb nahi hoon..kyuki log soch se gareeb hote hain...jisko aage badne kee chah ho or kabeeliyat ho to gareebi kabhi samne nahi aati...samjhe aap sab log.
हटाएंSandhya