मैं पिछले दिनों देश के पहले नंबर के चिकित्सा संस्थान क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर जो कि सीएमसी वेल्लोर के नाम से जाना जाता है, की च...
मैं पिछले दिनों देश के पहले नंबर के चिकित्सा संस्थान क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर जो कि सीएमसी वेल्लोर के नाम से जाना जाता है, की चिकित्सा यात्रा (मेडिकल टूरिज़्म) पर था.
मेरे लिए तो यह चिकित्सा यात्रा ही थी. मैं कोई छत्तीस घंटे की अनवरत रेल यात्रा कर अपनी चिकित्सकीय जाँच करवाने देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में पहुँचा जो था.
दरअसल मुझे कुछ समय से – बल्कि कहिए कि कुछ वर्षों से अपने दोनों कान में कुछ भारी-पन सा महसूस होता आ रहा है और खासकर तब जब मैं करवट लेकर सोता हूं. और यदा कदा कान में दर्द भी होता है. स्थानीय नाक-कान-गला रोग चिकित्सक तो दर्द निवारक और एंटीबायोटिक दवाई देने के अलावा ज्यादा कुछ कर नहीं पा रहे थे तो कोई तीन साल पहले इंदौर के विशेषज्ञ को भी दिखाया था. वहाँ पर सीटी स्कैन के जरिए भी ‘कुछ’ नहीं निकला. परंतु अभी कुछ दिनों से परेशानी इतनी ज्यादा हो रही थी कि मुझे एलीवेटेड बैड का सहारा लेना पड़ रहा था.
इसी बीच मेरे एक मित्र ने बताया कि सीएमसी वेल्लोर का ईएनटी विभाग बहुत अच्छा है. उन्होंने अपने स्वयं के अनुभव भी बताए. और, उनसे वार्तालाप खत्म होने के पहले ही मैंने अपने आपको सीएमसी वेल्लोर के जालस्थल पर पाया.
सीएमसी वेल्लोर के जालस्थल पर और भी तमाम जानकारियों के अलावा एक बात प्रमुखता से दर्ज की गई है – वह यह कि आउटलुक तथा इंडियाटुडे के सर्वे के अनुसार सीएमसी वेल्लोर भारत का अग्रणी चिकित्सा-सेवा संस्थान है.
जाल-स्थल में विभिन्न विभागों के ई-मेल पते भी दिए गए हैं. मैंने तत्काल ही भारत के पहले नंबर के चिकित्सा संस्थान – सीएमसी वेल्लोर के ईएनटी विभाग 1 को एक ई-मेल अपनी समस्या दर्शाते हुए चिकित्सा हेतु अप्वाइंटमेंट की तारीख तय करने के लिए भेजा. साथ ही हृदय-रोग विभाग को भी एक ई-मेल अप्वाइंटमेंट की तारीख तय करने के लिए भेजा – मेरे हृदय की शल्य चिकित्सा तथा पेसमेकर इम्प्लांट को कोई 12 साल पूरे हो रहे थे तो इनका वार्षिक परीक्षण भी लगेहाथ करवा लेने की योजना थी.
एक दो दिन तो ई-मेल के प्रत्युत्तर के इंतजार में बीते. मगर जब कोई सप्ताह भर बीतने के बाद भी सीएमसी से कोई जवाब नहीं आया तो मैंने एक और ई-मेल ईएनटी1 को किया और इस दफा ईएनटी2 तथा ईएनटी3 को भी इसकी प्रतिलिपि भेजी. इस बार ईएनटी3 से प्रत्युत्तर प्राप्त हुआ जिसमें जांच की तारीख 29 अगस्त दी गई थी. ईएनटी1 तथा 2 से व कार्डियोलॉजी विभाग से अंत तक कोई जवाब नहीं आया.
हम (मैं, मेरी पत्नी व हमारी बिटिया) निर्धारित तिथि पर सुबह 4 बजे वेल्लोर रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म क्र. 1 पर उतरे. ठीक सामने 24 घंटे सेवारत सीएमसी हेल्प डेस्क दिखाई दिया, जिसे देख कर मन प्रसन्न हो गया. हेल्पडेस्क में बताया गया कि नए मरीजों को एक पंजीकरण फ़ॉर्म भरना होता है और ओपीडी में डॉक्टर को दिखाने के लिए निर्धारित शुल्क जमा करना होता है. वहाँ से एक फ़ॉर्म भी दिया गया. हेल्पडेस्क में बताया गया कि ओपीडी सुबह सात बजे खुल जाता है.
हम निर्धारित समय पर ओपीडी में पहुँचे तो पता चला कि नए मरीजों के लिए पैसा जमा करने के कोई पांच काउन्टर हैं, और वहां टोकन लेकर ही पैसा जमा किया जा सकता है क्योंकि बहुत भीड़ हो रही थी. बहरहाल हमने भी टोकन लिया और अपने टोकन क्रमांक के प्रदर्शित होने का इंतजार करने लगे.
कोई एक घंटे बाद हमारे टोकन का नंबर प्रदर्शित हुआ तो डॉक्टर की फीस जो इस इंतजार के बदले में बहुत ही मामूली सी थी, जमा किया गया, जिसके जरिए डाक्टर से मिलने के लिए कम्प्यूटर जनरेटेड पर्ची निकाल कर हमें दिया गया. साथ ही हाथ में बांधने हेतु हैंड बैंडेज दिया गया जिसे हाथों में पहना देख कर ही गार्ड ऊपर के माले में, जहाँ जांच होती थी, लोगों को जाने देता था.
हमें हेल्प-डेस्क पर बताया गया था कि जनरल एप्वाइंटमेंट लेने पर जूनियर डॉक्टर देखते हैं और प्राइवेट एप्वाइंटमेंट लेने से सीनियर डॉक्टर देखते हैं. हमने प्राइवेट एप्वाइंटमेंट लिया था. हमारी पर्ची को देखकर प्राइवेट मेडिकल रेकार्ड ऑफिस में हमें बताया गया कि चूंकि आप पहली दफ़ा यहाँ आए हैं अत: आपको पहले जूनियर डॉक्टर ही देखेंगे फिर आपको विशेषज्ञ देखेंगे. हमारी पर्ची लेकर वहां कमरा नं 4 के सामने इंतजार करने को कहा गया.
चारों तरफ़ भीड़ बढ़ने लगी थी. कमरा नं 4 के सामने कोई बीस-पच्चीस कुर्सियाँ थीं, जो सभी भर चुकी थीं. लिहाजा हम कॉरीडोर में खड़े हो गये. इतने में सिक्यूरिटी गार्ड ने बताया कि उधर वेटिंग रूम है, वहां बैठकर इंतजार करें, वहां स्पीकर के जरिए आपको आवाज दी जाएगी.
वेटिंग रूम में कोई सौ के लगभग कुर्सियाँ लगी हुई थीं जो लगभग भरी हुई थीं. हमें दो-एक खाली कुर्सी मिली तो हम भी जम गए – अपने नाम पुकारे जाने के इंतजार में. सामने टीवी चल रहा था. बे-आवाज. कोई सड़ा सा चैनल लगा था और केबल की खराबी के कारण पिक्चर क्वालिटी भी बहुत घटिया थी. लगा कि अपनी बारी का इंतजार करते मरीजों के बीच यह भी बीमार हो बैठा है.
कोई दो घंटे बाद मेरा नाम पुकारा गया. जूनियर डॉक्टर ने मेरा आरंभिक परीक्षण किया. डॉक्टर अपने काम में दक्ष प्रतीत होता था और उसने बिना किसी हड़बड़ी के तमाम परीक्षण किए. और, जैसा कि जाहिरा तौर पर हर स्वास्थ्य सेवा केंद्र में होता है, बताया कि कुछ अतिरिक्त परीक्षण करने होंगे जिसके परिणाम प्राप्त होने के उपरांत आपको विशेषज्ञ डॉक्टर देखेंगे. उन्होंने कुछ किस्म की रक्त जांच, एंडोस्कोपी, ध्वनि-श्रवण परीक्षण और सीटी स्कैन के लिए पर्चियाँ पकड़ा दीं और बताया कि इनके पैसे जमा करवा कर जाँच करवा लें. यदि जाँच परीक्षण आज शाम 4 बजे से पहले मिल जाता है तो विशेषज्ञ डॉक्टर आज देखेंगे नहीं तो अगले ओपीडी दिन का एप्वाइंटमेंट लेना होगा. और अगले ओपीडी दिन के एप्वाइंटमेंट से मतलब था – दो दिन छोड़कर, क्योंकि ईएनटी3 का ओपीडी हफ़्ते में सिर्फ दो दिन होता है.
ये तो लग ही गया था कि ये सारी जाँचें आज तो संभव ही नहीं होंगी और यदि हो भी गईं तो रपट शाम तक तो मिलेंगी भी नहीं. और हम इसके लिए तैयार भी थे. पर्ची लेकर उसी माले में बने कैश काउन्टर पर पैसा जमा करवाने गए तो देखा कि वहाँ तो बहुत ही लंबी लाइन लगी हुई है और लाइन की रफ़्तार देख कर लगा कि कोई दो घंटे तक तो अपना नंबर ही नहीं आने वाला.
हम नीचे चले गए जहाँ कैश काउन्टर पर टोकन के जरिए पैसा जमा किया जा सकता था. कोई बारह बज रहे थे. काउन्टर पर लाल एलईडी में 190 नंबर चमक रहा था. हमें मिला टोकन नं 451. थोड़ी देर इधर उधर टहलते हुए हमने सोचा कि इस बीच दोपहर का भोजन निपटा लिया जाए. क्योंकि यहाँ भी भले ही पाँच कैश काउन्टर थे, परंतु सारा सिस्टम बहुत ही ऊटपटांग होने के कारण काउन्टर पर प्रत्येक व्यक्ति का बहुत अधिक समय जाया हो रहा था.
हम सीएमसी के कैंटीन में पहुंचे. वायडब्ल्यूसीए (यंग वीमन्स क्रिश्चियन असोशिएसन) द्वारा संचालित कैंटीन विशाल था और जाहिर है, यहाँ भी भीड़ लगी हुई थी. फिर भी वैसी मारा-मारी नजर नहीं आ रही थी. कोई पाँच मिनट लाइन में लगने पर वांछित भोजन की पर्ची मिल गई जिसे भोजन काउंटर पर देकर भोजन प्राप्त किया जा सकता था. काउंटर पर चूंकि दोपहर के भोजन का समय था इसलिए यहाँ भी भीड़ थी, परंतु वो मैनेजेबल थी, और हमें कोई पंद्रह मिनट इंतजार करना पड़ा.
भोजन के उपरांत जब वापस काउंटर पर आए तो एलईडी पर टोकन नं. 259 मुँह चिढ़ा रहा था. दोपहर के दो बज रहे थे. इंतजार करने के सिवा कोई चारा नहीं था. कोई दस काउंटरों के सामने कुर्सियाँ लगी हुईं थीं और बीमार-तीमारदार सभी बेहद लंबे, उबाऊ, अकारण इंतजार में बैठे थे – अपने टोकन नं के प्रकट होने के इंतजार में. और इंतजार था कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था...
लग रहा था कि जांच तो दूर की बात है, आज जांच हेतु पैसे ही जमा हो जाएँ वही बड़ी बात होगी...
(शेष अगले पोस्ट में जारी...)
रवि जी, आपने चिकित्सा यात्रा वृतांत भी बड़े रोचक रूप से प्रस्तुत किया है। ठीक वहाँ की चिकित्सा सेवा की ही तरह, अब शेष के लिये अगली कड़ी की प्रतीक्षा!
हटाएंवाकई आपने इसे रोचक बना दिया है।
हटाएंप्रतीक्षा रहेगी पर उससे पहले यह बताएं कि स्वास्थ्य कैसा है अब?
अभी तक का अनुभव तो हमारे अनुभव से मेल खाता है. आगे देखें क्या होता है!
हटाएंबड़ी रोचकता से गंभीर बात कर रहे हैं, आगे का इन्तजार है.
हटाएंभाई रतलामी जी ,
हटाएंबहुत सच कहा आपने...। मुझे लगता है कि हमारे देश के अधिकांश चिकित्सा संस्थानों की शायद ऐसी ही स्थितियाँ हैं...। मेरे ब्लॉग http://manikahashiya.blogspot.com में ‘ यह सच डराता है ’ लेबल के अंतर्गत मेरे ऐसे अनुभव की और भी कटु यादें आप को मिलेंगी । कृपया अपनी राय से अवगत कराते रहिएगा ।
प्रेम गुप्ता " मानी "
बहुत ही रोचक वृतांत , ऐसा होता ही है, इसीलिए बहुत से लोग चिकित्सक के पास जाने में में घबराते है।
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