आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there - 26

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  आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी   285 महानता का प्रतीक - दयालुता एक...

 

आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

 

285

महानता का प्रतीक - दयालुता

एक बार समर्थ गुरू रामदास अपने शिष्यों के साथ भ्रमण पर थे। जब वे एक गन्ने के खेत के पास के गुजरे तो उनके कुछ शिष्य गन्ना तोड़कर खाने लगे और मीठे गन्नों का आनंद लेने लगे।

अपनी फसल का नुक्सान होते देख खेत का मालिक डंडा लेकर उन पर टूट पड़ा। गुरू को यह देख बहुत कष्ट हुआ कि उनके शिष्यों ने स्वाद के लालच में आपत्तिजनक रूप से अनुशासन को तोड़ा।

अगले दिन वे सभी छत्रपति शिवाजी के महल में पहुँचे जहाँ उनका जोरदार स्वागत हुआ। परंपरागत स्नान के अवसर पर शिवाजी स्वयं उपस्थित हुये। जब गुरू रामदास ने अपने वस्त्र उतारे तो शिवाजी यह देखकर दंग रह गए कि उनकी पीठ पर डंडे की पिटाई के लाल निशान बने हुए थे।

यह समर्थ गुरू रामदास की संवेदनशीलता ही थी कि उन्होंने अपने शिष्यों पर होने वाले वार को अपनी पीठ पर झेला। शिवाजी ने गन्ने के खेत के मालिक को बुलाया। जब वह भय से कांपता हुआ शिवाजी और समर्थ गुरू रामदास के समक्ष प्रस्तुत हुआ, तब शिवाजी ने गुरू से मनचाहा दंड देने को कहा। लेकिन रामदास ने अपने शिष्यों की गलती स्वीकार की और किसान को माफ करते हुए हमेशा के लिये कर मुक्त खेती का आशीर्वाद प्रदान किया।

286

तलवार बाजी का रहस्य

ताजीमा नो कामी राजा सोगन के तलबारबाजी उस्ताद थे। एक दिन शोगन का एक अंगरक्षक ताजीमा के पास तलबार बाजी सीखने आया।

ताजीमा ने उससे कहा -"मैंने तुम्हें बारीकी से देखा है और तुम अपने आप में उस्ताद हो। अपना शिष्य बनाने के पूर्व मैं तुमसे यह जानना चाहूँगा कि तुमने किससे तलवारबाजी सीखी है।'

अंगरक्षक ने उत्तर दिया - "मैंने कभी भी किसी से भी प्रशिक्षण नहीं लिया।'

गुरू ताजीमा बोले - "तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते। मैं उड़ती चिड़िया पहचानता हूँ।'

अंगरक्षक ने विनम्रतापूर्वक कहा - "मैं आपकी बात नहीं काटना चाहता गुरूदेव। पर मैंने वास्तव में तलवारबाजी का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है।'

उसके बाद गुरू ताजीमा ने अंगरक्षक के साथ कुछ देर तक तलवारबाजी का अभ्यास किया। फिर उसे रोकते हुए वे बोले - "चुंकि तुम यह कह रहे हो कि तुमने किसी से तलवारबाजी नहीं सीखी, इसलिए मैं मान लेता हूँ। लेकिन तुम अपने आप में निपुण हो। मुझे अपने बारे में कुछ और बताओ।'

अंगरक्षक ने उत्तर दिया - "मैं सिर्फ यह बताना चाहता हूँ कि जब मैं बच्चा था तब मुझसे एक तलवारबाजी गुरू ने यह कहा था कि आदमी को कभी मृत्यु का भय नहीं होना चाहिये। मैं तब तक मृत्यु के प्रश्न से जूझता रहा जब तक कि मेरे मन में जरा सी भी चिंता रही।'

ताजीमा बोले - "यही तो मुख्य बात है। तलवारबाजी का सर्वोपरि रहस्य यही है कि तलवारबाज मृत्यु के भय से मुक्त हो। तुम्हें किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। तुम अपने आप में उस्ताद हो।'

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40

एक गधे की नीलामी

मुल्ला नसरूद्दीन के पास एक गधा था जिससे वो बेहद नफरत करता था क्योंकि गधा बेहद आलसी था. एक दिन वह गधे को लेकर दलाल के पास गया ताकि दलाल उसे अच्छे भाव में बेच दे.

उस शाम मुल्ला बड़ी हँसी खुशी गाते गुनगुनाते घर आया. मुल्ला को इतना खुश उसकी बीबी ने आजतक नहीं देखा था. उसने मुल्ला की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा.

“तुम विश्वास नहीं करोगी कि आज मैंने क्या किया!” मुल्ला ने चहकते हुए कहा.

“ओह नहीं, अब जरा बता भी दो” पत्नी भुनभुनाई.

“तुम्हें तो पता है कि आज मैं गधे को बेचने दलाल के पास ले गया था” मुल्ला ने पूछा.

“हाँ, बस दिन भर खाता रहता है, न काम का न काज का. बिका या नहीं?” पत्नी ने पूछा.

“बिकेगा क्यों नहीं,” मुल्ला ने बताया - “यह तो एकदम महंगे दामों में बिका है. परंतु पहले जरा पूरी कहानी तो सुनो.”

“अच्छा!”

“दलाल गधे को बेचने के लिए बीच बाजार में नीलाम करने लगा. शुरू में लोग उसके लिए तीन स्वर्ण मुद्राएँ देने को तैयार थे”

“सिर्फ तीन? ये तो बहुत कम है”

“अरे सुनो तो, फिर दलाल गधे की तारीफ पर तारीफ करने लगा. उसके नाक आँख और कान की तारीफ करने लगा. उसके स्वास्थ्य और शांतिप्रियता की तारीफ़ें करने लगा. अपने गधे में इतनी खासियतें हैं यह तो मुझे भी पता नहीं था. बोली बढ़ते बढ़ते पच्चीस स्वर्ण मुद्राओं तक पहुँच गई. लेकिन...”

इस बीच बाहर से चिरपरिचित मुल्ला के गधे के रेंकने की आवाज आई. उसकी बीवी के चेहरे पर कई रंग चढ़े और उतरे.

“लेकिन क्या...?”

“लेकिन, इतने बढ़िया गधे को मैं पच्चीस स्वर्ण मुद्रा में थोड़े ही बेच देता. तो मैंने खुद इसे तीस स्वर्णमुद्रा में खरीद लिया.”

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41

बड़ा हुआ तो क्या हुआ

एक गांव में एक राक्षस रहता था जो गांव के बच्चों को परेशान करता रहता था. एक दिन बाहर गांव से एक बालक अपने भाइयों से मिलने आया. जब उसने राक्षस के बारे में जाना तो अपने भाइयों से कहा –

“तुम सब मिलकर उसका मुकाबला कर उसे भगा क्यों नहीं देते?”

“क्या तुम पागल हो? वो तो कितना विशाल और दानवाकार है, और हम उसके सामने पिद्दी!”

“पर, इसी में तो तुम्हारी जीत छुपी है. उसे कहीं भी निशाना लगा कर मारोगे तो तुम्हारा निशाना चूकेगा नहीं. उसका निशाना जरूर चूक सकता है!”

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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. संयोग से दो सुना प्रसंग सुने हुए हैं। लेकिन पहला तो आपने कल भी पढवाया था। भय मुक्तता…सच्चा कारण…

    जवाब देंहटाएं
  2. संभवतः ये कहानी पुनः आ गयीं।

    जवाब देंहटाएं
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