मैं आपका फॉर्मर पीयेम बोल रहा हूं, आज नेता लोगों की पॉल खोल रहा हूं. दिल्ली इंडिया की राजधानी है, मगर यहाँ बिजली है ना पानी है. सब...
मैं आपका फॉर्मर पीयेम बोल रहा हूं,
आज नेता लोगों की पॉल खोल रहा हूं.
दिल्ली इंडिया की राजधानी है,
मगर यहाँ बिजली है ना पानी है.
सब अपना भला करते हैं,
इंडिया के ग़रीब मरते रहें.
हमारे बच्चे अमेरिका में पढ़ते हैं,
इनकम टॅक्स वालों से हम क्या डरते हैं?
पाँच साल बाद वोटर के पास गये, '
इंडिया शाइनिंग' की मिठास लिए.
फिल्मी सितारों ने भी डाइलॉग मारे,
पता नहीं हम फिर क्यूँ हारे?
एग्ज़िट पोल वालों का कमाल देखा,
रिसर्च के नाम में कुछ भी फेंका.
आंध्रा में आ गयी आँधी,
टीवी चॅनेल्स की हो गयी चाँदी.
पॉलिटिक्स में वो सितारे जिन्हें काम नहीं,
बंबई में अब एमपी गोविंदा, राम नहीं.
बंबई वो नगरी जहाँ फिल्में बनती हैं,
और एक्टर धर्मेंन्द्र की दोनों पत्नी हैं.
पत्नी वो जो पॉलिटीशियन को ज़रूरी है,
एक फॅमिली में दो सीट की हज़ूरी है.
मेरा कभी सक्सेस्फुल रोमॅन्स होता,
तो आज मेरे बेटे को चान्स होता.
राहुल बेटे, एक अच्छी अड्वाइज़ है,
अब जल्दी से ढूंढ कर एक वाइफ ले.
चाहे कश्मीर से या कन्याकुमारी से,
मगर कर किसी इंडियन नारी से.
इंडिया के वोटर अजीब है,
यह भी कोई तहज़ीब है?
अब लोक सभा सास बहू सीरियल से बढ़िया होगा,
जब लालू और सिद्धू का अँग्रेज़ी में झगड़ा होगा.
कम से कम ममताजी चुप होएंगी,
कहीं कोने में बैठ कर रोएंगी.
मुरली मनोहर जोशी की हार हो गयी,
ड्रीम वालों की पार्टी चार हो गयी.
एम बोले तो अपने मुन्नाभाई का बाप,
जेल गया लड़का तो कौन सा पाप?
पॉलिटिक्स में सब चलता है,
खाली आम आदमी जलता है.
आम मेरा फॅवरेट फल है,
पावर आज नहीं तो कल है.
लड़ेंगे झगड़ेंगे ये लोग,
गद्दी का यही तो है रोग.
मैं च्यवनप्राश लेता रहूँगा,
हेल्थ रही तो नेता रहूँगा.
आपके प्यार के लिए धन्यवाद,
सी यू - एक ब्रेक के बाद.
- रश्मि बंसल
(जैम मैगज़ीन अंक अप्रैल-15-29, 2009 से साभार. हिन्दी में स्वचालित लिपि परिवर्तन क्विलपैड से. जैम मैगज़ीन का एक रिव्यू यहाँ पढ़ें)
ये 'सोल करी' नाम से ब्लॉग भी लिखती हैं... आपको तो पता ही होगा. आज के राजनितिक हालात का अच्छा चित्रण है !
हटाएंरवि भाई, इसे प्रकाशित करने का धन्यवाद! विडम्बना यह कि लगभग सभी बातें सही हैं, कटु भी। प्रस्तुतीकरण सरल-सहज व रुचिकर है, बहुत मज़ा आया इस सामयिक प्रस्तुति पढ़ कर।
हटाएंयह कविता पढ़कर डॊ. ऋषभ देव शर्मा की कविता की ये पंक्तियां याद आई-
हटाएंहाँ, मैं आकाश बोल रहा हूँ
तुम्हारे कान खोल रहा हूँ....
सही में थकेला चुनाव। अपेक्षा है कि इसके परिणाम में जनता री-वाइटल डालेगी!
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