आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 417 पंखे के बिना रहना अपने पिता ...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
पंखे के बिना रहना
अपने पिता के निधन के बाद एक पुत्र ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम भेज दिया। इस फैसले में उसकी पत्नी की इच्छा भी शामिल थी। वृद्धाश्रम में कमरे तो थे परंतु किसी कमरे में पंखा नहीं था। कई वर्ष तक वहाँ रहने के बाद वह वृद्ध महिला बहुत बीमार पड़ गयी। डॉक्टरों ने भी ऐसे वक्त में उसके पुत्र को बुलाना उचित समझा।
माँ और पुत्र की बहुत दिनों के बाद मुलाकात तथा बातचीत हुयी। पुत्र ने माँ का हालचाल जाना और पूछा कि क्या उन्हें किसी चीज की आवश्यकता है? माँ ने उससे वृद्धाश्रम के कमरों में पंखा लगवाने को कहा।(उसका पुत्र व्यापार में अच्छी तरक्की कर रहा था और आर्थिक रूप से संपन्न था।)
आश्चर्यचकित होकर पुत्र ने पूछा - "माँ, तुम इतने वर्षों तक इस जगह पर रह चुकी हो, लेकिन तुमने पहले मुझसे इस बारे में कभी नहीं कहा? अब क्यों, जबकि आपके जीवन में बहुत कम समय बचा है?"
"बेटे, मुझे तुम्हारी चिंता है। क्योंकि मैं तो पंखे के बिना रह सकती हूं परंतु तुम नहीं।"
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418
ईश्वर पापियों के ज्यादा करीब है
एक संत की एक चिंताजनक एवं मनोरंजक शिक्षा यह है कि ईश्वर संतों की तुलना में पापियों के ज्यादा करीब है।
वह इस तरह इसे सिद्ध करते हैं कि स्वर्ग में ईश्वर हर व्यक्ति को एक धागे से बांधकर रखता है। जब आप पाप करते हैं तो इस धागे को काट देते हैं।
तब ईश्वर इस धागे को गांठ बनाकर पुनः बांधते हैं और इस तरह आपको अपने नजदीक ले आते हैं। इस तरह हर बार आप पाप करके धागे को काटते हैं और गांठ लगाकर ईश्वर आपको अपने और अधिक करीब ले आते हैं।
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मृत्यु के बाद क्या?
शहंशाह गोयोजेई अपने जेन गुरु ग्यूडो से धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर रहे थे. एक दिन शहंशाह ने गुरु से पूछा – मृत्यु के पश्चात् ज्ञानी व्यक्ति की आत्मा कहाँ जाती है?
गुरु ने कहा – मुझे नहीं पता.
शहंशाह ने कहा – आप तो ज्ञानी हैं. आपको भी नहीं पता?
हाँ, मुझे सचमुच नहीं पता. क्योंकि अभी तक मैं मरा नहीं हूँ - गुरु ने स्पष्ट किया.
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163
राजा भोज और गंगू बुढ़िया
राजा भोज सामान्य नागरिक के रूप में वेश बदल कर कवि माघ के साथ घूमने निकले और प्राकृतिक सुंदरता में खो कर घने जंगलों में गए और वहाँ रास्ता भटक गए.
भटकते हुए उन्हें वहाँ बेर एकत्र करती हुई एक बुढ़िया मिल गई. राजा भोज ने विनम्रता से बुढ़िया से पूछा – “माता जी, हम रास्ता भटक गए हैं. यह रास्ता किधर जाता है?”
“यह रास्ता कहीं नहीं जाता. यह तो बरसों से यहीं पर है. वैसे आप हैं कौन?” बुढ़िया ने पूछा.
“हम लोग यात्री हैं.”
“यात्री तो केवल दो हैं – चाँद और सूरज. इन दो में से आप कौन हैं?”
“तो हमें अपना मेहमान समझ लें.”
“मेहमान तो केवल दो होते हैं – पैसा और युवावस्था. इनमें से आप हैं कौन?”
“हमें बस रास्ता भटका साधु समझ लें और कृपया रास्ता बताएं.”
“सत्य में तो साधु सिर्फ शांति और प्रसन्नता का दूसरा नाम है. आप क्या हैं?”
बुढ़िया से हो रहे इस वार्तालाप से राजा भोज व कवि माघ चमत्कृत हो गए. उन्होंने एक स्वर से कहा – “माता, हम लोग सामान्य, बुद्धिहीन व्यक्ति हैं. कृपया हमारा मार्गदर्शन करें.”
बुढ़िया ने हँसकर कहा – “आप सामान्य नहीं हैं. आपको तो मैंने देखते ही पहचान लिया था कि आप राजा भोज और आप कवि माघ हैं. यह रास्ता सीधे धार नगरी को ही जाता है.”
राजा भोज व कवि माघ ने बुढ़िया की बुद्धिमत्ता व प्रत्युत्पन्नमति का लोहा मानते हुए उन्हें प्रणाम किया और आगे बढ़ चले.
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
पुत्र की गहरी चिन्ता, अपने भविष्य के प्रति..
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