मानहानि का तो अपने देश में ऐसा है कि बच्चा पैदा होते ही अपने साथ एक अदद मानहानि साथ लेकर आता है. दरअसल बच्चा कोख में कंसीव होते ही अपने पाल...
मानहानि का तो अपने देश में ऐसा है कि बच्चा पैदा होते ही अपने साथ एक अदद मानहानि साथ लेकर आता है. दरअसल बच्चा कोख में कंसीव होते ही अपने पालकों के लिए संभाव्य मानहानि लेकर आता है. तमाम भ्रूण-लिंग-परीक्षणोपरांत कन्या-भ्रूण-हत्या इस बात के जीवंत उदाहरण हैं कि उन बेचारी लाखों अजन्मा-कन्याओं ने इस नश्वर संसार में पदार्पण से जबरिया इन्कार कर अपने पालकों, रिश्तेदारों, समाज आदि की संभाव्य मानहानि को अपनी कुर्बानी देकर किस तरह से बचाया है.
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जन्मोपरांत भी मामला मानहानि का ही रहता है. सदैव. शाश्वत. सर्वत्र. नवजात शिशु – चाहे वो पुत्र हो या - सोनोग्राफ़ी की पकड़ में आने से बच निकल चुकी - पुत्री - यदि वो अल्पसंख्यक जमात में पैदा होते हैं तो वो बहुसंख्यकों की मानहानि करते हैं. यदि वो बहुसंख्यक जमात में पैदा होते हैं तो फिर जाति-कुनबे-अगड़े-पिछड़े-ब्राह्मण-दलितों-आदि के बीच मानहानि का मामला बनता है. ऊपर से, लोग दलित को दलित बना-बता कर मानहानि करते हैं तो इधर ब्राह्मण-ठाकुर को ब्राह्मण-ठाकुर बना-बता कर मानहानि करते हैं. अर्थ ये कि किसी जात में शांति नहीं. भारत में आदमी आदमी से मिलता है तो प्रकटतः भले ही मौसम की बात करे, पर उसके मुंह में एक अदृश्य प्रश्न सबसे पहले तैरता है – कौन जात हो? अब आदम जात चाहे साक्षात ब्रह्मा की नाभि से निकला हो, मगर मानहानि होना तय है. दोनों बामन भी होंगे तो सामने वाले को बोलेंगे – साला कान्यकुब्जी, सरयूपारीण के सामने बात करता है (या, इसके उलट,)!
इधर बेचारा बच्चा पूरे दो साल का हुआ नहीं, ठीक से बोल-बता पाता नहीं, चल-फिर पाता नहीं, और पालक उसकी मानहानि का पूरा इंतजाम पहले ही किए हुए रखते हैं. प्री-स्कूल, प्ले-स्कूल या नर्सरी (शुद्ध हिंदी वालों से क्षमायाचना सहित, उनकी मानहानि करने का कतई इरादा इस लेख या इस लेख के लेखक का नहीं है) में मोटी फीस देकर दाखिला दिला देंगे, वो भी अपनी जी-जान से की गई कमाई और बरसों की बचत में से अच्छा खासा हिस्सा निकाल कर. यहाँ चौ-तरफा मानहानि हो रही है जो किसी को दिखाई नहीं देती. फ्रैंचाइजी स्कूल दिहाड़ी मजदूर के बराबर सैलरी में शिक्षक-शिक्षिका नियुक्त कर पालकों से मोटी फीस लेकर निरीह, अबोध छात्र को दाखिला देते हैं. एक पालक बड़े गर्व से दूसरे पालक को बताता है – मेरा गोलू तो टैडी इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ता है! दरअसल, वो घोषित तौर पर, अप्रत्यक्ष रूप से, सामने वाले की मानहानि कर रहा होता है – अबे! मेरी जैसी तेरी औकात है भला? अगर हमारे देश में न्याय तुरंत-फुरंत मिलता, न्याय मिलने में इतनी देरी नहीं होती, ज्यूरी सिस्टम चलता होता तो ऐसे मानहानि के केसेज़ भी बहुत आते – मीलार्ड, इसने पब्लिकली मुझे बताया कि इसका बेटा टैडी इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ता है. यह तो सरासर मेरी पब्लिकली मानहानि हुई. क्या मेरी औकात नहीं है, जो ये मुझे पब्लिकली सुना रहा है?
भारत भूमि के जातक के इस प्रकार, बचपन से शुरू हुए मानहानि का ये सिलसिला उसके महाप्रयाण तक, और उसके बाद भी जारी रहता है. जनसंख्या के दबाव में उसे दफनाने के लिए ढंग के दो गज जमीन मिलना मुश्किल है, तो जलाने के लिए घी-चंदन की लकड़ी की जगह विद्युत-शवदाह गृह मृत देह के आसरा बनने लगे हैं. इधर, मृतात्मा की शांति के लिए मृत्यु-भोज से लेकर क्रिया-कर्म के पाखंड हुतात्माओं के लिए मानहानि नहीं तो और क्या हैं?
जिधर भी देख लें – मानहानि प्रत्यक्ष है. उदाहरण के तौर पर लें तो लेखक-पाठक के बीच भी मानहानि का परस्पर सीधा सच्चा संबंध है. खासकर हिंदी लेखकों-पाठकों का. मुझे मिलाकर (मुझमें कोई सुर्खाब के पर नहीं लगे हैं इसकी तसदीक मैंने भली प्रकार से कर ली है!) अधिकांश हिंदी लेखक टेबल-राइटिंग के शिकार हैं और वो जो भी घोर-अपठनीय लिखते-प्रकाशित करते हैं, उसका सीधा अर्थ होता है – पाठकीय मानहानि. इधर पाठक भी उन रचनाओं पर तिरछी निगाह मारकर, उन घोर अपठनीय रचनाओं को न पढ़ कर, रद्दी की टोकरी में फेंक कर लेखकों की मानहानि कर देता है. हिसाब बराबर.
शायद, मानहानि के देश में, जीवन का असली आनंद मानहानि में ही है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’कर्णम मल्लेश्वरी को जन्मदिन की शुभकामनायें और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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