यह उक्ति इस पुस्तक पर सटीक बैठती है - किताब के कवर से उसकी सामग्री का अंदाजा नहीं लगाएँ. जब यह किताब हाथ में ली, तो लगा कि यह अंग्रेज़ी में...
किताब के कवर से उसकी सामग्री का अंदाजा नहीं लगाएँ.
जब यह किताब हाथ में ली, तो लगा कि यह अंग्रेज़ी में होगी. कवर पर किताब का शीर्षक, लेखक का नाम सब अंग्रेज़ी में जो है.
परंतु जब किताब के पन्ने पलटे तो सुखद रूप से हिंदी के दर्शन हुए.
अनस्पोकन सूफ़ियाना कविताई का एक बेहतरीन संग्रह है. संग्रह में 3 दर्जन से अधिक कविताएँ संकलित हैं और उनकी प्रस्तुति उससे भी अधिक बेहतरीन.
इसे सूफ़ियाना कविताई की कॉफी-टेबल-बुक कही जा सकती है.
जिंदगी के फलसफे को, जो कवि ने जिया है, कागज पर उतारा है और उसे कॉम्प्लीमेंट प्रदान किया है कविताओं के साथ जोड़ी गई छायाचित्रों की जुगलबंदी ने.
एक बानगी देखिए -
आहिस्ता चल अब ऐ ज़िंदगी
जीवन की इबारत अभी बाक़ी है
कुछ दर्द मिटाना बाक़ी है
कुछ फर्ज निभाना बाक़ी है
रफ़्तार में तेरे चलने से,
कुछ रूठ गए, कुछ छूट गए,
रूठों को मनाना बाक़ी है
छुटों को मिलाना बाक़ी है
कुछ रिश्ते बनकर जुड़ते गए,
कुछ जुड़े हुए थे, छूट गए,
उन सब मीठे मीठे रिश्तों के,
जोड़ों को जमाना बाक़ी है
जीवन की सहज पहेली को,
अब क्या सुलझाना बाक़ी है?
आहिस्ता चल ऐ मेरी ज़िन्दगी,
जीवन का गीत अभी बाक़ी है
संग्रह में कहीं कहीं प्रूफ / वर्तनी की त्रुटियाँ रह गई हैं जो खटकती हैं. बाकी संग्रह और प्रस्तुति लाजवाब है. इस पुस्तक की एक खासियत और है कि कवर पर इसके डिज़ाइनर अभिनव का बाईलाइन भी है. तो जाहिर है उनका काम भी उल्लेखनीय होगा ही. एक बानगी -
किताब अमेजन पर उपलब्ध है, और अभी केवल किंडल (डिजिटल) फ़ार्मेट तथा प्रिंट दोनों में ही उपलब्ध है. परंतु चूंकि यह कॉफ़ी टेबल जैसी दर्शनीय किताब है, अतः प्रिंट वर्जन निःसंदेह बेहतर है. हाँ, यदि आपके पास किंडल अनलिमिटेड का सब्सक्रिप्शन है तो फिर यह किताब किंडल संस्करण में आपके लिए निःशुल्क उपलब्ध है.
https://www.amazon.in/Unspoken-Peeyush-Verma-ebook/dp/B091GFJ6LT/ref=tmm_kin_title_0?_encoding=UTF8&qid=1619415466&sr=8-1
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