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एक लप्पड़ मार के तो देख! समीक्षा - कविता संग्रह - यूँ ही अचानक कुछ नहीं घटता

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कविता रावत का कविता संग्रह - यूँ ही अचानक कुछ नहीं घटता - कई मामलों में विशिष्ट कही जा सकती है. संग्रह की कविताएँ वैसे तो बिना किसी भाषाई ...

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कविता रावत का कविता संग्रह - यूँ ही अचानक कुछ नहीं घटता - कई मामलों में विशिष्ट कही जा सकती है. संग्रह की कविताएँ वैसे तो बिना किसी भाषाई जादूगरी और उच्चकोटि की साहित्यिक कलाबाजी रहित, बेहद आसान, रोजमर्रा की बोलचाल वाली शैली में लिखी गई हैं जो ठेठ साहित्यिक दृष्टि वालों की आलोचनात्मक दृष्टि को कुछ खटक सकती हैं, मगर इनमें नित्य जीवन का सत्य-कथ्य इतना अधिक अंतर्निर्मित है कि आप बहुत सी कविताओं में अपनी स्वयं की जी हुई बातें बिंधी हुई पाते हैं, और इन कविताओं से अपने आप को अनायास ही जोड़ पाते हैं.

एक उदाहरण -

मैं और मेरा कंप्यूटर


कभी कभी 

मेरे कंप्यूटर की

सांसें भी हो जाती हैं मद्धम

और वह भी बोझिल कदमों को

आगे बढ़ाने में असमर्थ  हो जाता है

मेरी तरह


और फिर

चिढ़ाता है मुझे

जैसे कोई छोटा बच्चा

उलझन में देख किसी बड़े को

मासूमियत से मुस्कुराता है

चुपचाप !

कभी यह मुझे 

डील डौल  से चुस्त -दुरुस्त

उस बैल के तरह

दिखने लगता है जो बार-बार

जोतते ही बैठ जाता है अकड़कर

फिर चाहे कितना ही कोंचो

पुचकारो

टस से मस नहीं होता! ….

यदि आप इन पंक्तियों को पढ़ पा रहे हैं तो निश्चित रूप से आप भी कंप्यूटिंग उपकरणों का उपयोग कर रहे होंगे. कभी इन उपकरणों ने अपनी क्षमताओं से आपको रिझाया होगा, अपने कार्यों से आपको खुश किया होगा, और  कभी कहीं अटक-फटक कर - हैंग-क्रैश होकर या आपको कहीं मेन्यू में अटका-उलझा कर परेशान भी किया होगा. कविता रावत ने कितनी खूबसूरती से इस अनुभव को बहुत ही सरल शब्दों में बयान किया है.

संग्रह में आधा सैकड़ा से भी अधिक विविध विषय व विधा की कविताएं संग्रहित हैं. कुछ के शीर्षक से ही आपको अंदाजा हो सकता है कि किस बारे में बात की जा रही होगी, अलबत्ता अंदाजे बयाँ जुदा हो सकता है -

गूगल बाबा

हम भोपाली

मेरी बहना जाएगी स्कूल

प्यार का ककहरा

गांव छोड़ शहर को धावे

होली के गीत गाओ री

…आदि.

ऐसा नहीं है कि संग्रह में, जैसा कि ऊपर शीर्षकों में वर्णित है, रोजमर्रा जीवन के सहज सरल विषयों पर कविताई की भरमार है. बल्कि बहुत सी सूफ़ियाई अंदाज की बातें भी हैं. जैसे कि इन शीर्षकों से दर्शित हैं -

जिंदगी रहती कहां है

क्या रखा है जागने में

जब कोई मुझसे पूछता है

लगता पतझड़ सा यह जीवन

जग में कैसा है यह संताप

…आदि.

ऐसी ही एक ग़ज़ल, जिसका शीर्षक है - चुप मत रह एक लप्पड़ मार के तो देख - की एक पंक्ति है -

बहुत हुआ गिड़गिड़ाना हाथ-पैर जोड़ना

चुप मत रह एक लप्पड़ मार के तो देख.

जो आज के सामाजिक, राजनैतिक परिदृष्य में इस आवश्यकता को दर्शित करता है कि व्यक्ति को अब अपने हक के लिए आवाज उठानी ही होगी.

संग्रह में कुछ विशिष्ट प्रतिमान लिए प्रेम कविताएँ भी हैं, कुछ बाल-कविताएँ-सी भी हैं, देश-प्रेम भी है, तो पारिवारिक स्नेह बंधन को जांचते परखते स्त्रैण लेखन का प्रतिरूप स्वरूप खास कविताएं भी. यथा -

कहीं एक सूने कोने में


भरे-पूरे परिवार के बावजूद

किसी की खुशियाँ

बेवसी, बेचारगी में सिमटी देख

दिल को पहुँचती है गहरी ठेस

सोचती हूं

क्यों अपने ही घर में कोई

बनकर तानाशाह चलाता हुक्म

सबको नचाता है अपने इशारों पर

हांकता है निरीह प्राणियों की तरह

डराता-धमकाता है दुश्मन समझकर

केवल अपनी ख़ुशी चाहता है

क्यों नहीं देख पाता वह

परिवार में अपनी ख़ुशी!


माना कि स्वतंत्र है

अपनी जिंदगी जीने के लिए

खा-पीकर,

देर-सबेर घर लौटने के लिए

संग्रह में हर स्वाद की कविताएँ मौजूद हैं जिससे एकरसता का आभास नहीं होता, और संग्रह कामयाब और पठनीय बन पड़ा है. जहाँ आज चहुँओर घोर अपठनीय कविताओं की भरमार है, वहाँ, कविता रावत एक दिलचस्प, पठनीय और सफल कविता संग्रह प्रस्तुत करने में सफल रही हैं.

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. मेरी सोच से भी बढ़कर आपने मेरी एक-एक कविता का बड़े धैर्य से पठन ही नहीं बल्कि बड़ी सूक्ष्‍मता का जांचा-परखा है और मूल्‍यांकन किया है। आप जैसे साहित्य कला प्रेमियों और साहित्य साधनारत विद्जनों का जब हम जैसे नौसिखिए लेखकों को इसी तरह का सहयोग, प्रोत्साहन मिलता है तो सच में लिखने के लिए मन में एक ऊर्जा का संचार होता है और फिर कलम चुप रहना पसंद नहीं करती हैं।
    आपने मेरे कविता संग्रह के लिए जो सटीक और निष्पक्ष समीक्षा प्रस्तुत की है उसके लिए मैं ह्रदय से आपकी आभारी हूँ।

    सादर

    जवाब दें हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-12-2021) को चर्चा मंच       "भीड़ नेताओं की छटनी चाहिए"  चर्चा अंक-4293)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

    जवाब दें हटाएं
  3. कविता जी की रचनाएँ हमेशा एक नया अन्दाज़ लिए अनूठी शैली में होती हैं … बहुत ही अच्छी समीक्षा है …
    मेरी बहुत बहुत शुभकामनाएँ है कविता जी को इस प्रकाशन पर …

    जवाब दें हटाएं
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छींटे और बौछारें: एक लप्पड़ मार के तो देख! समीक्षा - कविता संग्रह - यूँ ही अचानक कुछ नहीं घटता
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