आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 285 महानता का प्रतीक - दयालुता एक...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
285
महानता का प्रतीक - दयालुता
एक बार समर्थ गुरू रामदास अपने शिष्यों के साथ भ्रमण पर थे। जब वे एक गन्ने के खेत के पास के गुजरे तो उनके कुछ शिष्य गन्ना तोड़कर खाने लगे और मीठे गन्नों का आनंद लेने लगे।
अपनी फसल का नुक्सान होते देख खेत का मालिक डंडा लेकर उन पर टूट पड़ा। गुरू को यह देख बहुत कष्ट हुआ कि उनके शिष्यों ने स्वाद के लालच में आपत्तिजनक रूप से अनुशासन को तोड़ा।
अगले दिन वे सभी छत्रपति शिवाजी के महल में पहुँचे जहाँ उनका जोरदार स्वागत हुआ। परंपरागत स्नान के अवसर पर शिवाजी स्वयं उपस्थित हुये। जब गुरू रामदास ने अपने वस्त्र उतारे तो शिवाजी यह देखकर दंग रह गए कि उनकी पीठ पर डंडे की पिटाई के लाल निशान बने हुए थे।
यह समर्थ गुरू रामदास की संवेदनशीलता ही थी कि उन्होंने अपने शिष्यों पर होने वाले वार को अपनी पीठ पर झेला। शिवाजी ने गन्ने के खेत के मालिक को बुलाया। जब वह भय से कांपता हुआ शिवाजी और समर्थ गुरू रामदास के समक्ष प्रस्तुत हुआ, तब शिवाजी ने गुरू से मनचाहा दंड देने को कहा। लेकिन रामदास ने अपने शिष्यों की गलती स्वीकार की और किसान को माफ करते हुए हमेशा के लिये कर मुक्त खेती का आशीर्वाद प्रदान किया।
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एक मीटिंग यमराज के साथ
एक शहर में अलादीन नाम का बेहद धनी व्यवसायी रहता था. उसके ढेरों नौकर चाकर थे और वह उन सबसे सलीके से पेश आता था और सभी अलादीन की इज्जत करते थे.
एक दिन सुबह सुबह अलादीन ने अपने सर्वाधिक प्रिय नौकर मुस्तफा को कुछ कीमती चीजें लाने के लिए बाजार भेजा. थोड़ी ही देर में मुस्तफ़ा बदहवास, हाँफता-दौड़ता आया. उसका चेहरा भयभीत था जैसे किसी भूत को देख लिया हो. अलादीन ने पूछा कि आखिर हुआ क्या. मुस्तफा ने कहा कि वो बाद में बताएगा कि माजरा क्या है. अभी तो उसे तत्काल शहर से बीस मील दूर इस्तांबूल दो घंटे के भीतर पहुँचना है, इसीलिए उसे सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा दिया जाए.
अलादीन ने मुस्तफ़ा को घोड़ा देकर विदा किया. परंतु उससे रहा नहीं गया और वह खुद बाजार गया कि आखिर वहाँ हुआ क्या था और पता तो चले कि माजरा क्या है.
अलादीन ने वहाँ यमराज को बैठे पाया. अलादीन का माथा ठनका. उसने यमराज से पूछा कि क्या आपको देखकर ही मुस्तफ़ा भयभीत होकर इस्तांबूल की ओर भागा है?
यमराज ने जवाब दिया – भयभीत होकर गया है यह तो नहीं कह सकता, मगर हाँ, उसे यहाँ देखकर मुझे भी बड़ा ताज्जुब हुआ था कि वो यहाँ क्या कर रहा है क्योंकि दो घंटे में तो इस्तांबूल में मेरी उसके साथ मीटिंग है.
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स्वधर्म
एक साधु गंगा में स्नान कर रहे थे.
गंगा की धारा में बहता हुआ एक बिच्छू चला जा रहा था. वह पानी की तेज धारा से बच निकलने की जद्दोजहद में था.
साधु ने उसे पकड़ कर बाहर करने की कोशिश की, मगर बिच्छू ने साधु की उँगली पर डंक मार दिया.
ऐसा कई बार हुआ.
पास ही एक व्यक्ति यह सब देख रहा था. उससे रहा नहीं गया तो उसने साधु से कहा – महाराज, हर बार आप इसे बचाने के लिए पकड़ते हैं और हर बार यह आपको डंक मारता है. फिर भी आप इसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं. इसे बह जाने क्यों नहीं देते.
साधु ने जवाब दिया – डंक मारना बिच्छू की प्रकृति और उसका स्वधर्म है. यदि यह अपनी प्रकृति नहीं बदल सकता तो मैं अपनी प्रकृति क्यों बदलूं? दरअसल इसने आज मुझे अपने स्वधर्म को और अधिक दृढ़ निश्चय से निभाने को सिखाया है.
आपके आसपास के लोग आप पर डंक मारें, तब भी आप अपनी सहृदयता न छोड़ें
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
टिप्पणी करने के स्वधर्म का पालन किये देते हैं।
जवाब देंहटाएंक्या मजा है - किताब खरीद रखी है, पढ़ यहाँ लेते हैं! :-)
गलती स्वीकार कर ही बड़ा बना जा सकता है।
जवाब देंहटाएं@ज्ञानदत्त जी - किताब को किसी को उपहार में दे दीजिए. पर यह सुनिश्चित जरूर कर लें कि वो हिंदी ब्लॉग नहीं पढ़ता हो - खासकर ये वाला :)
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