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आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there - 45

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आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 323 ज्यूपिटर, नेप्च्यून, मिनर्वा और मोम...

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आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

323

ज्यूपिटर, नेप्च्यून, मिनर्वा और मोमस

एक कथा के अनुसार स्वर्ग में ज्यूपिटर(बृहस्पति), नेप्च्यून(वरुण) और मिनर्वा(ग्रीक मान्यता के अनुसार कला और ज्ञान की देवी) में यह शर्त लग गयी कि उनमें से कौन इस संसार की सर्वश्रेष्ठ वस्तु बना सकता है। मोमस भी स्वर्ग में रहने वाले एक देवता थे। उन्हें इस प्रतियोगिता का निर्णायक बनाया गया।

ज्यूपिटर ने इंसान, मिनर्वा ने घर और नेप्च्यून ने सांड को बनाया। निर्णायक की सीट पर बैठे मोमस ने सभी रचनाओं में दोष निकालने शुरू कर दिये। सबसे पहले उसने सांड में यह दोष निकाला कि उसके सींग आँखों के नीचे नहीं हैं जिससे वह उन्हें देख नहीं पाता।

फिर उसने इंसान में यह दोष ढूंढा कि उसकी छाती में कोई खिड़की नहीं है जिससे उसके मन के विचार और भावनायें दिखायी नहीं देतीं है।

अंत में उसने घर में दोष निकाला कि इसमें पहिए नहीं लगे हैं। पहिए न होने के कारण उसके निवासी उसे बुरे पड़ोसियों से दूर नहीं ले जा सकते।

जैसे ही मोमस ने अपना निर्णय समाप्त किया, ज्यूपिटर ने उसे स्वर्ग से बाहर का रास्ता दिखा दिया और कहा कि किसी भी रचना में दोष निकालना बहुत आसान है। उसे दूसरों की रचना में तब तक दोष निकालने का हक़ नहीं है, जब तक वह स्वयं कोई अनूठी रचना न करे।

"किसी दूसरे की रचना में दोष निकाना सबसे आसान काम है।"

324

सर्वोत्तम सेब

मुल्ला नसरुद्दीन ने अपना भाषण समाप्त ही किया था कि भीड़ में खड़े उनके एक निंदक ने उनसे कहा - "आध्यात्मिक सिद्धांतों को बघारने से तो अच्छा यह होगा कि तुम कुछ व्यावहारिक बात बताओ।"

बेचारे नसरुद्दीन भौचक रह गए और उससे बोले - "आप मुझसे किस तरह का व्यावहारिक ज्ञान दिखवाना चाहते हैं?"

इस बात से खुश होकर कि उसने नसरुद्दीन को चारों खाने चित कर दिया, भीड़ पर रौब जमाता हुया वह व्यक्ति बोला - "उदाहरण के लिए तुम स्वर्ग के बगीचे के एक सेब को दिखाओ।"

नसरुद्दीन ने तत्काल एक सेब तोड़ा और उसे थमा दिया। सेब देखकर वह व्यक्ति बोला - "लेकिन यह सेब तो एक ओर से सड़ा है। स्वर्ग के बगीचे का सेब तो सर्वोत्तम होना चाहिए।"

नसरुद्दीन ने तपाक से उत्तर दिया - "तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो कि स्वर्ग का सेब सर्वोत्तम होना चाहिए। लेकिन तुम्हारी औकात के हिसाब से यही सेब सर्वोत्तम है। तुम्हें इससे अच्छा सेब नहीं मिल सकता।"

--

76

दृष्टि रावण सी या विभीषण सी?

युद्ध में पराजित रावण मृत्यु शैय्या पर पड़े अंतिम सांस गिन रहे थे. राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा कि रावण प्रकाण्ड विद्वान है, अतः उससे कुछ ज्ञान प्राप्त कर आओ.

लक्ष्मण रावण के पास गए और अपनी इच्छा का इजहार किया. रावण ने लक्ष्मण को बहुत सी ज्ञान की, राजनीति की और लोकाचार की बातें बताई. तब लक्ष्मण ने रावण से पूछा - आप तो प्रकाण्ड विद्वान हैं, शिष्टाचार की बातें बता रहे हैं, मगर फिर भी आपने सीता माँ का अपहरण क्यों किया?

रावण ने बिना किसी पश्चाताप के कहा – मैं राक्षस कुल में पैदा हुआ और इस तरह की बातें अपने रोजमर्रा जीवन में देखता था. इसीलिए मैंने भी यह कार्य कर डाला.

लक्ष्मण को अचरज हुआ. विभीषण भी तो उसका भाई था, जो उसके विपरीत आचरण वाला था. वह सीधे विभीषण के पास गया और पूछा – आप राक्षस कुल में पैदा हुए, रोजमर्रा जीवन में राक्षसी कर्म को आपने देखा फिर भी आपके मन में दैवत्व कहाँ से आ गया?

विभीषण ने जवाब दिया – यह सही है कि मैं राक्षस कुल में पैदा हुआ, मगर प्रारंभ से ही मैं इस तरह के राक्षसी कर्म और अन्याय को नापसन्द करता था और मैंने प्रण किया था कि ऐसे काम मैं कभी नहीं करूंगा तथा लोगों को भी ऐसे कार्य करने से भरसक मना करूंगा.

परिस्थितियाँ बेशक महत्वपूर्ण हो सकती हैं, मगर ये आपको अलग तरीके से सोचने के लिए रोक नहीं सकतीं. थिंक डिफ़रेंटली!

--

77

इच्छा

एक विद्यार्थी था. उसे विविध विषयों पर ज्ञान की प्राप्ति का बड़ा शौक था. उसने प्रकाण्ड विद्वान सुकरात का नाम सुन रखा था. ज्ञान की लालसा में एक दिन अंततः वह सुकरात के पास पहुँच ही गया और सुकरात से पूछा कि वह भी किस तरह से सुकरात की तरह प्रकाण्ड पंडित बन सकता है.

सुकरात बहुत कम बात करते थे. विद्यार्थी को यह बात बोलकर बताने के बजाए उसे वे समुद्र तट पर ले गए. जब किसी बात को सिद्ध करना होता था तब सुकरात इसी तरह की विचित्र किस्म की विधियाँ अपनाते थे. समुद्र तट पर पहुँच कर वे बिना अपने कपड़े उतारे समुद्र के पानी में उतर गए.

विद्यार्थी ने समझा कि यह भी ज्ञान प्राप्ति का कोई तरीका है, अतः वह भी सुकरात के पीछे पीछे कपड़ों सहित समुद्र के गहरे पानी में उतर पड़ा. अब सुकरात पलटे और विद्यार्थी के सिर को पानी में बलपूर्वक डुबा दिया. विद्यार्थी को लगा कि यह कुछ बपतिस्मा जैसा करिश्मा हो जिसमें ज्ञान स्वयमेव प्राप्त हो जाता हो. उसने प्रसन्नता पूर्वक अपना सिर पानी में डाल लिया. परंतु एकाध मिनट बाद जब उस विद्यार्थी को सांस लेने में समस्या हुई तो उसने अपना पूरा जोर लगाकर सुकरात का हाथ हटाया और अपना सिर पानी से बाहर कर लिया.

हाँफते हुए और गुस्से से उसने सुकरात से कहा – ये क्या कर रहे थे आप? आपने तो मुझे मार ही डाला था!

जवाब में सुकरात ने विनम्रता पूर्वक विद्यार्थी से पूछा – जब तुम्हारा सिर पानी के भीतर था तो सबसे ज्यादा जरूरी वह क्या चीज थी जो तुम चाहते थे?

विद्यार्थी ने उसी गुस्से में कहा – सांस लेना चाहता था और क्या!

सुकरात ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया – जिस बदहवासी से तुम पानी के भीतर सांस लेने के लिए जीवटता दिखा रहे थे, वैसी ही जीवटता जिस दिन तुम ज्ञान प्राप्ति के लिए अपने भीतर पैदा कर लोगे, तो समझना कि तुम्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है.

इच्छा सभी करते हैं, सवाल जीवटता पैदा करने का है.

(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. परिस्थितियाँ बेशक महत्वपूर्ण हो सकती हैं, मगर ये आपको अलग तरीके से सोचने के लिए रोक नहीं सकतीं।

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  2. दोष निकालना आसान है, नया सृजन करना कठिन है।

    जवाब दें हटाएं
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