स्मार्टनेस कहाँ – चिट्ठा लेखक में या चिट्ठापाठक में? एक डॉक्टर में या इंजीनियर में? एक प्रोफ़ेसर में या एक लिपिक में ? ठहरिए, पहले पूरी ...
स्मार्टनेस कहाँ – चिट्ठा लेखक में या चिट्ठापाठक में? एक डॉक्टर में या इंजीनियर में? एक प्रोफ़ेसर में या एक लिपिक में ? ठहरिए, पहले पूरी पोस्ट पढ़िए, फिर बताइएगा.
दैनिक भास्कर में एन रघुरामन् मैनेजमेंट फंडा नाम से नित्य एक कॉलम लिखते हैं जिसमें वे प्रबंधन के गुर बताते हैं. आमतौर पर वे संक्षिप्त में बहुत सी काम की बातें बताते हैं और प्रायः उनमें से अधिकतर उनके स्वयं के अनुभवों से भरे रहते हैं. और अच्छे खासे दिलचस्प होते हैं.
परंतु आज के (इंदौर उज्जैन संस्करण 25 जनवरी 2008) अपने आलेख में उन्होंने प्रोफ़ेशनल स्मार्टनेस की जो बातें कहीं हैं, वे निहायत ही बेतुकी और उनकी सीमित सोच को दर्शाती हैं. या फिर शायद जिस तरह से लोगों की जुबान फिसलती है, वैसी उनकी लेखनी फिसल गई है.
अपने आलेख – स्मार्टनेस कहाँ एमबीए या सीए? में (जो शायद एमबीए कोचिंग संस्था पीटी द्वारा प्रायोजित प्रतीत होती है...) उन्होंने इंटरनेट पर सदियों पुराने टहल रहे और लाखों मर्तबा फारवर्ड किए जा चुके चुटकुले को एमबीए और सीए हेतु जिस तरीके से एडॉप्ट किया है वो किसी भी रूप में सही प्रतीत नहीं होता. और अंत में उनका निष्कर्ष कि “फंडा यह कि एमबीए हमेशा सीए से बुद्धिमान होते हैं” तो किसी सूरत ठीक नहीं है – और वो भी किसी बासी चुटकुले के दम पर निकाला गया निष्कर्ष! इसी चुटकुले के दम पर कल को वे (या कोई भी दूसरा बंदा) यह कह सकते हैं कि डाक्टर इंजीनियर से बुद्धिमान होते हैं (या ठीक इसके उलट!)¡
ये तो वही बात हुई – स्मार्टनेस कहाँ – वकील में या न्यायाधीश में? या फिर स्मार्टनेस कहाँ – चिट्ठा लेखक में या चिट्ठापाठक में?
आप ही बताएँ.
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व्यंज़ल
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इस जमाने में चल सकूं वो स्मार्टनेस कहाँ
कहाँ पर नहीं और दिखाऊं स्मार्टनेस कहाँ
लोग कहते हैं बदल गया है जमाना बहुत
मैं लाऊं गुजरे जमाने का स्मार्टनेस कहाँ
लोग मुझपे हंसते हैं होशियारी दिखाते हो
यूं अभी मैंने दिखाया मेरा स्मार्टनेस कहाँ
कोई तो मुझे भी दुनिया दिखलाओ यारों
आईने में ढूंढा किया हूं मेरा स्मार्टनेस कहाँ
बनाता रहा हूँ मैं अपने रस्ते खुद ही रवि
दूसरों के रस्ते चलूं तो वो स्मार्टनेस कहाँ
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आप जैसे चिट्ठा लेखक में और हम जैसे चिट्ठा पाठक में.
हटाएंखासतौर पर इस फंडे ने मेरा भी ध्यान आकृष्ट किया था । बहुत ही बचकानी व नासमझी भरी विवेचना।सब कार्यक्षेत्र की अपनी खूबियाँ है ।किसी की किसी के साथ कैसी तुलना।वैसे रघूरामन जी ऐसी अपेक्षा तो नहीं थी।
हटाएंकाहे का झगड़ा? अपन एन रघुरामन जी को ही स्मार्टेस्ट मान लेते हैं!
हटाएंरवि जी आपने सही लिखा है। रघुरामन जी तो ऐसी तुलना कर रहे हैं कि जो पूरी तरह बेतुकी है। पता नहीं अखबार वाले ऐसे लेख बगैर पढ़े कैसे प्रकाशित कर देते हें। जहां तलवार काम आ सकती है वहां सुई क्या करेगी और जहां सुई का काम हो वहां तलवार क्या करेगी। मुझे तो तरस आ रहा है इस विश्लेषक की बुद्धि पर। भगवान इनको अगला लेख लिखने तक सदबुद्धि दें।
हटाएंकोई बताये आपका यह लिखना स्मार्टनेस है या मेरा इस पर टिप्प्पीयाना रघुनाथजी से पूछते हैं.
हटाएंअद्यतन : दूसरे दिन भास्कर इंदौर के संस्करण में एन रघुरामन् ने इस संबंध में सफाई दे दी है और इस संबंध में क्षमा भी मांग ली है.
हटाएंरवि जी आपने सही लिखा है ।
हटाएंरघुरामन जी ने इस तरह की कई लेख लिखे है ।
चलो रघुरामन जी क्षमा भी मांग ली है पर भास्कर को भी क्षमा मांगनी चाहिए।
हमें तो आप की कविताए बहुत अच्छी लगती है जो आप ज्यादातर पोस्ट के नीचे लिखते है
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