ये देश लंबित है… *-*-* 2 लाख फ़ाइलें निपटारे के लिए वर्षों से लंबित... और वह भी मंत्रालय में जहाँ शासकीय निर्णय होते हैं... देश, प्रांत और स...
ये देश लंबित है…
*-*-*
2 लाख फ़ाइलें निपटारे के लिए वर्षों से लंबित... और वह भी मंत्रालय में जहाँ शासकीय निर्णय होते हैं... देश, प्रांत और समाज के विकास के लिए. फिर अन्य सरकारी विभागों की बात तो छोड़ ही दें.
दरअसल सारा सरकारी कार्यालयीन तंत्र ही जंग खाया हुआ है. मैंने भी 20 वर्ष सरकारी सेवा में गुजारे हैं. सरकारी ऑफ़िसों की स्थिति सचमुच शोचनीय है और कोई भी बदलना नहीं चाहता. धूल-खाती, सड़ती हुई फ़ाइलों के बंडलों के बीच बैठने वाले सरकारी अफसर और बाबू कार्यालयीन समय में देर से आते हैं और समय से पूर्व चले जाते हैं. कोई काग़ज़, मसलन किसी का जेनुइन आवेदन किसी कार्यालय में पहुँचता है, तो वहाँ का आवक बाबू उस पर ठप्पा लगाकर, क्रमांक व दिनांक डालकर आवक फ़ाइल में लगा देता है. उसके पश्चात् उस फ़ाइल का अंतहीन सफर शुरू हो जाता है. अगर उस फ़ाइल में संबंधित अफसर को कोई काम नहीं करना है, तो उसपर कोई टीप लिख देगा, कोई जानकारी मांग लेगा या उसे अपने ऊपर-नीचे किसी अन्य अफसर के पास निर्णय के लिए भेज देगा. यानी अपनी कोर्ट में बाल नहीं रखेगा ताकि जिम्मेवारी न ठहराई जा सके. फ़ाइलों को लंबित रखने का सारा काम बड़े ही जेनुइन तरीके से होता है. और अगर कोई बंदा किसी फ़ाइल को जल्दी से निपटाने की फ़िराक में रहता है तो सबको उसमें कुछ निहित स्वार्थ नज़र आने लगते हैं. वैसे भी आमतौर पर वही फ़ाइलें चलती हैं जिनमें वज़न होता है. शेष को तो लंबित रहना होता है. इस देश की तरह...
*-*-*
व्यंज़ल
*-*-*
क्यों हो गया मेरा देश लंबित है
सोच कर ये मन होता कंपित है
मेरी आशाओं का महल क्योंकर
अर्ध शती में हो गया खंडित है
मेहनतकशों का मुकाम नहीं और
अकर्मण्य होता महिमा मंडित है
मनीषियों के दिन लद गए कबसे
यहाँ पूजा जाता पोंगा पंडित है
मुफ़्त में आँसू बहा कर रवि यूँ
क्यों तू करता खुद को दंडित है
*-*-*
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2 लाख फ़ाइलें निपटारे के लिए वर्षों से लंबित... और वह भी मंत्रालय में जहाँ शासकीय निर्णय होते हैं... देश, प्रांत और समाज के विकास के लिए. फिर अन्य सरकारी विभागों की बात तो छोड़ ही दें.
दरअसल सारा सरकारी कार्यालयीन तंत्र ही जंग खाया हुआ है. मैंने भी 20 वर्ष सरकारी सेवा में गुजारे हैं. सरकारी ऑफ़िसों की स्थिति सचमुच शोचनीय है और कोई भी बदलना नहीं चाहता. धूल-खाती, सड़ती हुई फ़ाइलों के बंडलों के बीच बैठने वाले सरकारी अफसर और बाबू कार्यालयीन समय में देर से आते हैं और समय से पूर्व चले जाते हैं. कोई काग़ज़, मसलन किसी का जेनुइन आवेदन किसी कार्यालय में पहुँचता है, तो वहाँ का आवक बाबू उस पर ठप्पा लगाकर, क्रमांक व दिनांक डालकर आवक फ़ाइल में लगा देता है. उसके पश्चात् उस फ़ाइल का अंतहीन सफर शुरू हो जाता है. अगर उस फ़ाइल में संबंधित अफसर को कोई काम नहीं करना है, तो उसपर कोई टीप लिख देगा, कोई जानकारी मांग लेगा या उसे अपने ऊपर-नीचे किसी अन्य अफसर के पास निर्णय के लिए भेज देगा. यानी अपनी कोर्ट में बाल नहीं रखेगा ताकि जिम्मेवारी न ठहराई जा सके. फ़ाइलों को लंबित रखने का सारा काम बड़े ही जेनुइन तरीके से होता है. और अगर कोई बंदा किसी फ़ाइल को जल्दी से निपटाने की फ़िराक में रहता है तो सबको उसमें कुछ निहित स्वार्थ नज़र आने लगते हैं. वैसे भी आमतौर पर वही फ़ाइलें चलती हैं जिनमें वज़न होता है. शेष को तो लंबित रहना होता है. इस देश की तरह...
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व्यंज़ल
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क्यों हो गया मेरा देश लंबित है
सोच कर ये मन होता कंपित है
मेरी आशाओं का महल क्योंकर
अर्ध शती में हो गया खंडित है
मेहनतकशों का मुकाम नहीं और
अकर्मण्य होता महिमा मंडित है
मनीषियों के दिन लद गए कबसे
यहाँ पूजा जाता पोंगा पंडित है
मुफ़्त में आँसू बहा कर रवि यूँ
क्यों तू करता खुद को दंडित है
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रवि भाई,
हटाएंमै आपसे बिल्कुल सहमत हु । हमारे देश मे सरकारी दफ्तरो की हालत वास्तव
मे बहुत खराब है। मेरे विचार मे हमारा देश तभी सुधरेगा जब सब आफिस online
हो जाऐगे। इन सब के पिछे सरकार का भी हाथ होता है। ागर हमारे देश की जनता
ाच्छी सरकार चुनले तो आफिसो को सही होने मे समय नही लगेगा ।
आप अधिकांश खबरों में अंग्रेजी कतरनें ही लगाते हैं…
हटाएंहाय
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