अनूप शुक्ल प्रेरित व्यंग्य जुगलबंदी सीरीज - 1 : मोबाइल आयम डॉ. गुलाटी - एम.एम.एम.पी. - डॉ. गुलाटी ने अपने उसी गुरूर वाले अंदाज में अपन...
अनूप शुक्ल प्रेरित व्यंग्य जुगलबंदी सीरीज - 1 : मोबाइल
आयम डॉ. गुलाटी - एम.एम.एम.पी. - डॉ. गुलाटी ने अपने उसी गुरूर वाले अंदाज में अपना परिचय दिया.
एम.एम.एम.पी. मतलब?
एम.एम.एम.पी मतलब - मेरा मोबाइल ही मेरा परिचय है.
अच्छा, तो आपका मोबाइल कौन सा है?
इससे पहले कि डॉ. गुलाटी बड़े स्टाइल से, उसी गुरूर से अपना मोबाइल निकाल कर जनता को दिखाएँ, ताकि जनता ठहाके लगा सके, जरा आप अपना मोबाइल चेक कर लें. क्योंकि अब आप भी जुदा नहीं हैं. डॉ गुलाटी की तरह ही, आपका मोबाइल ही आपका परिचय है.
एक जमाना था जब आदमी का परिचय भिन्न-भिन्न तरीकों से लिया-दिया जाता था. ऊपर-ऊपर से आदमी का परिचय प्राप्त करने के लिए कोई प्रकटतः, प्रत्यक्ष साधन उपलब्ध नहीं था. कोई धोतीबाज आदमी भी ब्यूरोक्रैट निकल सकता था तो कोट-टाई डांटा हुआ आदमी ठेठ खेती-किसानी वाला भी हो सकता था. तब नाईकी और एडिडास के जूते और टिसॉट, पेबल की घड़ियाँ भी तो नहीं थे जिनसे आदमी के व्यक्तित्व का अंदाजा लगाया जा सके. जब तक घुट-घुट कर आपसी परिचय का आदान प्रदान नहीं हो जाता था, ये कहना मुश्किल होता था कि यार, ये बंदा आखिर करता क्या है!
पर आज?
आज आपके और सामने वाले के हाथों में एक अदद मोबाइल है ना इंस्टैंट परिचय पाने के लिए!
घुट-घुट कर एक दूसरे का परिचय देने लेने की जरूरत ही नहीं!
उदाहरण के लिए, यदि आपके हाथों में अभी भी एक अदद फ़ीचर फ़ोन है, तो आप इस सदी के सबसे बड़े तकनीकी तौर पर दलित, वंचित आदमी हैं, ठीक उसी तरह जैसे कि आज जो भी ईमानदार बचा है, तो वो इस लिए कि उसे मौका नहीं मिला होता है. तो आपको भी स्मार्टफ़ोन का मौका नहीं मिला है, और आप भी मौका पड़ते ही एक अदद स्मार्टफ़ोन की ओर छलांग लगाने को तैयार बैठे हैं. अथवा यह भी हो सकता है कि आप स्मार्टफ़ोन से ऊबे-अघाए व्यक्ति हैं जो सबकुछ छोड़छाड़ कर, अपना फ़ेसबुक-ट्विटर प्रोफ़ाइल हटा-मिटाकर सन्यास लेकर वापस फ़ीचरफ़ोन की दुनिया में वापस आ गए हैं - जिसकी कि संभावना नगण्य ही है. ये भी हो सकता है कि आपकी कंपनी में स्मार्टफ़ोन बैन हो और आपको मजबूरी में सादे फ़ीचरफ़ोन लेकर चलने जैसी गांधीगिरी करनी पड़ रही हो!
यदि आपके हाथों में श्यामी, वनप्लस जैसे स्मार्टफ़ोन है, तो यकीन मानिए, आप इस सदी के सबसे अधिक होशियार, मितव्ययी आदमी हैं, जो पैसे की कीमत समझते हैं, टेक्नोलॉज़ी की परख रखते हैं. इसके साथ ही, आप उन डम्ब अमरीकियों को चिढ़ा रहे होते हैं, जो उतने ही डम्ब एप्पल फ़ोन को, जिसमें फ़ीचर के नाम से ज्यादा कुछ नहीं होता है, और टेक्नोलॉज़ी में कोई पाँच साल पीछे चल रहा है, दुगनी-तिगुनी कीमत देकर खरीदते हैं. आजकल वैसे भी, अमरीका में डम्ब और ट्रम्प का राइम बढ़िया चल रहा है, और उनके एप्पल से बाहर निकलने की संभावना कम ही है. इसलिए, भारत में एप्पल? ना बाबा ना! जो थोड़ा मोड़ा एप्पल किसी भारतीय के हाथ में दिखता है तो वो या तो धोखा खाया भारतीय होता है या फिर अमरीकी-नुमा भारतीय. वैसे, मैं अपनी बात कहूं तो एक बार मैं भी धोखा खा गया था, और धोखा खाने के मामले में एक बात अच्छी ये है कि आमतौर पर आदमी बार-बार धोखा नहीं खाता.
यदि किसी के हाथ में (अब भी) विंडोज़/लूमिया मोबाइल है तो उसके व्यक्तित्व के बारे में पक्के तौर पर यह कहा जा सकता है कि वो इंटीग्रिटी के मामले में पक्का है. वो बड़ा ही पक्का विश्वासी आदमी होगा. वो आँख-कान मूंदकर जिस किसी पर विश्वास कर लेता होगा, उस पर मरते दम तक विश्वास करता होगा. विंडोज़ फ़ोन मार्केट से बाहर हो गया है, चीजें उसमें चलती नहीं मगर फिर भी उसे जी जान से सीने से चिपकाए व्यक्ति के विश्वास, उसकी विंडोज़ के प्रति प्रतिबद्धता की प्रशंसा तो करनी ही होगी. मगर, हमें इनसे अच्छी खासी हमदर्दी भी दिखानी चाहिए.
अब आते हैं लाइफ़ मोबाइल की ओर. आप कहेंगे कि सेमसुंग, एचटीसी, हुआवेई, जेडटीई, ब्लैकबेरी, नोकिया, एलजी, नैक्सस, मोटो, पैनासोनिक, सोनी, माइक्रोमैक्स, इंटैक्स, डाटाविंड आदि-आदि का क्या? ओप्पो! अरे, ये भी तो, अनगिनत में से एक मोबाइल ब्रांड है. आज आप कोई भी शब्द ले लें. उससे मिलता जुलता किसी न किसी कंपनी का कोई न कोई वर्जन का मोबाइल फ़ोन मिल ही जाएगा. 33 करोड़ हिंदू देवी देवता की तरह मोबाइल ब्रांड और वर्जन भी इतने ही हैं. न एक कम न एक जियादा. यूँ, ये सब आम जनता के मोबाइल हैं. मैंने आम आदमी जानबूझकर नहीं कहा, नहीं तो समस्या हो सकती थी. तो ये बाकी के सब मोबाइल आम जनता के आम मोबाइल हैं. अपवादों को छोड़ दें तो कोई खास, विशिष्ट व्यक्तित्व नहीं. हमें क्या और चलताऊ ऐटीट्यूड युक्त. अधिकांशतः में ये बात लागू है - आपके फ़ोन में लाखों ऐप्प इंस्टाल हो सकते हैं और हजारों फ़ीचर हैं, मगर आप में से अधिकांश के लिए काम के केवल व्हाट्स्एप्प और फ़ेसबुक हैं! आम जनता के आम ऐप्प. बहुत हुआ तो ट्विटर बस. यकीन नहीं होता? अरे भाई, यकीन कर लो. और ये भी यकीन कर लो कि महज तीन टैप से सेटिंग में जाकर आप अपने फ़ोन का इंटरफ़ेस यानी भाषा हिंदी में बदल सकते हैं, और कीबोर्ड भी हिंदी में कर सकते हैं. अब बताएं? क्या आपके फोन की भाषा हिंदी है? क्या आपके फ़ोन का कीबोर्ड असल हिंदी है कि गूगल ट्रांसलिट्रेशन वाली Ram से रामा लिखने वाली? हिंदी बेचारी आपके फ़ोन में उपेक्षित पड़ी है, और आप धकाधक हिंदी पखवाड़े में उपेक्षित हिंदी के बारे में रोमन में लेख पे लेख, स्टेटस पे स्टेटस मारे जा रहे हैं! इन आम मोबाइलों के स्क्रीन पर महज एक झलक मारने की देरी है. मोबाइल मालिक के आम व्यक्तित्व का पता आम हो जाता है!
हाँ, तो बात हो रही थी लाइफ़ - एलवाईएफ़ मोबाइलों की. हाल-फिलहाल डेटा का तमाम आग पानी इन्हीं मोबाइलों में तो आ रहा है. बेखौफ आप यह बात यकीन से कह सकते हैं कि जिस किसी के पास भी वर्तमान में लाइफ़ मोबाइल है वो दुनिया के न सही, भारत के सबसे भाग्यशाली लोगों में से एक हैं. जिन्होंने पहले से इसे खरीदा हुआ है, जाहिर है वे भाग्यशाली होने के साथ-साथ बहुत बड़े वाले दूरदर्शी भी रहे हैं. अब यह अलग बात है कि यह अहोभाग्य केवल दिसंबर 2016 तक के लिए ही है.
चलिए, बहुत सी बातें हो गईं. अब तो आप कृपया बता दें कि आपका परिचय क्या है? ओह, नहीं, बस, आप ये बता दें कि आपका मोबाइल कौन सा है?
चकाचक मोबाइल कथा हो गयी। और बांचने के लिये इधर आयें
हटाएंhttps://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10209178671397342
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (26-09-2016) के चर्चा मंच "मिटा देंगे पल भर में भूगोल सारा" (चर्चा अंक-2477) पर भी होगी!
हटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लगा मोबलिया रोग
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