मुझे भी चाहिए पूरी , असली आज़ादी अब जबकि चहुँओर असली आज़ादी की चर्चा चल पड़ी है , मुझे भी लगता है ...
मुझे भी चाहिए पूरी, असली आज़ादी
अब जबकि चहुँओर असली आज़ादी की चर्चा चल पड़ी है, मुझे भी लगता है कि मैं भी अब तक आजाद कहाँ था. मैं तो, जन्मना, पूरीतरह ग़ुलाम हूँ - और मुझे भी चाहिए, पूरी, असली आज़ादी.
जब मैं पैदा हुआ, मुझे पैदा होने की पूरी आज़ादी नहीं थी. अगर मुझे पैदा होने की आज़ादी होती तो मैं भला अपने मुंह में चांदी काचम्मच लेकर पैदा नहीं हुआ होता. ईश्वर अगर मुझसे पूछता - बता बंदे, तुझे पैदा कहाँ होना है? तो, मैं स्विटज़रलैंड के किसीखूबसूरत गांव में पैदा नहीं होता. पैदा होने में सचमुच की आज़ादी होती, तो मैं किसी नास्तिक के घर पैदा हुआ होता जहाँ जन्म लेनेमात्र से, मुझ पर किसी एक धर्म का ठप्पा नहीं लगता.
कोई मुझे बताएगा कि बचपन में उसे वो आज़ादी मिली जिसका वो हकदार था? मुझे भी नहीं मिली. हर वक्त कोई न कोई सिर परबैठा रहता और कहता ये करो, वो करो. ये न करो वो न करो. मन खेलने का हो रहा है, और पालक लट्ठ और चप्पल लेकर पीछे पड़े हैंकि पढ़ो. जब माँ बड़े प्रेम से पुचकारते हुए कहती है कि बेटा - बरसात में मत खेलो, सर्दी लग जाएगी, तो वो भले ही उसके लिए प्रेमहो, है तो आपके लिए ग़ुलामी की जंजीर ही - आपकी आज़ादी को प्रेम के सांचे में ढालकर सोने का मुलम्मा चढ़ा दिया जाता है, औरआपको बरसात में अठखेलियाँ करने से मना कर दिया जाता है.
शादीशुदा लोगों से पूछिए आज़ादी किसे कहते हैं. ग़नीमत ये है कि वो सांस ले पा रहे हैं, अपनी मर्जी से. बाकी सब तो सामने वाले सेप्री-एप्रूव किया हुआ है. और फिर, साथ में, दुनिया भर के सांसारिक-सामाजिक-पारिवारिक-व्यावसायिक बंधन. उदाहरण के लिए, अपने टीवी के सामने पैर फैलाकर बैठकर, अपने मन मुताबिक एक टीवी चैनल लगाकर घंटे भर अबाध देखने की कोशिश तोकीजिए. पता चल जाएगा कि आप कितने आज़ाद हैं. मुझे तो अपने मोबाइल में निर्बाध, दस मिनट यू-ट्यूब वीडियो देखने कीआज़ादी नहीं है - तमाम सेटिंग्स एप्लाई करने और प्रीमियम सेवा लेने के बाद भी आगे पीछे कहीं से बीच में कोई विज्ञापन चलाआएगा, कोई नोटिफ़िकेशन कॉल चला आएगा या फिर कोई जंक कॉल ही फ़िल्टर होकर रिंग मारने लगेगा.
लोग कहते हैं कि सोशल मीडिया ने अपने विचारों को चहुँओर पहुँचाने की आज़ादी दी है. इस कथन का सत्य होना उतना ही सत्य हैजितना सूर्य का पश्चिम से निकलना. आप कोई एक विचार रखेंगे, आपके उस विचार को तोड़ने के लिए, उसका विरोध करने सैकड़ोंलोग पिल पड़ेंगे. सच को झूठ और झूठ को सच सिद्ध कर दिया जाता है. सोशल मीडिया में, कल ही मैंने लिखा, धरती गोल है. औरपता है, लाखों लोगों ने मुझे ऐसे-ऐसे लिंक टिकाए जहाँ सिद्ध किया गया है कि धरती चपटी है. यहाँ तो, मुझे, अपनी धरती को गोलमानने की भी आज़ादी नहीं है. हद है.
अब आपकी बारी है. पूरी विनम्रता से पूछ रहा हूँ - क्या आप सचमुच आज़ाद है? या आपको भी चाहिए, मेरी तरह, पूरी, सचमुच कीआज़ादी.
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