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ये तो बड़ा बेदम तनाव है…

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  कपड़े. कपड़े हम सभी को तनाव देते आ रहे हैं. शिशु को देखिए. उसे उसका लंगोट पहनाने की कोशिश करिए. वो लंगोट न पहनने के लिए जमीन आसमान एक...

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कपड़े. कपड़े हम सभी को तनाव देते आ रहे हैं. शिशु को देखिए. उसे उसका लंगोट पहनाने की कोशिश करिए. वो लंगोट न पहनने के लिए जमीन आसमान एक कर देगा. उसे झबला पहनाने जाइए तो झबला उसका नंबर एक का दुश्मन होगा और वो हर संभव कोशिश करेगा कि आप उसे उसका दुश्मन झबला न पहना पाएँ. जबर्दस्ती पहना देने के बाद वो उसे खींच तान कर उतार देने या फाड़ देने की नाकाम कोशिश करता फिरेगा. कपड़ों के द्वारा मनुष्यों को तनाव देने का सिलसिला इस तरह से मनुष्य के शिशु काल से ही चालू हो जाता है.

इधर पालक भी शिशु को कपड़े के नाम पर तनाव देते फिरते हैं. यदि लड़का है तो उसे फ्रॉक पहनाएंगे. गुलाबी, पीले, हरे परिधानों के साथ रिबन और हैट पहना देंगे. यदि लड़की है तो शिशु के शरीर में पैंट और टी शर्ट फंसा देंगे. शिशु को समझ आए या न आए, पालकों को शिशु का फैशन समझ में आना चाहिए. उसे बाजार का लेटेस्ट फैशन और चलन युक्त परिधान तो पहनाना ही होगा न! नहीं तो केयरिंग पालक कैसे कहलाएंगे भला!

शिशु के किशोरावास्था तक पहुँचते पहुँचते समझ में यह आ जाता है कि पालक किस तरह से उसके कपड़ों के नाम पर तनाव में खुद रहते थे और उसे कैसे तनाव में रखते थे. वो अब अपनी पसंद, अपनी मनमर्जी के कपड़े की डिमांड करने लगता है और इस तरह तोप का रूख मोड़ कर अपने पालकों को तनाव देने लग जाता है. वो वांटेड और लीवाइज के लो-वेस्ट जींस और ईव सेंट लॉरेंस के अजीबोगरीब स्लोगन लिखे लो-कट टीशर्ट की फरमाइशें पालकों के सामने रखता है. जिनकी कीमत तो कीमत, लुक एंड फ़ील भी जाहिर है, पालकों को अच्छा खासा तनाव देने की क्षमता रखती हैं.

यदि आप पति हैं, तो आपकी पत्नी द्वारा कपड़ों के नाम पर दिया जाने वाला नित्य का तनाव रोजमर्रा की बात होगी. साड़ियों और सलवार सूटों की अनगिनत वेराइटी के बाद भी आपकी पत्नी की आलमारी खाली की खाली ही रहती है. और जब आप किसी पार्टी में साथ चलने की बात कहते हैं तो तत्काल पार्टी लायक एक नए ड्रेस की फरमाईश हो जाती है. दिए गए किसी भी पत्नी के पास, ऐन मौके पर, अथवा दिए गए किसी भी मौके पर पहनने के लिए ढंग का कोई ड्रेस ही नहीं होता है. यदि होता भी है तो क्या पहनें क्या न पहनें का तनाव सिर पर होता है. क्योंकि अकसर हो ये जाता है कि ये वाली साड़ी तो पिछले साल बर्थडे पर पहनी थी, और ये नई वाली का रंग ऐसा है कि इसे आज पहनने का मूड नहीं है!

यदि आप पत्नी हैं, तो कपड़े का तनाव तो आपके जेहन में इम्बेडेड ही होता है, भले ही आप उसे जाने-अनजाने या चाहे-अनचाहे अनुभव करें या न करें. आपकी आधी खाली आलमारी आपके पतिदेव को हमेशा आधी भरी प्रतीत होती है. दुनिया में मिलियन्स ऑफ कलर हैं. लाखों रंग और करोड़ों डिजाइनों की साड़ियाँ और सलवार सूट मिलते हैं बाजार में. क्या आप उन खूबसूरत परिधानों का शून्य दशमलव शून्य तीन पांच प्रतिशत भी अपने लिए नहीं ले सकतीं? बिलकुल ले सकती हैं. ये तो बिना वहज का तनाव है जो आपके पतिदेव यह कह कर देते रहते हैं कि यार अभी तो पिछले महीने ही तो तुमने आधा दर्जन साड़ी खरीदी थी. फिर, आपकी सहेलियाँ, आपके पड़ोस की स्त्रियाँ नए नए डिजाइन और रूप रंग की कभी कोटा, कभी डोरिया कभी महेश्वर और कभी बनारसी साड़ियों की उनकी कभी न खत्म होने वाली खरीदारी के जरिए आपको भी उन्हें खरीद लेने की ललक का नित्य नया तनाव देती फिरती हैं उनका क्या?

वैसे भी इधर अच्छी संख्या में भारतीय आदमी अपने कपड़ों के जरिए खुद तो तनाव में रहता ही है, उसकी वजह से दूसरों को भी तनाव देता फिरता है. उदाहरण के लिए, मई-जून की भरी गरमी में कोट सूट पैंट और कंठलंगोट (टाई) डाले भारतीयों को देखें. वो खुद कितने तनाव में रहते होंगे ये तो कोई कच्छा-धोती बंडी पहन कर पंछे से हवा करता दीना राम ही बता सकता है. और, भारतीय राजनीतिज्ञ जब खादी के कपड़े पहन लेते हैं तो समझिए कि जनता को तनाव देने का समय आ गया है.

मल्लिका शेरावत, राखी सावंत और पामेला एंडरसन के कपड़े कितने आदमियों को तनावग्रस्त करते हैं यह तो यकीनन शोध का विषय है. नहीं?

ऐसे में, ये खबर सुकून दायक है कि अब कपड़े भी तनाव कम करेंगे. धन्य है!

COMMENTS

BLOGGER: 6
  1. अब इडली भी पसन्द करनी होगी?

    तनाव पर सही लिखा. तनाव देती चीज उतार फैंकनी चाहिए. यह भी खूब रही जो तनाव देती है वही मुक्त भी करेगी. दर्द ही दवा बनेगा.

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  2. पर कपड़े तो सदैव तनाव बढ़ाते आये हैं ।

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  3. ये नयी तकनीक का कमाल है | जहर ही जहर को मार रहा है | कपड़ा ही तनाव देता है अब वही दूर भी करेगा | रवी भाई गूगल रीडर में आपके ब्लॉग की फीड पूरी नहीं मिलती है केवल शीर्षक ही आ रहा है |

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  4. नरेश भाई,
    पिछले कुछ समय से फीडबर्नर फीड में समस्या है. पूरी फ़ीड देने से फ़ीड ही जनरेट नहीं हो रही. दरअसल मैंने लिनक्स की पूरी किताब एक साथ छाप दी तो 512 केबी फ़ीड लिमिट के कारण लफड़ा हो रहा है. एकाध दिन बाद फिर पूरी फ़ीड चालू कर देखता हूं. और ये सीख मिली कि एक साथ ज्यादा मटेरियल हिन्दी में न छापें नहीं तो फ़ीड की क्रॉनिक समस्या हो सकती है.

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  5. आह ! ग़रीब को कपड़ों का कोई तनाव नहीं ...न है बांस न बजती है बांसुरी

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  6. क्‍या बात कही। कहीं कपडे न होने का तनाव है तो कहीं अधिक कपडों से मुक्ति पाने का तनाव। कहीं कुछ नहीं होने का तनाव तो कहीं तनाव न होने का तनाव। आदमी कहीं भी रहे, कैसे भी रहे, तनाव तो उसका सहोदर है। कपडे भला क्‍या उसे कम या ज्‍यादा करें। हॉं, प्रसन्‍नतापूर्वक जीने के लिए भ्रम बडी सहायता करते हैं। गालिब क साथ अपन भी इस खयाल से जी बहला लेते हैं।

    जवाब दें हटाएं
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