आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 425 समर्पण - स्टालिन और चर्चिल रा...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
425
समर्पण - स्टालिन और चर्चिल
राष्ट्रपति ट्रूमैन ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आयोजित हुये याल्टा सम्मेलन में भाग लिया था। उन्हें विंस्टन चर्चिल बहुत जटिल, अडिग और आसानी से कोई बात न मानने वाले व्यक्ति लगे जबकि रूस के जोसेफ स्टालिन बहुत मिलनसार, मित्रतापूर्ण और आसानी से बात मानने वाले व्यक्ति लगे।
किसी भी समझौते या संशोधन पर हस्ताक्षर करने के पूर्व चर्चिल बाकायदा झगड़ा करते थे। इसके विपरीत स्टालिन किसी भी समझौते पर आसानी से हस्ताक्षर करने और सहयोग प्रदान करने को तत्पर रहते।
याल्टा सम्मेलन संपन्न हुआ। सम्मेलन में तय हुये समझौतों के क्रियान्वयन का प्रबंध शुरू हुआ। ट्रूमैन ने पाया कि विंस्टन चर्चिल ने सभी समझौतों का पूरी गंभीरता से पालन और क्रियान्वयन किया जबकि जोसेफ स्टालिन ने समझौतों की कोई परवाह नहीं की और अपना गुप्त एजेंडा ही क्रियान्वित करते रहे। इन दोनों के कार्य का परिणाम अब इतिहास के पन्नों में है।
ट्रूमैन को समझ में आया कि चर्चिल इसलिए अड़ियल थे क्योंकि उनका इरादा समझौतों के प्रति गंभीर रहने का था जबकि स्टालिन इसलिए मिलनसार और समझौते करने में तत्पर बने रहे क्योंकि उनका इरादा समझौतों के पालन का नहीं था।
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भिक्षाम देहि
भिक्षाम देहि!......दोपहर के अंतिम प्रहर में जब एक गृहिणी को यह स्वर सुनायी दिया तो वह दरवाज़े पर आए भिक्षुक के लिए एक कटोरा चावल लेकर आ गयी। चावल देते - देते उसने कहा - "महाराज! मेरे मन में आपके लिए एक प्रश्न है। आखिर लोग एक - दूसरे से झगड़ते क्यों हैं?"
भिक्षुक ने उत्तर दिया - "मैं यहाँ भिखा मांगने के लिए आया हूं, आपके मूर्खतापूर्ण प्रश्नों के उत्तर देने के लिए नहीं।"
यह सुनकर वह गृहिणी दंग रह गयी। सोचने लगी - यह भिक्षुक कितना असभ्य है! वह भिक्षा लेने वाला और मैं दान कर्ता हूं! उसकी हिम्मत कैसे हुयी मुझसे ऐसे बात करने की! फिर वह बोली - "तुम कितने घमंडी और कृतघ्न हो। तुम्हारे अंदर सभ्यता और लिहाज नाम की कोई चीज नहीं है।" .....और वह देर तक उसके ऊपर चिल्लाती रही।
जब वह थोड़ा शांत हुयी, तब भिक्षुक बोला - "जैसे ही मैंने कुछ बोला, तुम गुस्से से भर गयीं। वास्तव में केवल गुस्सा ही सभी झगड़ों के मूल में है। यदि लोग अपने गुस्से पर काबू रखना सीख जायें तो दुनिया में कम झगड़े होंगे।"
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174
मीठा बदला
एक बार एक देश के सिपाहियों ने शत्रुदेश का एक जासूस पकड़ लिया. जासूस के पास यूँ तो कोई आपत्तिजनक वस्तु नहीं मिली, मगर उसके पास स्वादिष्ट प्रतीत हो रहे मिठाइयों का एक डब्बा जरूर मिला.
सिपाहियों को मिठाइयों को देख लालच आया. परंतु उन्हें लगा कि कहीं यह जासूस उसमें जहर मिलाकर तो नहीं लाया है. तो इसकी परीक्षा करने के लिए उन्होंने पहले जासूस को मिठाई खिलाई. और जब जासूस ने प्रेम पूर्वक थोड़ी सी मिठाई खा ली तो सिपाहियों ने मिल कर मिठाई का पूरा डिब्बा हजम कर लिया और उस जासूस को जेल में डालने हेतु पकड़ कर ले जाने लगे.
इतने में उस जासूस को चक्कर आने लगे और वो उबकाइयाँ लेने लगा. उसकी इस स्थिति को देख कर सिपाहियों के होश उड़ गए. वह जासूस बोला – लगता है मिठाइयों में धीमा जहर मिला हुआ था. खाने के कुछ देर बाद इसका असर होना चालू होता है लगता है. और ऐसा कहते कहते वह जासूस जमीन में ढेर हो गया. वह बेहोश हो गया था.
सिपाहियों की तो हवा निकल गई. वे जासूस को वहीं छोड़ कर चिकित्सक की तलाश में भाग निकले.
इधर जब सभी सिपाही भाग निकले तो जासूस उठ खड़ा हुआ और इस तरह अपने भाग निकलने के मीठे तरीके पर विजयी मुस्कान मारता हुआ वहां से छूमंतर हो हो गया.
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175
गांधी जी के जूते
एक बार गांधी जी जब ट्रेन पर चढ़ रहे थे तो ट्रेन ने थोड़ी सी रफ़्तार पकड़ ली थी. चढ़ते समय हड़बड़ी में गांधी जी के एक पैर का जूता नीचे पटरी पर गिर गया.
अब चूंकि ट्रेन रुक नहीं सकती थी तो गांधी जी ने तुरंत दूसरे पैर का जूता निकाला और उसे भी नीचे फेंक दिया और अपने सहायक से कहा - जिस किसी को भी एक जूता मिलता तो उसका प्रयोग नहीं हो पाता. अब दोनों जूते कम से कम किसी के काम तो आ सकेंगे.
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
जो गम्भीर अधिक होता वह तर्क भी अधिक करता है..
हटाएंअच्छी कहानियाँ सुनना किसे नहीं भाता ..
हटाएंशुक्रिया.
सचमुच शानदार।
हटाएंआभार।
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..की-बोर्ड वाली औरतें।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
हटाएंघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
कुछ एक अवसरों पर कुछ कहानियां दूसरी बार प्रकाशित हुईं हैं ऐसा प्रतीत होता है. जैसे churchill स्टालिन की कहानी मैंने पहले भी इसी ब्लॉग में पढ़ी है मालूम होता है. कृपया चेक करें. - Sujit
हटाएंaap ki khaniiya humko bahut aachi lakti hai
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