हिंदी ब्लॉगों की चोरी की सामग्री से अखबारों के पन्ने बनाए जाने का सिलसिला तो हिंदी ब्लॉगिंग के इतिहास से ही चालू है. बहुत पहले (29 जुलाई 20...
हिंदी ब्लॉगों की चोरी की सामग्री से अखबारों के पन्ने बनाए जाने का सिलसिला तो हिंदी ब्लॉगिंग के इतिहास से ही चालू है. बहुत पहले (29 जुलाई 2009) पीपुल्स समाचार के एक व्यंजन विशेषांक का एक पन्ना पूरा का पूरा निशा मधुलिका ब्लॉग से मय चित्रों के बनाया गया था.
आज एक अखबार नव दुनिया का ब्लॉग पर केंद्रित पूरा का पूरा पन्ना हिंदी ब्लॉगों की कटपेस्ट सामग्री से तैयार किया गया है - जिसमें कॉमा, फुलस्टाप और मात्रा की गलती तक जस की तस उतारी गई है. जाहिर है ब्लॉगरों के नाम व यूआरएल नदारद हैं, और बदले में किसी और का नाम दिया गया है.
ब्लॉग्स इन मीडिया की एक पोस्ट में इस अखबार की फुल स्कैन इमेज के साथ बताया गया है कि -
"10 मार्च 2011 को नव दुनिया, भोपाल के साप्ताहिक परिशिष्ट ‘युवा’ में ब्लॉग केन्द्रित एक ऐसा आलेख जिसमें लगभग सभी जानकारियाँ विभिन्न ब्लॉगों से ली गई हैं किन्तु न तो किसी ब्लॉग का नाम दिया गया है और ना ही किसी ब्लॉग लेखक का! हैरत की बात यह भी है कि कॉमा, फुलस्टॉप भी हूबहू उठा लिए गए हैं!!
जिन ब्लॉगों की सामग्री हूबहू ली गई हैं उनमें रवि रतलामी (रविशंकर श्रीवास्तव) का अभिव्यक्ति में लेख, बी एस पाबला के ब्लॉग बुखार से 3 पोस्ट, अविनाश वाचस्पति के नुक्कड़ से एक पोस्ट, शिवम मिश्रा के बुरा भला से एक पोस्ट, नवभारत टाईम्स पर मंगलेश डबराल का ब्लॉग आधारित लेखांश मुख्य हैं।..."
यहाँ बाक्स आइटम में मेरे दो आलेखों की सामग्री लेकर हूबहू छापी गई है, जबकि मैंने यहाँ पर कॉपी राइट नोटिस में ये लगाया हुआ है कि सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, बशर्तें सिर्फ नाम व लिंक दे दें.
प्रसंगवश, हिंदी ब्लॉगिंग की एक किताब भी कुछ अरसा पहले ऐसी ही कट-पेस्ट सामग्री से छपकर आई थी.
आमतौर पर ब्लॉगर इसलिए लिखते हैं कि लोगों तक उनका लिखा, उनके विचार पहुँचे. और, नाम व यूआरएल समेत बाईलाइन दिए जाने से किसी ब्लॉगर को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, मगर उनकी लिखी सामग्री का हूबहू नकल कर अखबार के पन्ने तैयार किए जाएं और अपना बिजनेस चलाया जाए यह किसी सूरत नहीं होना चाहिए.
क्या नव दुनिया अखबार प्रबंधन को अपनी गलती की क्षमा नहीं मांगनी चाहिए और संबंधितों को क्षतिपूर्ति नहीं देनी चाहिए?
ये तो बिलकुल गलत है...नवदुनिया से ऐसी अपेक्षा नहीं थी.....
हटाएंउपर चित्र में नई दुनिया और पोस्ट के शीर्षक व अन्य स्थानों पर नव दुनिया लिखा गया है, वैसे गंभीर मसला है इस तरह ब्लॉग सामग्री के प्रति रवैया.
हटाएंअख़बार वालों को कम से कम ब्लोगर व ब्लॉग का नाम तो छापना ही चाहिए था
हटाएंराहुल सिंह जी,
हटाएंअखबार - नई दुनिया मीडिया लि. का अखबार है - नव दुनिया.
इस चोरी ने ब्लॉग के महत्व को स्पष्ट कर दिया है, आईये उत्सव भी मनायें साथ, साथ।
हटाएंकॉपीराईट का क्या औचित्य रह गया।
हटाएंआप लोगों को कानूनी कार्रवाई करनी चाहिये।
प्रणाम
ये तो हद ही हो गयी…………इनके खिलाफ़ तो कार्यवाही होनी चाहिये।
हटाएंशर्मनाक मामला.
हटाएंकानूनी कार्यवाही ज़रूरी है.
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पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
इस पर कार्यावाही होनी चाहिये..
हटाएंवाह मुफ्त में मशहूरी
हटाएंमाल मालिकों का मशहूरी कम्पनी की ........
ब्लॉगर और उसके ब्लॉग के नाम का ज़िक्र ज़रूरी है.... बाकी प्रवीण पाण्डेय जी की बात भी अच्छी लगी
हटाएंसब अपनी अपनी बात कह रहे हैं | क्या आप सभी कानूनी कारवाई के लिए इकठ्ठा हो पायेंगे | यदि आप सब चाहते है कि इस अखबार के खिलाफ कारवाई हो तो एकजुट होने के प्रयास शुरू कीजिए व एक ग्रुप बनाकर इनके खिलाफ कानूनी कारवाई शुरू कीजिए | लेकिन ये फ़िज़ूल की बात है | सब अपने अपने कमेंट्स दे कर आराम से बैठ जायेंगे | कोई कुछ भी नहीं करेगा | क्योंकि कोई कुछ करना ही नहीं चाहता | बस अच्छी से अच्छी टिप्पणी करना जानते हैं | हो सकता है उपरोक्त टिप्पणीकारों को मेरी बात तल्ख लगे पर ये हकीकत हैं और इस से कोई भी इनकार नहीं कर सकता |
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