( प्रिया से क्षमायाचना सहित) आज पहली बारिश ने सत्यानाश कर दिया, पॉलीथीन से तने झोंपड़े को सराबोर कर दिया, एक झोंका हौले से आया...
(प्रिया से क्षमायाचना सहित)
आज पहली बारिश ने सत्यानाश कर दिया,
पॉलीथीन से तने झोंपड़े को सराबोर कर दिया,
एक झोंका हौले से आया और तिरपाल ले गया,
फिजा ने कान से टकरा कर जैसे, एक गाली दे दिया।
पानी की धार रुखसारों को छूती हुई...
कान के पीछे से नीचे चली गई,
मौका देख एक धार कमीज भिगो गई,
धार की बेहयाई...
खून बन कर आँखों में उतर गई।
नजर उठा जब आस-पास देखा...
उड़ कर आए टपरे, फटे तिरपाल...
इन्द्रधनुषी पॉलीथीन शीट, नालीदार चादरें...
असहाय पड़े थे इधर उधर,
हम दीवाने से बरसात में उन्हें उठा जमा रहे थे।
मन बावरा बदहवास हो गया,
इन धड़कनों पर इसका राज हो गया।
सुन बे मौसम! बदल दे मिजाज अपना जल्दी
घबरा रहे हैं हम कि कहीं
“हमें तुमसे नफरत न हो जाए”
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(चित्र – कृष्ण कुमार अजनबी की कलाकृति)
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! रविभाई । जबरदस्त !
जवाब देंहटाएंबारिश का अभी हमें इंतजार है, पर इसे पढ़कर तरबतर हो गए!
जवाब देंहटाएंबेहतर । एक हिस्से का सच ।
जवाब देंहटाएंबहुत मजेदार रचना है।
जवाब देंहटाएंअरे सर अभी कुछ दिन तो बरस लेने दीजिये. मौसम को अगर हम सब से नफ़रत हो गयी तो खैर नहीं :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंपहली बारिश किसी के लीये मदहोशी तो किसी के लीये सत्यानाश रवी जी कमाल कर दीया आपने प्रीया जी की रचना को चीर फाड़ के क्या से क्या बना दीया आपने । ऎसा लगता है सुंदर सा ख्वाब देखते हुए किसी गरीब को झकझोर कर यथार्थ में ला खड़ा कर दीया गया हो ।
जवाब देंहटाएंदोष न दें मौसम को कविवर,
जवाब देंहटाएंदोषी तो हैं सरकारें,
आँख मूँद क्यों बैठी रहती,
जब आती हैं बौछारें ।
जिंदगी के एक अहम पहलू को गहराई से छूती हुई रचना, जिसे पढकर बरसात का आनंद छूमंतर हो जाता है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
समय गरियाने का नहीं, स्वागत का है. :)
जवाब देंहटाएंररे भाई अभी बरसने तो दो क्या भूखों मरने का इरादा है हाँ कविता कहने के लिये अंदाज़ अच्छा है
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