लोग-बाग़ भले ही ट्विटर और फेसबुक के कसीदे पढ़ लें, मगर, ब्लॉगिंग इज़ स्टिल इन थिंग. और, अब जब हर संभव विषय पर हर लेवल का कैपेबल व्यक्ति...
लोग-बाग़ भले ही ट्विटर और फेसबुक के कसीदे पढ़ लें, मगर, ब्लॉगिंग इज़ स्टिल इन थिंग. और, अब जब हर संभव विषय पर हर लेवल का कैपेबल व्यक्ति अपने-अपने ब्लॉग पर हर किस्म का मसाला परोसने लग गया है तो उसमें से छांट-बीन कर कुछ माल-मसाला लेकर प्रिंट मीडिया की एक बढ़िया कलेवर वाली पत्रिका निकाल लें तो?
ब्लॉगर्स पार्क पत्रिका में यही किया गया है. ब्लॉगर्स पार्क के दूसरे अंक की मानार्थ प्रति मुझे अभी हाल ही में मिली और इसके पन्ने पलटते हुए अजीब खुशनुमा अहसास हो रहा है कि चलिए, सिर्फ और सिर्फ ब्लॉगों में पूर्व प्रकाशित सामग्री से – पोस्ट व पोस्ट की टिप्पणियों समेत, एक संपूर्ण पत्रिका भारत में, वह भी भोपाल से, बाजार में बिक्री के लिए नियमित प्रकाशित होने लगी है. ब्लॉगर्स पार्क की दूसरी ख़ूबी यह है कि यह द्विभाषी है – पत्रिका अंग्रेज़ी व हिन्दी दोनों में ही है – यानी इसमें अंग्रेज़ी व हिन्दी ब्लॉगों की सामग्री प्रकाशित की गई है. अलबत्ता इसकी सारी सामग्री स्क्रेचमाईसॉल.कॉम के ब्लॉगों से ली गई है.
जाहिर है, ब्लॉगर्स पार्क को स्क्रेचमाईसॉल.कॉम समूह द्वारा जारी किया गया है जो कि प्रयोक्ताओं को नेट पर वर्डप्रेस जैसी मुफ़्त ब्लॉगिंग सुविधा उपलब्ध करवाते हैं. हालांकि बहुत मामलों में स्क्रेचमाईसॉल.कॉम की सुविधाएँ उतनी उन्नत नहीं हैं, मगर कुछ विशिष्ट किस्म की सुविधाएँ इसमें अंतर्निर्मित हैं – जैसे कि कुछ ज्वलंत व करंट अफेयर्स संबंधी विषयों जैसे कि वातावरण प्रदूषण, भ्रष्टाचार, अपराध इत्यादि पर सीधे ही लिखने लग सकते हैं. स्क्रेचमाईसॉल.कॉम ब्लॉगिंग-प्लेटफ़ॉर्म – ब्लॉग तथा एग्रीगेटर का मिलाजुला रूप प्रतीत होता है.
25 रूपए मूल्य की, 80 पृष्ठों की बढ़िया काग़ज़ में बढ़िया छपी पत्रिका - ब्लॉगर्स पार्क कौतूहल तो पैदा करती है, मगर सामग्री के लिहाज से यह निराश करती है. फिर अभी तो इसका दूसरा अंक ही निकला है. ब्लॉगों जैसी विविधता और मनोरंजकता इसमें लाई जाए तो इसके सफल होने में देर नहीं लगेगी.
ब्लॉगर्स पार्क के प्रवेशांक को (पीडीएफ़ फ़ाइल) आप यहाँ से डाउनलोड कर पढ़ सकते हैं.
pDF देख लेतें है बाकी कागज वाली बात कहाँ.
हटाएंएक अच्छा आरंभ है।
हटाएंअच्छी जानकारी। धन्यवाद।
हटाएंक्या स्क्रैचमाईसोल स्ववित्त्पोषित है, या इसकी सदस्यता के पैसे लगते हैं.. आखिर ऐसे venture के लिये आर्थिक संबल आता कहाँ से है?? क्या यह ब्लॉगर पर संभव नहीं??
हटाएंयह तो बहुत अच्छी बात है। इससे वे लोग भी इस ओर आकर्षित होंगे जो अभी नेट से से दूर हैं और प्रिन्ट माध्यम ही उनकी पहुँच में है।
हटाएंहिन्दुस्तानी एकेडेमी द्वारा सौ ब्लॉगों की प्रविष्टियों ओ संकलित करके एक पुस्तक “ब्लॉगपोस्ट’ शीर्षक से प्रकाशित करने की योजना अभी लटकी हुई है। अनेक सक्रिय ब्लॉगर्स ने अपनी प्रविष्टियाँ भेजने में अपेक्षित उत्साह नहीं दिखाया। संख्या चालीस पर आ कर अटक गयी है।
देखिए यह सपना कबतक साकार होता है।
कोई भेजेगा नहीं. संपादकों को स्वयं चुन कर संबंधित ब्लॉगर से संपर्क करना चाहिए कि भई इसे छापना चाहते हैं, अनुमति दें. शायद ही कोई मना करेगा.
हटाएंआग्रह है कि जल्द से जल्द छापें!
अच्छी शुरुआत है.
हटाएंसही है!
हटाएंमेरी तो शुरुआत ही 2010 में हुई, इसलिए यह देख नहीं पाया था, आपने लिंक दे दिया है, उपयोगी होगा, धन्यवाद.
हटाएंमुझे किसी ने एक बार किसी पत्रिका में छपवाने का प्रस्ताव दिया था, मैंने कहा ठीक है लेकिन शर्त ये है कि पोस्ट के साथ कमेंट्स भी आने चाहियें, प्रस्ताव खत्म हुआ| लेकिन देखकर अच्छा लगा कि ये कंसेप्ट किसी ने अपनाया|
हटाएंजानकारी अच्छी लगी|
यह देखने से रह गया था।
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