123...20331 / 2033 POSTS
Homeहिन्दी

केंद्रीय हिंदी संस्थान की पत्रिका : गवेषणा में हिन्दी चिट्ठाकारी पर आलेख

SHARE:

केंद्रीय हिंदी संस्थान – आगरा की पत्रिका – गवेषणा का अक्तूबर – दिसम्बर 2007 का अंक भाषा एवं सूचना प्रौद्योगिकी पर केंद्रित है. इस अंक में ...

"...अधिकारी ने कहा - हिन्दी सॉफ़्ट्वेयर बहुत अच्छा है... पर ... हमें क्या मिलेगा?"
माइक्रोसॉफ़्ट विंडोज़ की हिंदी सुधारने में मदद करें
भगवान के लिए, टिप्पणियाँ माडरेट करें.​

केंद्रीय हिंदी संस्थान – आगरा की पत्रिका – गवेषणा का अक्तूबर – दिसम्बर 2007 का अंक भाषा एवं सूचना प्रौद्योगिकी पर केंद्रित है. इस अंक में सूचना प्रौद्योगिकी (इनफ़ॉर्मेशन तकनालॉजी) पर कोई 29 आलेख हैं जो पत्रिका के 200 पृष्ठों में समाए हुए हैं. हिन्दी भाषा व फ़ॉन्ट की समस्याओं से लेकर यूनिकोड और हिन्दी इंटरनेट इत्यादि पर लगभग सभी विषयों पर इसमें आलेख हैं. रेडहैट के राजेश रंजन जो कि लिनक्स के हिन्दी में स्थानीयकरण का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं, ने “भारतीय उप महाद्वीप, स्थानीयकरण आंदोलन और मुक्त स्रोत” नाम से एक महत्वपूर्ण आलेख लिखा है.

चिट्ठाकारी पर भी मेरा एक आलेख छपा है (जिसे कोई छः आठ माह पहले लिखा गया था) जिसका चित्र नीचे दिया जा रहा है. चित्रों पर क्लिक कर उन्हें बड़ा कर आप पढ़ सकते हैं.

पृष्ठ 1 (बड़े आकार में पढ़ने के लिए चित्रों पर क्लिक करें)

पृष्ठ 2

पृष्ठ 3

पृष्ठ 4

पृष्ठ 5

अन्य विवरण व संपर्क:

पत्रिका - गवेषणा

अंक 88/2007

मूल्य - 40/- रुपए

केंद्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा

हिंदी संस्थान मार्ग, आगरा 282005

--------.

छटांक भर सेंस ऑफ़ ह्यूमर तो लाओ यार...

मेरे कल के चिट्ठाजगत् की सुविधा के बारे में आलेख पर देबाशीष ने तथा जे पी नारायण ने पूरी बातों को खुल कर स्पष्ट कर ही दिया है, मगर फिर भी कुछ मित्रों को मेरी भाषा नहीं जमी. कूड़ा शब्द इस चिट्ठा-प्रविष्टि से उठाया गया है, जो 2006 का है. तब हम चिट्ठाकारों ने एक दूसरे के चिट्ठापोस्टों को कूड़ा कहकर खूब मौज लिए थे और इस बात का किसी ने कोई ईशू नहीं बनाया था. इस बार भी मुझे ऐसा ही लगा था परंतु मैं बेवकूफ़, कमअक्ल, ग़लत था.

रहा सवाल कूड़ा वाली बात का तो ये बात रिलेटिव प्रस्पेक्ट में कही गई थी. और मैंने किसी चिट्ठा विशेष का तो नाम ही नहीं लिया था. जो नाम लिया था वो मेरे खुद के चिट्ठे का नाम था. चूंकि मुझे मेरी स्थिति अच्छी तरह ज्ञात है. मेरे व्यंग्य आलोक पुराणिक के व्यंग्यों के सामने कूड़ा हैं. मेरी ग़ज़ल-नुमा घटिया तुकबंदी जिन्हें मैं व्यंज़ल कहता हूँ किसी भी साधारण सी ग़ज़ल के सामने कूड़ा है. मेरी ब्लॉगिंग प्रतिबद्धता ज्ञानदत्त् पाण्डेय के सामने कूड़ा है क्योंकि नित्य, सुबह पाँच बजे पूजा अर्चना की तरह ब्लॉग लिखकर पोस्ट नहीं कर सकता. अनिल रघुराज और प्रमोद सिंह की तरह न तो मेरे पास भाषाई समृद्धता है न होगी – उनके सामने मेरा लिखा, मेरे अपने स्वयं के प्रस्पेक्टिव में कूड़ा ही है. मेरा तकनीकी ज्ञान देबाशीष, ईस्वामी, पंकज नरूला, अमित, जीतेन्द्र चौधरी इत्यादि के सामने कूड़ा ही है, और इन्हें मुझे स्वीकारने में कोई शर्म नहीं है. यही बात क्यों, मैं अपने पिछले पाँच-दस साल पहले के लिखे को कूड़ा मानता हूँ. मैं अभी उन्हें पढ़ता हूँ तो सोचता हूँ कि अरे! मैंने ये क्या कूड़ा कबाड़ा लिखा था. हंस के संपादक राजेन्द्र यादव ने अपनी जवानी में एक रोमांटिक उपन्यास लिखा था. उसे वे कूड़ा मानकर बाद में छपवाए ही नहीं, और बाद में अभी हाल ही में हंस के पाठकों की राय जाननी चाही कि उस भाषायी, कथ्य और रचना की दृष्टि (स्वयं राजेन्द्र यादव की दृष्टि से) से उस कूड़ा को छपवाना चाहिए या नहीं. निराला ने जब पहले पहल हिन्दी में तुकबन्दी रहित, रीतिकालीन छंदबद्ध से अलग रबरनुमा कविता लिखी तो उसे कूड़ा कहा गया. आज छंदों वाली कविता शायद ही कोई लिखता हो...

पर फिर, दिनेश राय द्विवेदी के शब्दों में यही तो ब्लॉगिंग का अपना मजा है!

कूड़ामय ब्लॉगिंग जारी आहे....

व्यंज़ल

------.

छटांक भर सेंस ऑफ़ ह्यूमर तो लाओ यार

माना जिंदगी कठिन है कभी तो हंसो यार


जमाना पढ़े या न पढ़े तुम्हें रोक नहीं सकता

कूड़ा लिखो कचरा लिखो कुछ तो लिखो यार


यूँ इस तरह जमाने का मुँह ताकने से क्या

कुछ नया सा इतिहास तुम भी तो रचो यार


ऐसी बहसों का यूं कोई प्रतिफल नहीं होता

पर बहस के नाम पर किंचित तो कहो यार


मालूम है कि लोग हंसेंगे मेरी बातों पे रवि

जब बूझेंगे पछताएंगे जरा ठंड तो रखो यार

-------

COMMENTS

BLOGGER: 8
  1. जी हममे तो सेर भर ह्यूमर है जी बल्कि कुछ तो कहते तुममें तो सैंस ही नही है नॉन सैंस. खैर....कभी हमारे गंधाते कूड़े पर भी नजरें इनायत कर लें जी. :-)

    लेख अच्छा है एक जगह 'सोचनीय' को 'शोचनीय' लिखा है जो शायद टाइपो है.

    जवाब दें हटाएं
  2. गवेषणा के बढिया आलेख के लिए बधाई । क्षेत्रीय भाषाओं के ब्‍लाग http://www.chhattisgarhi.blogspot.com का यहां उल्‍लेख पाकर खुशी हुई कि मार्च 2006 में शुरू हुई और अप्रैल 2006 से असक्रिय ब्‍लागों का उल्‍लेख आपके द्वारा राष्‍ट्रीय स्‍तर के पत्रिकाओं में भी होता है । यह ब्‍लाग हमारे आदरणीय अग्रज जयप्रकाश मानस जी का है, हमें उन पर गर्व है पर इसके बाद स्‍वयं मानस जी नें एवं अन्‍य किसी भी छत्‍तीसगढिया नें इस भाषा के ब्‍लाग को निरंतर नहीं रखा ।
    आप जैसे लेखकों एवं स्‍थापित व्‍यक्तियों के द्वारा भी ऐसा प्रयास या बढावा देने का कार्य भी नहीं किया गया, शायद यह आप लोगों की निजी एवं समय की कमी संबंधी मजबूरी हो पर छत्‍तीसगढ सदैव उपेक्षित रहकर भी दूसरों का सम्‍मान करता रहेगा ।

    जवाब दें हटाएं
  3. अब सेंटिया काहे रहे हो? टेंशन नही लेने का।
    ज्यादा भाव मत दिया करो, इन सब बातों को। कुछ लोगों को हल्ला मचाने की आदत होती है, आप चुप बैठोगे तब भी हल्ला मचाएंगे, जवाब दोगे, तब भी मीन मेख निकालेंगे। इसलिए मौज मे रहो, और हाँ ये अपना कूड़ा लगातार लिखते रहो, हमारे यहाँ रद्दी अच्छे भाव मे जाती है।(हीही...)

    जवाब दें हटाएं
  4. गवेषणा का लेख बहुत बड़िया है। आप के कूड़े का रोज इंतजार रहता है।

    जवाब दें हटाएं
  5. थोड़ा कूड़ा पिलीज़.. अपुन का कूड़ादान बहुत बड़ा है. डालो.... डालो जितना मर्जी डालो....

    जवाब दें हटाएं
  6. शिकायत है, आप अपने ब्लॉग को कूड़ा श्रेणी में नहीं डाल सकते. हमारा चिट्ठा अधिकृत रूप से "कूड़ा" कहा चुका है.

    जवाब दें हटाएं
  7. गवेषणा का आपका आलेख बढ़िया है...आप हमेशा काफी बढ़िया लिखते हैं...मुझे भी अपने साथ यहां रखने के लिए शुक्रिया.

    जवाब दें हटाएं
  8. जब कूड़ा इतना बढ़िया है
    तो बढ़िया कैसा होगा ?

    जवाब दें हटाएं
आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.
कृपया ध्यान दें - स्पैम (वायरस, ट्रोजन व रद्दी साइटों इत्यादि की कड़ियों युक्त)टिप्पणियों की समस्या के कारण टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहां पर प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

तकनीकी ,1,अनूप शुक्ल,1,आलेख,6,आसपास की कहानियाँ,127,एलो,1,ऐलो,1,कहानी,1,गूगल,1,गूगल एल्लो,1,चोरी,4,छींटे और बौछारें,148,छींटें और बौछारें,341,जियो सिम,1,जुगलबंदी,49,तकनीक,56,तकनीकी,709,फ़िशिंग,1,मंजीत ठाकुर,1,मोबाइल,1,रिलायंस जियो,3,रेंसमवेयर,1,विंडोज रेस्क्यू,1,विविध,384,व्यंग्य,515,संस्मरण,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,स्पैम,10,स्प्लॉग,2,हास्य,2,हिंदी,5,हिन्दी,509,hindi,1,
ltr
item
छींटे और बौछारें: केंद्रीय हिंदी संस्थान की पत्रिका : गवेषणा में हिन्दी चिट्ठाकारी पर आलेख
केंद्रीय हिंदी संस्थान की पत्रिका : गवेषणा में हिन्दी चिट्ठाकारी पर आलेख
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirceRD3Pc2rkk3hDIq3vNkNkc7GgegfNBqspauWZjtIVX7Fa-QcSFrJosG8GvCPAiRcw31AUTGeCQ6gQiaghzAbuCt_8XFnfZMwvqVqLMXWzxQGj8x9oZWL7VeNJ28j8M4-_FU/s400/kendriya+hindi+sansthan+agra+gaveshana.JPG
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirceRD3Pc2rkk3hDIq3vNkNkc7GgegfNBqspauWZjtIVX7Fa-QcSFrJosG8GvCPAiRcw31AUTGeCQ6gQiaghzAbuCt_8XFnfZMwvqVqLMXWzxQGj8x9oZWL7VeNJ28j8M4-_FU/s72-c/kendriya+hindi+sansthan+agra+gaveshana.JPG
छींटे और बौछारें
https://raviratlami.blogspot.com/2008/01/blog-post_22.html
https://raviratlami.blogspot.com/
https://raviratlami.blogspot.com/
https://raviratlami.blogspot.com/2008/01/blog-post_22.html
true
7370482
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content