यह मामला थोड़ा दुखी करने वाला तो है, मगर है बड़ा ही मनोरंजक. इधर उधर की वेबसाइट पर टहलते हुए मैं यूँ ही विचर रहा था तो मुझे एक हिंदी के प्रस...
यह मामला थोड़ा दुखी करने वाला तो है, मगर है बड़ा ही मनोरंजक.
इधर उधर की वेबसाइट पर टहलते हुए मैं यूँ ही विचर रहा था तो मुझे एक हिंदी के प्रसिद्ध वेबसाइट पर गूगल एडसेंस का यह विज्ञापन दिखा -
रचनाकार रवि रतलामी और रवि रतलामी के नाम से प्रायोजित खोज का विज्ञापन दिया गया था. एडसेंस में इस तरह के विज्ञापन क्लिक बेट कहलाते हैं और आमतौर पर जो शब्द या कीवर्ड वहाँ होते हैं, क्लिक करने पर उससे संबंधित चीज आमतौर पर नहीं मिलती.
सो, मेरा माथा ठनका और मैंने बारी बारी से दोनों लिंक पर क्लिक किए.
नतीजा ये रहा -
रचनाकार वाली लिंक क्विक एंड ईजी नोट्स पर ले जा रही थी और रवि रतलामी लेटेस्ट बॉलीवुड गॉसिप को जा रहे थे!
रचनाकार तो खैर जेनेरिक नाम है, मगर मेरा नाम रवि रतलामी को अपने प्रायोजित खोज में शामिल करने वाले, तेरा सत्यानाश हो (यदि यह गूगल बॉट का कमाल है तब भी,)! - क्योंकि रवि रतलामी जेनेरिक तो नहीं ही है, मेरी जानकारी में यूनीक (एकमात्र) भी है और, मेरे श्राप में बहुत दम है - पिछली बार, जब मेरे पांच हजार रुपए आरकॉम ने डकार लिए थे तो उसे श्राप दिया था, और वो आज दीवालिया हो रही है.
पर, इसका एक दूसरा पहलू भी है - रवि रतलामी और रचनाकार रवि रतलामी एक ब्रांड नाम, बड़ा नाम हो गया है, जिसके बिना पर लोगों को बेवकूफ़ बना कर अपना माल बेचा भी जा सकता है. वाह!
खुद की पीठ ठोंक लूं? क्या कहते हैं?
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