आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there - 102

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  आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 440 कभी अपने सपनों को मत छोड़ो एक ...

 

sunil handa story book stories from here and there in Hindi

आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

440

कभी अपने सपनों को मत छोड़ो

एक बार की बात है, छोटे मेंढकों का एक समूह था। उनके मध्य एक दौड़ प्रतियोगिता की घोषणा हुयी। एक बहुत ऊँची मीनार के शीर्ष पर पहुँचना उनका लक्ष्य था। मीनार के चारों ओर इस दौड़ को देखने के लिए काफी संख्या में भीड़ एकत्र हो गयी।

आखिरकार दौड़ शुरू हुयी।

भीड़ में सभी को यही उम्मीद थी कि कोई भी मेंढक मीनार के शीर्ष तक नहीं पहुंच पायेगा। सभी तरफ से यही आवाजें सुनाई दे रहीं थीं - "शायद ही कोई ऊपर तक पहुंच पाए! वे लोग कभी भी ऊपर तक नहीं पहुंच पायेंगे! कहाँ इतनी ऊँची मीनार और कहाँ छोटे से मेंढक!....."

धीरे - धीरे छोटे मेंढक क्रमशः गिरना शुरू हो गए। परंतु उनमें से कुछ मेंढक जोश और ऊर्जा से भरे हुए थे। वे चढ़ते रहे।

भीड़ की ओर से निरंतर यही सुनायी दे रहा था - "ऊपर तक पहुंचना तो असंभव है।"

अब तक कई मेंढक थक चुके थे और हार मान चुके थे। लेकिन एक मेंढक लगातार ऊपर चढ़ता रहा। वह हार मानने वाला नहीं लग रहा था।

अंत में सभी मेंढकों ने हार मान ली, सिवाए एक छोटे मेंढक के। काफी प्रयासों के बाद वह मीनार के शीर्ष तक पहुँच गया। सभी छोटे मेंढक उसकी सफलता का राज़ जानना चाहते थे।

एक मेंढक ने विजेता से पूछा कि आखिर उसने मीनार के शीर्ष तक पहुंचने का साहस कैसे जुटाया?

बाद में पता चला कि वह मेंढक तो बहरा था। दूसरों की हताशा और निराशा से भरी बातों को कभी मत सुनें क्योंकि वे आपसे आपके सपनों को छीन सकते हैं। आपके दिल में जो भी अरमान हो, उसे पूरा करने के लिए हमेशा सकारात्मक बातें करें। क्योंकि जो भी बातें आप सोचते और सुनते हैं, उनका आपके ऊपर प्रभाव पड़ता है।

अतः हमेशा सकारात्मक सोचें। और जब भी कोई आपके सपनों को लेकर नकारात्मक बातें करे तो उस पर कभी ध्यान न दें।

441

काँटों के बिना गुलाब नहीं

एक बार राजा भोज ने अपनी प्रजा को शानदार दावत दी। लाखों लोग दावत में शरीक हुये और उन्होंने स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ उठाया। सभी से अपने बारे में खुशामद और चाटुकारिता पूर्ण बातें सुनकर राजा भोज को गर्व महसूस हुआ।

सायंकाल राजधानी के मुख्य द्वार पर कुछ लोगों को अपने सिर पर लकड़ियों का गठ्ठर ले जाता एक लकड़हारा दिखायी दिया। लोगों ने उससे कहा - "अरे क्या तुम्हें यह नहीं पता कि आज राजा भोज ने सारी प्रजा को शानदार दावत दी थी? तुम व्यर्थ ही मेहनत करते रहे।"

लकड़हारे ने उत्तर दिया - "जी नहीं, मुझे आज के भोज के बारे में पूरी जानकारी थी। लेकिन यदि मैं मेहनत करके अपने भोजन का प्रबंध कर सकता हूँ तो दावत की परवाह क्यों करूं? परिश्रम की सूखी रोटी का आनंद मुफ्त के पकवानों में कहाँ?"

442

धार्मिक शास्त्रार्थ

कुछ शताब्दी पूर्व, ईसाईयों के धर्मगुरू पोप ने यह घोषणा की कि सारे यहूदियों को इटली छोड़ना पड़ेगा। यह सुनकर सारे यहूदियों में आक्रोश फैल गया। तब पोप ने यहूदियों के सामने एक शर्त रखी। उनके साथ किसी भी यहूदी नेता को धार्मिक शास्त्रार्थ करना था। शर्त यह थी कि यदि यहूदी नेता जीते तो उन्हें इटली में रहने का अनुमति होगी और यदि हारे तो इटली छोड़ना पड़ेगा।

यहूदी समुदाय ने आपसी विचार-विमर्श करके वयोवृद्ध रब्बी मोज़ी को शास्त्रार्थ में उनकी ओर से भाग लेने के लिए चुना। रब्बी मोज़ी लैटिन बोलना नहीं जानते थे और पोप को यहूदी भाषा बोलना नहीं आता था। इसलिए यह तय हुआ कि शास्त्रार्थ मौन रूप से होगा।

शास्त्रार्थ वाले दिन रब्बी और पोप एक दूसरे के सामने बैठ गए। पोप ने हाथ उठाकर तीन अंगुलियाँ दिख्रायीं।

रब्बी मोज़ी ने पीछे देखा और एक अंगुली दिखायी।

इसके बाद पोप ने अपने सिर के चारों ओर अंगुली घुमायी।

रब्बी ने अपनी अंगुली से जमीन की ओर इशारा किया।

फिर पोप कुछ चिप्स और शराब का प्याला लेकर आये।

रब्बी ने एक सेब को उठा लिया।

यह देखते ही पोप खड़े हो गए और बोले - "मैं शास्त्रार्थ में हार स्वीकार करता हूं। यहूदी यहाँ रह सकते हैं।"

बाद में कई कार्डिनल पोप के इर्द-गिर्द एकत्रित हो गए और उनसे पूछा कि आखिर क्या बात हुयी है?

पोप ने कहा - "सबसे पहले मैंने तीन अंगुली उठाकर ट्रिनिटी या त्रित्व की ओर इशारा किया। इसके उत्तर में उसने एक अंगुली उठाकर मुझे याद दिलाया कि हम दोनों समुदायों का ईश्वर एक ही है। इसके बाद मैंने अपने सिर के चारों ओर अंगुली घुमाकर यह इशारा किया कि ईश्वर हमारे चारों ओर है। इसके उत्तर में उसने अपनी अंगुली से धरती की ओर इशारा करते हुए बताया कि ईश्वर हमारे साथ वहां भी मौजूद है। मैंने शराब और चिप्स उठाकर उसे यह बताया कि ईश्वर ने हमारे पापों को माफ कर दिया है। इसके उत्तर में उसने सेब उठाकर मुझे मनुष्य के मूल पाप की याद दिलायी। उसके पास मेरे सभी प्रश्नों के उत्तर थे। आखिर मैं और कर भी क्या सकता था?"

इसीबीच, यहूदी समुदाय के लोग भी रब्बी के चारों ओर एकत्रित हो गए और पूछने लगे कि क्या हुआ?

रब्बी ने उत्तर दिया - "सबसे पहले उसने मुझे तीन अंगुलियाँ दिखाकर यह कहा कि तीन दिन में हमें इटली छोड़कर जाना होगा। मैंने उत्तर दिया कि यह आपके ऊपर है। फिर उन्होंने मुझसे कहा कि सारा शहर यहूदियों से खाली हो जाएगा। मैंने धरती की ओर अंगुली दिखा कर उनसे साफ-साफ कह दिया कि हम लोग यहीं रहेंगे।"

तभी एक औरत ने उनसे पूछा - "और फिर?"

रब्बी ने उत्तर दिया - " क्या पता? फिर खाना-पीना शुरू हो गया।

एक ही घटना को दो व्यक्ति अलग नजरिए से देख सकते हैं।

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188

मरूद्यान और ऋषि

एक रेगिस्तानी गांव के पास एक सदा हरा भरा रहने वाला मरुद्यान था. वहाँ पर एक कुंआ भी था जो कभी सूखता नहीं था. सूखा और ग्रीष्म में ग्रामीण उस पर निर्भर हो जाते थे.

एक बार एक ऋषि मरूद्यान पहुँचे और वहाँ उन्होंने अपना डेरा जमाया. कुछ दिनों के बाद ऋषि के कई शिष्य वहाँ रहने आ गए. धीरे से डेरा विशाल आश्रम बन गया.

गर्मी में जब गांव में पानी की किल्लत हुई तो ग्रामीण आदतानुसार मरुद्यान के कुएं पर पहुँचे तो ऋषि के शिष्यों ने ग्रामीणों को खदेड़ दिया.

कुछ समय बाद ऋषि के मठ से व्यवसाय प्रारंभ हो गया. मरुद्यान के उत्पादों को ग्रामीणों को विक्रय करने लगे. ऋषि का व्यवसाय फलने फूलने लगा.

ग्रामीणों ने अवृष्टि और भूख के कारण अपनी जमीनें ऋषि को गिरवी रख दीं.

बहुत समय बीत गया. कई वर्षों बाद गांव के एक निवासी को जब यह सब देखा नहीं गया तो उसने ऋषि और उनके शिष्यों के प्रति विद्रोह कर दिया. उसने अपने कुछ साथियों को लेकर ऋषि व उनके चेलों का शक्ति से प्रतिकार किया और उनके द्वारा हड़पी गई सम्पत्ति से उन्हें बेदखल कर दिया. चेले भाग गए और ऋषि का नामलेवा

मरुद्यान में फिर जान आ गई थी और गांव फिर से हरा भरा हो गया था.

हममें से बहुत से गुरुओं की शरण में जाकर अपना मन गिरवी रख देते हैं. इससे उद्धार नहीं हो सकता. उद्धार तो मुक्ति से ही संभव है. आपका मन जो आपकी अपनी सम्पत्ति है उसे किसी दूसरे के हाथ गिरवी कैसे रख सकते हैं?

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189

असली सुख

एक धनी आदमी संत शेनगाई के पास पहुँचा और उनसे प्रार्थना की कि उनके व उनके परिवार के सदा सर्वदा खुशहाली के लिए आशीर्वाद दें.

शेनगाई ने एक कागज का टुकड़ा लिया और उसमें लिखा – पिता मरे, पुत्र मरे, पौत्र मरे. और फिर यह कागज का टुकड़ा उस धनी आदमी को दे दिया.

उस धनी आदमी ने इसे पढ़ा तो उसका माथा खराब हो गया. क्रोधित हो उसने संत से कहा – मैं आपसे आशीर्वाद मांगने आया हूँ और आप मुझसे ठिठोली कर रहे हैं. यह किस किस्म का मजाक है?

संत ने विनम्रतापूर्वक जवाब दिया – यह कोई मजाक नहीं है. यदि तुम्हारे सामने तुम्हारा पुत्र मर जाए, तुम्हारा पौत्र मर जाए तो तुम्हें क्या खुशी होगी? नहीं न? तो यही आशीर्वाद तो मैंने तुम्हें दिया है. प्रकृति के मुताबिक पहले पिता मरे, फिर पुत्र फिर पौत्र. यही असली सुख और खुशहाली है.

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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. SABHI KAHANIYAN BAHUT HI PRERNASPRAD.
    AABHAR

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  2. सच कहा, जो सबकी सुनता है और उसे अपनी बाधा मान लेता है, उससे अच्छा है बहरा होना।

    जवाब देंहटाएं
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छींटे और बौछारें: आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there - 102
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