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तकनीकी विकास तो, सचमुच पगला गया है!

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राजनीतिक विकास का पागलपन देखना या दिखाई देना सापेक्षिक है. राजनीतिक विकास अर्धपागलों को पागल लग सकता है, पागलों को सामान्य और सामान्य को अर्...

व्यंग्य जुगलबंदी : बिना शीर्षक
मेरा स्मार्टफ़ोन कैसा हो? बिलकुल इसके जैसा हो...
कड़ी निंदा पर कुछ नोट शीट्स

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राजनीतिक विकास का पागलपन देखना या दिखाई देना सापेक्षिक है. राजनीतिक विकास अर्धपागलों को पागल लग सकता है, पागलों को सामान्य और सामान्य को अर्धपागल या ठीक इनके उलट! मगर यकीनी तौर पर एक बात तो कही ही जा सकती है - वह यह है कि तकनीकी विकास तो, सचमुच पागल हो गया है. सभी के लिए. पागलों के लिए भी, अर्धपागलों के लिए भी और सामान्य के लिए भी.

हमारे जैसे रचनाकारों को ही ले लीजिए. अच्छा भला हम लोग फ़ाउंटेन पेन से, डायरी नुमा कॉपियों में पांडुलिपि में लिखते थे, और जैसे तैसे जुगाड़ आदि भिड़ा कर और यदि जेंडर-न्यूट्रल की बात न करें तो अपनी रचना को संवारने के बजाए स्वयं को संवारकर, लीप-पोतकर, देख दिखा कर, मठाधीशों की लल्लो-चप्पो कर कहीं छप-छपा जाते थे और मर-खप जाते थे. मगर भला हो इस तकनीकी विकास का. फ़ाउंटेन पेन और डायरी का तो खैर, इन्तकाल होना ही था, किंडलादि के इस जमाने में, छपने-छपाने की प्रिंट की पत्रिकाओं और किताबों के दिन भी कब्र में लटके हुए हैं – और इधर सारा माल इंटरनेट पर जम कर इन्स्टैंट लिखा जा रहा है, जम कर पढ़ा जा रहा है और जम कर साझा किया जा रहा है और वायरल हो रहा है. हर आदमी लिख रहा है और हर आदमी पढ़ रहा है. रचनाकार-पाठक की महीन रेखा इस तकनीकी विकास के पागलपन ने खत्म सी कर दी है. हिंदी-तकनीक की दुनिया में इस बीच तकनीकी विकास ने इतनी पागल-पन भरी दौड़ मचाई कि लोग शुषा-कृतिदेव फ़ॉन्ट अपनाते, इससे पहले यूनिकोड कूद पड़ा और लेखक- ब्लॉग-फ़ेसबुक के पागलपन में उलझ कर रह गया.

तकनीकी विकास का पागलपन आदमी को कहीं का नहीं रख छोड़ेगा – मानव को पूरी तरह समाप्त भले न कर पाए, मगर पागल बना कर ही छोड़ेगा. और मैं ये बात, कंप्यूटरों-मोबाइलों में आ रही नई कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बारे में नहीं कह रहा. मैं तो अपने घर में लगे, नए, स्मार्ट-बल्ब को जान समझ कर, अपना कर और अंततः फेंक कर यह बात कर रहा हूँ. पिछली ऑनलाइन खरीदी ऑफर में, जाने किस पागलपन में मैंने एक अदद स्मार्ट-बल्ब खरीद लिया और उसे अपने शयनकक्ष में लगा लिया. यूँ, किसी भी किस्म की छूट और खरीदी ऑफर, आदमी को पागल बनाने के लिए ही होते हैं. तो, बात शयनकक्ष में स्मार्टबल्ब के इंप्लांट होने की थी.  शयनकक्ष में जहाँ दो दशक पहले तक मिट्टी तेल की डिबरी बमुश्किल जला करती थी, वहाँ तकनीकी विकास के पागलपन की वजह से मामला टंगस्टन फ़िलामेंट लैंप से चलकर ट्यूबलाइट और सीएफएल से होता हुआ, अब, स्मार्टबल्ब तक आ गया है.

मेरे शयनकक्ष का यह स्मार्टबल्ब 1 करोड़ 60 लाख रंगों में रौशनी फेंक सकता है – जिनको पहचानने की कोशिश में आप खुद पागल हो सकते हैं. भले ही मुझे गिनती सौ तक नहीं आती हो, मेरा मैथ्स कमजोर रहा हो, मैं आर्ट का ग्रेस-मार्क्स वाला स्टूडेंट रहा हूँ, और बड़ी बात यह हो कि औसत (आम नहीं लिखा है, कृपया ध्यान दें,) आदमी की आंखें सैकड़ा-हजार रंग को ही विभाजित रूप में पहचान पाने की क्षमता रखती हों, पर उससे क्या? न केवल यह स्मार्टबल्ब करोड़ों रंगों की रौशनी फेंक सकता है जो केवल स्मार्ट लैंसों व उपकरणों को ही समझ आ सकता है, बल्कि यह मौसम, समय और आपके मूड के मुताबिक भी रौशनी फेंक सकता है. जैसे कि रात को 11 बजे आपके सोते समय यह ऐसी रौशनी फेंकता है जिससे आपको और अधिक गहरी , रीलैक्सिंग नींद आती है और फलस्वरूप जब आप सुबह उठते हैं तो अपेक्षाकृत अधिक तरोताज़ा, सुखद और प्रसन्न महसूस करते हैं. इसी के लालच में मैंने यह बल्ब खरीदकर अपने शयनकक्ष में लगाया था.

इस स्मार्टबल्ब की सहायता से मैं कोई सप्ताह भर की भली नींद ले भी नहीं पाया था, कि एक अच्छी भली रूमानी रात को दो बजे मेरी नींद खुल गई. मेरे स्मार्टबल्ब में से विचित्र तरीके के, अजीबोगरीब रंगों की रौशनी निकल रही थी, जिसने मेरी शांति भरी नींद में खलल डाल दिया था, और मैं जाग गया था. पसीने से तरबतर. जैसे कि कोई बुरा ख्वाब देख लिया हो. मगर बात कुछ दूसरी थी. स्मार्टबल्ब से निकल रही अजीबोग़रीब रौशनी मुझे पागल बनाए दे रही थी. मैंने तत्काल उसे बंद करने के लिए अपने मोबाइल में स्थापित ऐप्प को खोलना चाहा, तो देखा कि उसमें तो पहले ही नोटिफ़िकेशन आ रहा था. नोटिफ़िकेशन में किसी हैकर का संदेश बोल्ड अक्षरों में आ रहा था – आपका स्मार्टबल्ब हैक कर लिया गया है. अब इस स्मार्टबल्ब में निकलने वाली रौशनी आपको पंद्रह मिनट के भीतर पागल बना देगी, अतः जल्द से जल्द इससे छुटकारा पाने के लिए तुरंत ही इस खाता- #$@%%^& नंबर पर $ #@$$% बिटक्वाइन जमा करें. अब आप बिटक्वाइन क्या है यह मत पूछिए. तकनीकी विकास के पागलपन की पराकाष्ठा है यह. न रूपया न पैसा न सिक्का न नोट और है यह बड़ी रकम. बस गिनते रहिए. और दूसरी मुद्राओं के उलट यह गिरता नहीं, बस उठता जाता है उठता जाता है – शायद किसी दिन फटने के लिए!

तो, तकनीकी विकास के पागलपन ने मुझे ही एक अच्छी भली अर्धरात्रि को पागल बना दिया था. मैंने अपने इस पागलपन और जुनून में शयनकक्ष के कोने में रखा डंडा उठाया जो पत्नीजी छिपकलियों और कॉकरोचों को भगाने के लिए रखा करती हैं. पता नहीं, तकनीकी विकास छिपकलियों और कॉकरोचों को भगाने के मामलों में पीछे क्यों और कहाँ रह गया जो अभी भी डंडों का सहारा लेना होता है – शायद पुरुषवादी अनुसंधानकर्ताओं की साजिशें हों -स्त्रियों को अभी भी वश में रखने हेतु, बहरहाल अभी तो यह मेरे लिए फायदेमंद ही रही. मैंने उस डंडे से अपने स्मार्टबल्ब को दे मारा. मगर ये क्या? वो एंटी शैटर, एंटी डिस्ट्रक्टिव मटीरियल का बना था, शैटरप्रूफ़ था, डस्ट और वाटरप्रूफ़ था, लाइफ़टाइम गारंटी वाला था. उसे न टूटना था, न टूटा और वह मुझे नीम पागल बनाने वाली रौशनी फेंके जा रहा था, जिसकी फ्रीक्वेंसी और बढ़ती जा रही थी.

आप कहेंगे कि मैं उस स्मार्टबल्ब का स्विच क्यों ऑफ नहीं कर रहा था? तो, बता दूं कि अभी मैं पूरा पागल नहीं हुआ था, और मुझे पता था कि यह स्मार्टबल्ब 72 घंटे का पॉवरकट तो झेल ही सकता था, यह सेल्फ़पावर्ड भी था – दिन में वातावरण से प्राप्त रौशनी से सेल्फ चार्ज भी हो जाता था. तो इससे पहले कि मुझ पर पूरी तरह से पागलपन सवार होता, मैंने उस स्मार्टबल्ब को कंबल में लपेटा, सॉकेट से बाहर निकाला और कूड़ेदान में डालकर ढक्कन बंद कर दिया.

प्लास्टिक के अल्प-पारदर्शी कूड़ेदान के भीतर से उस स्मार्टबल्ब की पगलाई रौशनी धीमी-धीमी बाहर आ रही थी और अब वो बड़ी भली और अच्छी लग रही थी – सम्मोहक, मेस्मेराइजिंग, हिप्नोटिक टाइप. मैंने जल्द ही अपनी नजरें फेर लीं, कूड़ेदान को घर से बाहर रखा, और वापस शयनकक्ष में आकर सोने की असफल कोशिश करने लगा. तकनीकी विकास के पागलपन की तो #@$%&*%#@$!

तकनीकी विकास, आपके मुताबिक, कितना पागल है पार्टनर?

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